सरकार ने बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB), विजया बैंक और देना बैंक के विलय की कार्रवाई शुरू कर दी है. लेकिन इस कदम का बैंक यूनियनों ने विरोध किया है. उनका तर्क है कि स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में उसके 5 सहयोगी बैंकों के विलय से कोई चमत्‍कार नहीं हुआ था. उस दौरान कई शाखाओं को बंद करना पड़ा था. एनपीए बढ़ गया था और कर्मचारियों की छंटनी भी हुई थी. साथ ही स्‍टेट बैंक का कारोबार भी घट गया था. 200 साल में पहली बार एसबीआई नुकसान में आ गया था.

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बैंक कर्मचारी करेंगे देशव्‍यापी आंदोलन

सरकार के नए प्रस्‍ताव के खिलाफ बैंक ऑफ बड़ौदा के कर्मियों ने पूरे देश में प्रदर्शन कर सरकार के इस निर्णय का विरोध किया. उनमें भी विलय के कारण नौकरी जाने का डर समा गया है. जानकारों का मानना है कि ऐसे विलय से बहुत से ग्राहक खाता बंद कर देते हैं. नेशलन बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस के कमेटी मेंबर व ऑल इंडिया बैंक ऑफ बड़ौदा ऑफिसर्स एसोसिएशन के बड़ौदा के जनरल सेक्रेट्री सुनील उपाध्याय के मुताबिक इस विलय से सबसे अधिक नुकसान बैंक ऑफ बड़ौदा के कर्मियों को होगा. अभी बैंक की वित्तीय हालात बेहतर होने और बड़े नेटवर्क के कारण कर्मियों को कई सुविधाएं मिलती हैं जो विलय के बाद बंद हो सकती हैं. बड़े पैमाने पर बैंक कर्मियों को ट्रांसफर किया जाएगा. निचले स्तर के कर्मियों की नौकरी जाने का खतरा अधिक है. बैंकर विरोध में देशव्यापी आंदोलन की रणनीति तैयार करेंगे.

ग्राहकों के भी खाता बंद करने का खतरा

वर्ष 2017 में ग्लोबल मार्केटिंग फर्म जेडी पावर ने अध्ययन कराया था. अध्‍ययन में 46 फीसदी लोगों ने कहा था कि उनके बैंक के विलय के बाद उन्होंने अपना बैंक बदल दिया. कुछ समय पहले डिलॉयट सेंटर ऑफ बैंकिंग सल्यूशंस की ओर से ऐसे लोगों के ऊपर अध्ययन कराया गया जिन्होंने अपना बैंक बदला. अध्ययन में 36 फीसदी लोगों ने कहा कि बैंक के विलय के बाद इसलिए उन्होंने अपना बैंक बदल दिया क्योंकि वह पहले अपने बैंक से भावनात्मक कारणों से जुड़े थे. बैंक का विलय होने के बाद ऐसा कोई कारण नहीं रहा.