मछली पालन को बढ़ावा देगी यह तकनीक, किसानों की आमदनी में होगा इजाफा
बायोफ्लॉक तकनीक को मछली पालन में नई नीली क्रांति (Blue revolution) माना जा रहा है.
बायोफ्लॉक तकनीक को अपनाने से कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है. (Image-Reuters)
बायोफ्लॉक तकनीक को अपनाने से कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है. (Image-Reuters)
जम्मू कश्मीर सरकार सूबे में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) की शुरुआत कर रही है. मछली पालन (Fish Farming), पशु-भेड़पालन, कृषि, बागवानी और सहकारिता विभाग के प्रधान सचिव नवीन चौधरी के मुताबिक, विभाग की योजना किसानों और बेरोजगार नौजवानों के बीच इस नई तकनीक को बढ़ावा देने की है, ताकि उनके लिए आमदनी के नए जरिये बन सकें.
बायोफ्लॉक तकनीक को मछली पालन में नई नीली क्रांति (Blue revolution) माना जा रहा है. यह मछली पालन का एक लाभदायक तरीका है और यह पूरी दुनिया में खुले तालाब में मछली पालन का बहुत अच्छा ऑप्शन बन गया है.
बायोफ्लॉक तकनीक एक कम लागत वाला तरीका है, जिसमें मछली के लिए जहरीले पदार्थ जैसे अमोनिया, नाइट्रेट और नाइट्राइट को उनके भोजन में तब्दील किया जा सकता है.
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तालाब में मछली पालन के पारंपरिक तरीके के मुकाबले बायोफ्लॉक तकनीक के कई लाभों को देखते हुए और मछली पालकों को इसका ज्यादा उत्पादन दिखाने के लिए इसे में पेश किया जा रहा है. यह तकनीक पहले ही कई राज्यों में अपनाई जा चुकी है और इस तकनीक से कई यूनिट सफलतापूर्वक चल रही हैं.
प्रमुख सचिव ने रोटेशन के आधार पर इस बायोफ्लॉक यूनिट में ट्रेनिंग के लिए सभी जिलों के कर्मचारियों को तैनात करने का भी निर्देश दिया.
केंद्र सरकार ने हाल ही में आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज में मछली पालन क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की है, जिसका लक्ष्य प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत मछली पालन के टिकाऊ तरीके से नीली क्रांति लाना है.प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का मुख्य उद्देश्य रोजगार के प्रत्यक्ष अवसर पैदा करना है.
बायोफ्लॉक तकनीक
बायोफ्लॉक तकनीक को अपनाने से कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है. बायोफ्लॉक तकनीक एक आधुनिक व वैज्ञानिक तरीका है. बायोफ्लॉक तकनीक से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं.
इस तकनीकी में टैंक सिस्टम में बैक्टीरिया के द्वारा मछलियों के मल और अतरिक्त भोजन को प्रोटीन सेल में बदल कर मछलियों के खाने में बदल दिया जाता है.
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मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी मल निकालती है और यह मल पानी के अंदर ही रहता है. उसी मल को शुद्व करने के लिए बायोफ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है. बायोफ्लॉक बैक्टीरिया होता है. ये बैक्टीरिया इस मल को प्रोटीन में बदल देता है, जिसको मछली खाती है. इस तरह से एकतिहाई फीड की बचत होती है.
बायोफ्लॉक विटामिन और खनिजों का भी अच्छा माध्यम है, खासकर फॉस्फोरस. इस तकनीक में पानी की बचत के साथ मछलियों के खाने की भी बचत होती है.
01:10 PM IST