Budget Tea-20: गोलू की चाय और बजट पर शर्मा-गुप्ता जी का टी-20...
Budget 2023 में एक महीने से भी कम समय है. और तैयारियां तो शुरू हो ही चुकी हैं. ये तो आप जानते हैं बजट को वित्त मंत्रालय तय करता है. देश का जो भी वित्त मंत्री होता है, वो तमाम उद्योगों, कॉरपोरेट्स, आम लोगों की राय के बाद बजट प्रस्ताव तैयार करता है.
Budget 2023 में एक महीने से भी कम समय है. और तैयारियां तो शुरू हो ही चुकी हैं. ये तो आप जानते हैं बजट को वित्त मंत्रालय तय करता है. देश का जो भी वित्त मंत्री होता है, वो तमाम उद्योगों, कॉरपोरेट्स, आम लोगों की राय के बाद बजट प्रस्ताव तैयार करता है. आपने भी सुना होगा कि फलां मंत्रालय ने ये मांगा, उस इंडस्ट्री की डिमांड ये है... लेकिन, क्या कभी जनवरी की ठंडी में चाय की टपरी पर चाय पी है? अगर नहीं तो पीकर देखिए. अखबार की सुर्खियों को चाय से साथ गुड़गुड़ाते देश के आर्थिक हालात पर चिंतन तो यहीं होता है. ज़ी बिज़नेस आपके लिए एक खास कॉमिक सीरीज लाया है, जिसमें हम आपको आंखों देखा हाल सुनाएंगे. छोटे से शहरों की चाय की टपरी पर बनती देश की इकोनॉमी... खास सीरीज का नाम है Budget Tea-20. आइये शुरू करते हैं...
बात शहर अलीगढ़ की.. शहर के अंदर खुले इलाके में चाय की एक टपरी और उस पर मिलने वाले रिटायर्ड शर्मा जी, गुप्ता जी और डॉक्टर साहब. और गोलू चाय वाला.. ये हमारी इस कड़ी के मुख्य पात्र हैं. ये सभी पात्र वास्तविक हैं.. बस पूरा नाम नहीं खोल रहे हैं. शॉर्ट में इतना समझ लीजिए कि कहानी ये है कि बजट से पहले चाय की टपरी पर देश की इकोनॉमी को लेकर होने वाली चर्चा और बजट में क्या आएगा, क्या नहीं, इस पर तीखी बहस को तांकता गोलू चाय वाला...
कहानी शुरू होती है...
ठंड का वक्त तो है ही... सुबह के पौने सात बजे हैं. शर्मा जी आ चुके हैं. गुप्ता जी का भी इंतजार है.
शर्मा जी: आते ही होंगे गुप्ता भी. ये गोलू कहां रह गया आज. स्साला चाय तो कच्ची पिलाता ही है, आज ठंड में ठिठुरवा के छोड़ेगा. आज तो डाकटर साब भी दिखाई नहीं दे रहे. लगता है सर्दी कुछ बढ़ सी गई है...
शर्मा जी सोच ही रहे थे कि गोलू आ पहुंचा.
शर्मा जी: अबे कहां रह गया था आज..
गोलू: अरे आंख ही नहीं खुली आज अंकल.
शर्मा जी: चल अब फटाक से चाय बना बाकी भी आते होंगे. आज सब लेट हैं.
गोलू: आप अखबार खोलिए तब तक चाय उबालता हूं.
शर्मा जी: लो चले आए, मियां गुप्ता आज कहां रह गए थे.. सुना है कमर में हल्की लचक है तुम्हारे.. पड़े-पड़े शरीर खराब मत कर लेना...
गुप्ता जी: अरे ये तो ऐसे ही अब.. 60 के बाद का क्या भरोसा.. लाओ अखबार में क्या छाप लिया आज...
शर्मा जी: अरे वही घिसी-पिटी कहानी है शहर की तो.. हां दिल्ली में इन दिनों सर्दी में गर्मी है. बजट की तैयारियां चल रही हैं अब तो.. आने वाला है ना 1 फरवरी को.
गुप्ता जी: काहे का बजट, वो ही होगा इस बार भी.. आम पब्लिक के हाथ तो कुछ लगना नहीं. सरकार तो बड़े-बडे़ उद्योगों का भला करने में लगी है. महंगाई का हाल देख लो, क्या कर लिया पब्लिक के लिए. अरे गोलू तेरा सिलेंडर कितने में भर रहा है आज कल...
गोलू: वही 1800 का उठा रहा हूं मार्केट से... पहले एक जानकार था, वो सस्ता देता था, लेकिन उसके यहां छापा मार लिया. अब तो मार्केट रेट पर लाना पड़ रहा है. चाय ला रहा हूं गरमा गर्म...
शर्मा जी: काहे इतना बौखलाए हुए हो गुप्ता.. ये बताओ तुम्हे क्या चाहिए बजट से..
गुप्ता जी: हां जैसे तुम ही दिलवा दोगे.. भैया हमाए दिन तो कट लिए अब तो ये लगे है कि बच्चों का भला कैसे होगा. पता है लड़का नोएडा में नौकरी कर रहा है. वहां किराए पर रह रहा है. उसके बाद टैक्स कटे है सैलरी से. क्या बचाएंगे क्या खाएंगे. महंगाई देख लो... लगता नहीं कुछ हो पाएगा. इस बजट में भी बड़ी-बड़ी बातें ही सामने आएंगे.
शर्मा जी: अरे सरकार कर तो रही महंगाई को नीचे लाने की कोशिश. तुम सब ना ये इकनॉमिक्स समझते नहीं. और ये गोलू क्या बताएगा. सुनो टैक्स इकोनॉमी बना रहा है मोदी देश को. अमेरिका ऐसे ही विकसित ना हुआ. टैक्स छूट कितनी दे दो.. वेतन बढ़ता रहेगा तो फिर और मांगोगे... महंगाई 6 फीसदी के नीचे आगी अब तो.. आरबीआई कह रहा है अगले साल तेजी से बढ़ेगी इकोनॉमी और फिर 5 ट्रिलियन भी तो पूरा करना है.
गुप्ता जी: बस हो गया. ये सब कुछ ना हो रहा. देश तो पहले भी चला करे. अब पेट्रोल देख लो, सिलेंडर देख लो, दाल-चावल-चीनी का भाव देख लो.. और तो और सब्जी खाने को ना मिल रही. ऐसे टैक्स इकोनॉमी का क्या फायदा जब देश की जनता को खाना के लिए सोचना पड़े. लो डाक्टर साब भी आ लिए...
डॉक्टर साब: क्या हो रहा है, सुबह-सुबह कहां शुरू हो गए.
गोलू: लो चाय... कुछ नहीं दोनों अंकल आज बजट पर चर्चा कर रहे हैं.. आने वाला है ना 1 फरवरी को.. बस उस पर ही आपस में कर रहे...
शर्मा जी: तू अपना काम कर... डाक्टर साब तुम ही बताओ देश में काम न हो रहा या दूसरे देशों की तुलना में कहीं पीछे हैं और गुप्ता कह रहा कि हालात कुछ ना बदले...
डाक्टर साब: सही तो कह रहे हैं महंगाई तो बढ़ रही है. लेकिन, इसे कंट्रोल करने की भी सोच रही है गवर्नमेंट. रही बात बजट की तो हर साल आना है कुछ बढ़िया करना है तो आम लोगों को राहत देनी चाहिए.
शर्मा जी: मैं भी ये ही बोल रहा... पर ये गुप्ता बने बवंडर..
गुप्ता जी: देखो, शर्मा उलझो ना... बात ये है कि सरकार जब हर चीज पर टैक्स वसूले तो नौकरी करन वालों को छूट ना दे सके है. मान लिया महंगाई बढ़ गी. मान लिया अभी हालात वैसे ना है कि चीजें सस्ती की जां. मगर इतना तो हो सके है कि जहां छूट देकर पब्लिक को राहत दे सकें वहां दें...
शर्मा जी: बात यो ना है. बात है चुनौतियों की. बहुत सारी हैं. हम तो घर बैठे बस देखे हैं, और सरकार को कई दिशा में सोचना पड़े. फिर कई मसलों पर तो सरकार भी कर्ज में है तो वो कहां से पैसा लावेगी...
डाक्टर साब: अरे नहीं.. आप लोग बेकार की चीज पर बहस कर रहे हो.. सरकार को जब लगता है तब लोगों तक हर हाल में राहत पहुंचती है. आने वाले दिनों में पेट्रोल सस्ता होगा और बाकी चीजों के दाम भी गिरेंगे. रही बात टैक्स छूट की तो कई खबरें पढ़ी हैं.. देखो इस बार टैक्स के मोर्चे पर राहत मिलने के आसार है. साथ ही सरकार नई योजनाओं के तहत किसानों और गरीबों का भी सोच रही है. मगर आपस में इन सब पर बात करके क्या फायदा, आएगा बजट तब देख लेना...
गुप्ता जी: बात बजट के आने की ना है. बात तर्क की है. पहले भी तो बजट आए करे. हम भी सर्विस वाले थे. हम भी चुकावे थे टैक्स. पर वहां से आज तक कोई बड़ा फर्क दिखा नी. बात ये है कि शर्मा जी को लगे है कि सबकुछ बढ़िया चल रहा है और इन्हें कुछ नहीं चाहिए...
शर्मा जी: अरे गुप्ता मैंने कब कहा कुछ नहीं चाहिए. वित्त मंत्री कर रही है. सोच विचार के ही करेगी. मगर टैक्स छूट देने से देश आगे ना बढ़े.
गुप्ता जी: देश तो आगे तब बढ़ेगा जब यहां के लोगों के हाथ में पैसा टिकेगा. तभी तो बाजार में पैसा घूमेगा. पैसे का चक्र चलेगा तो अर्थव्यवस्था का पहिया चलेगा. न तो बैठे रहो हाथ पर हाथ धरे.
डाक्टर साब: देखो ये बात ठीक है. पैसा से ही चलेगा देश. मगर ये भी सोचो कि हर जगह छूट दे दी तो सरकार की कमाई कैसे और कहां रहेगी. ये कहो कि दायरा बढ़ा दे सरकार टैक्स छूट का. सुना है 5 लाख टैक्स फ्री इनकम कर देंगे. नौकरी वालों के लिए 80C में भी छूट बढ़ा सकें.
गुप्ता जी: डाक्टर साब तुम तो अच्छा पीट रहे होंगे नोट. तुम्हें कोई फर्क पड़े है इन सबसे. तुम्हारा तो धंधा बढ़िया ही चल रहा होगा क्योंकि, मरीज तो कम ना हो रहे... फिर तुम्हें क्या टेंशन...
डाक्टर साब: ऐसा नहीं है. हमारी जेब से भी सरकार के पास पैसा जाता है. हम भी आम टैक्सपेयर की तरह ही टैक्स चुकाते हैं. इसका मतलब ये नहीं कि मैं टैक्स छूट या बड़ी राहत की उम्मीद करूं. सरकार अपने हिसाब से करेगी, जो करना होगा. सुझाव लिए इसलिए जाते हैं ताकि हमारी जरूरत उन तक पहुंचे.
शर्मा जी: बस यही तो समझा रहा था इस गुप्ता को.. अरे मांग रखो क्या पता सरकार पूरी कर दे.
गुप्ता जी: अरे बस कर दी पूरी. कई साल होगे देखते-देखते.. चलो इस बार देख लियो वरिष्ठ नागरिकों के लिए क्या आवे.. कुछ ना मिले वही ढाक के तीन पात...
गोलू: चाय और बना दूं क्या अंकल?
शर्मा जी: अब रहन दे, तेरी चाय से ज्यादा तो गुप्ता उबल रहा आज...
गुप्ता जी: फालतू कुछ भी... चलो सैर पर, यहां बैठे ना हो रहा कुछ...
आज की चर्चा यहीं रोकते हैं, लेकिन चायोनॉमिक्स पर ब्रेक कहां लगने वाला है. अगली कड़ी में आपको सुनाएंगे मेरठ के गंगानगर में चाय की टपरी का आंखों देखा हाल...