Success Story: महिला किसानों का योगदान खेती-किसान में बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने न केवल अपने परिवारों को पोषित किया है, बल्कि किसान, उधमी और श्रमिक के रूप में कई भूमिकाओं के माध्यम से देश की कृषि और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. महिला दिवस (Womens Day) के दिन आज ऐसी ही तीन महिला किसानों की सफलता की कहानी जानेंगे जिन्होंने तमाम चुनौतियों के बीच खेती-किसानी में अपना परचम लहराया. 

3 करोड़ महिला किसानों को PM Kisan का फायदा

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बता दें कि केंद्र सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि (PM Kisan Samman Nidhi) योजना के तहत 3 करोड़ से अधिक महिला किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता मिली है.

कंपनी का सालाना टर्नओवर ₹12 लाख

बक्सर जिले की रहने वाली जूही पांडे ने 'आत्मा' के सहयोग से एक 15 सदस्यीय महिला समूह का गठन किया, जिसमें नियमित बैठक करके पूंजी का सृजन करने के बाद मशरूम आचार (Mushroom Pickels), सूरन आचार, दाल बरी, जैम-जेली का बनाने और मार्केटिंग की शुरुआत की. उन्होंने इंटरनेट मार्केटिंग और डोर-टू-डोर मार्केटिंग विधा को अपनाते हुए दूर-दराज के बड़े शहरों तक अपने उत्पादों को पहुंचाने में सफलता हासिल की. आज इस कंपनी का टर्न ओवर 12 लाख रुपये है. इससे हासिल मुनाफा कुल 15 महिलाओं के बीच बांटी जाती है. इनके द्वारा एक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है, जिसमें अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है.

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मधुमक्खी पालन और मशरूम उत्पादन में मिशाल कायम की

बिहार के मुंगेर जिले के टेटिया बम्बर प्रखंड के तिलकारी गांव की रहने वाली यशोदा देवी ने मधुमक्खी पालन और मशरूम उत्पादन में एक मिशाल कायम की हैं. यशोदा एक गृहिणी होने के साथ ना सिर्फ आत्मनिर्भर बनी बल्कि 'आत्मा' के माध्यम से तिलकारी खाद्य सुरक्षा समूह बनाकर दूसरे महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया. आज गांव की बदली हुई तस्वीर के साथ ही यशोदा देवी महिला सशक्तिकरण का उदाहरण भी हैं. वर्ष 2010 में उन्होंने 500 रुपये से मशरूम की खेती की शुरुआत की. आज वह जैविक खेती, मधुमक्खी पालन और अनेक तहत की तकनीक युक्त खेती कर रही हैं और मुनाफा कमा रही हैं. साथ ही स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षण भी देती हैं और उसको अपने पैर पर खड़ा होने का गुर भी सिखाती हैं.

सब्जी की खेती से परिवार का भरण-पोषण

बिहार के कैमूर जिले के कुदरा प्रखंड के तहत सकरी गांव की रहने वाली अनिता देवी की आठवीं पास करने के बाद कम उम्र में शादी कर दी गई. शादी के कुछ सालों के बाद उनके पति अंधे हो गए, साथ ही रोजी रोटी की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी. उस वक्त उन्हें कमाई का कोई अवसर नहीं दिख रहा था. तब उन्होंने खेती में अपनी सहभागिता लेने का फैसला लिया और 'आत्मा कार्यालय कुदरा' से संपर्क किया, जहां उन्हें सब्जी उत्पादन करने के लिए प्रशिक्षण दिया गया. इसके बाद अनीता देवी ने सब्जी उत्पादन की शुरुआत की. आज वह पूरे परिवार का भरण-पोषण और बीमार पति का इलाज करा रही हैं. साथ ही वह जैविक खेती (Organic Farming) भी कर रही हैं.