Budget 2023: क्या होता है स्टैंडर्ड डिडक्शन और किन लोगों को मिलता है इसका फायदा?
स्टैंडर्ड डिडक्शन के जरिए कुल इनकम में 50,000 रुपए तक टैक्स छूट ले सकते हैं. यहां जानिए किसको मिलता है इसका फायदा और ये कितना फायदेमंद है.
स्टैंडर्ड डिडक्शन (Standard Deduction) वो कटौती है जिसे आपकी आमदनी से काटकर अलग कर दिया जाता है और इसके बाद बची हुई आमदनी पर टैक्स की गणना की जाती है. वेतनभोगी कर्मचारी (Salaried Employee) और पेंशनर्स (Pensioners) को स्टैंडर्ड डिडक्शन के जरिए टैक्स में छूट लेने की सुविधा मिलती है. स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट 50,000 रुपए है यानी नौकरीपेशा कर्मचारी और पेंशनर्स अपनी कुल इनकम में से 50,000 रुपए तक की राशि को अलग हटाकर कुल टैक्स योग्य आय को कम कर सकते हैं.
उदाहरण से समझिए
मान लीजिए कि आप नौकरीपेशा वाले हैं और आपकी सालाना इनकम 6 लाख रुपए है. ऐसे में आपको आपके कुल पैकेज में 50,000 रुपए तक का स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ मिलेगा और आपकी टैक्स की गणना 6 लाख की बजाय 5,50000 रुपए पर होगी. हालांकि, आपकी सैलरी प्रतिवर्ष इससे भी कम है तो आपका पूरा वेतन स्टैंडर्ड डिडक्शन के तहत आ जाएगा.
कौन उठा सकता है फायदा
स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा केवल उन नौकरीपेशा कर्मचारियों और पेंशनर्स को ही मिलता है, जिन्होंने नए टैक्स नियमों का विकल्प नहीं चुना है. हालांकि फैमिली पेंशन पर इसका फायदा नहीं मिलता है. फैमिली पेंशन यानी अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसका आश्रित पेंशन ले रहा है तो उसे स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा नहीं मिलेगा.
2005 के बाद 2018 में दोबारा लागू हुआ
भारत में वर्ष 2005 से पहले वेतनभोगियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन का प्रावधान था, लेकिन उस वर्ष के बजट में इसे बंद कर दिया गया था. इसके बदले कुछ विशेष मदों में जैसे परिवहन भत्ते के रूप 19,200 रुपए के डिडक्शन और चिकित्सा भत्ते के रूप में 15,000 रुपए के डिडक्शन का प्रावधान किया गया. लेकिन कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं थे. कर्मचारियों का मानना था कि कारोबारी और कंसल्टेंट्स कई तरह के खर्च दिखाकर एक्जंप्शन क्लेम करते हैं, लेकिन सैलरीड लोगों के पास बहुत कम विकल्प हैं. कर्मचारियों की इस शिकायत को दूर करने के लिए सरकार ने साल 2018 के बजट में दोबारा स्टैंडर्ड डिडक्शन को लागू किया. लेकिन ट्रांसपोर्ट अलाउंस और मेडिकल रीइंबर्समेंट के रूप में मिलने वाली छूट को खत्म कर दिया गया. शुरुआत में स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट 40,000 रुपए थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 50,000 कर दिया गया.
क्या है स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा
ट्रांसपोर्ट अलाउंस और मेडिकल रीइंबर्समेंट के रूप में मिलने वाली छूट से स्टैंडर्ड डिडक्शन कर्मचारियों के लिए ज्यादा बेहतर है क्योंकि ट्रांसपोर्ट अलाउंस और मेडिकल रीइंबर्समेंट की छूट लेने के लिए कागजी कार्यवाही का काम बढ़ जाता था. जबकि स्टैंडर्ड डिडक्शन के जरिए वेतनभोगियों की ग्रॉस सैलरी में से 50,000 रुपए सीधेतौर पर काट दिए जाते हैं और इसके बाद टैक्सेबल इनकम का निर्धारण किया जाता है.
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