तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी के इस दौर में अब खेती में भी टेक्नोलॉजी (Technology) का खूब इस्तेमाल होने लगा है. खेती में तकनीक के इस्तेमाल से बहुत सारे किसान अपनी पैदावार बढ़ा रहे हैं. पैदावार बढ़ने की एक वजह ये भी है कि पहले की तुलना में अब नुकसान कम हो रहा है, क्योंकि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है. आज हम एक ऐसी ही टेक्नोलॉजी की बात करेंगे, जिसका इस्तेमाल तो सालों से हो रहा है, लेकिन अब इसने अपना रूप बदल लिया है. यहां बात हो रही है मल्चिंग पेपर (Mulching Paper) की, जिसके जरिए खेतों में मल्चिंग की जाती है. आइए जानते हैं इसके बारे में.

पहले समझिए क्या है मल्चिंग का मतलब

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मल्चिंग के तहत खेतों में पॉलीथीन बिछाई जाती है. यह पॉलीथीन अलग-अलग माइक्रोन यानी अलग-अलग मोटाई की होती हैं. पुराने जमाने में पॉलीथीन की जगह मल्चिंग के लिए पराली या गन्ने की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता था. कई जगह पर मल्चिंग के लिए पूस (झोपड़ी बनाने वाली घास) का भी इस्तेमाल किया जाता था. आज के वक्त में मल्चिंग के लिए पॉलीथीन का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे हाथ से भी बिछाया जाता है और इसे बिछाने की कई तरह की मशीनें भी आती हैं.

मल्चिंग से होते हैं ये 3 बड़े फायदे

अगर किसान मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए खेती करते हैं तो उन्हें 3 बड़े फायदे होते हैं. पहला फायदा तो ये होता है कि इससे जमीन की नमी बनी रहती है, जिससे सिंचाई की जरूरत बहुत कम पड़ती है. यहां तक कि आप मल्चिंग से खेती करते हैं तो ड्रिप इरिगेशन से भी सिंचाई कर सकते हैं और अधिकतर लोग ऐसा करते भी हैं. वहीं इसका दूसरा बड़ा फायदा ये होता है कि इसे बिछाने की चलते खरपतवार नहीं जमती है, जिससे सारा न्यूट्रिशन पौधे को मिलता है. साथ ही खरपतवार को निकलवाने में होने वाला खर्च भी बचता है. खरपतवार नियंत्रण की वजह से पौधों में कीट या रोग भी बहुत ही कम लगते हैं, जिससे कीटनाशक का भी खर्च बचता है.

किसानों की कमाई हो जाती है दोगुनी

मल्चिंग पेपर बिछाने की वजह से किसानों की कमाई दोगुनी तक हो जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे एक तो किसानों को कम सिंचाई करनी पड़ती है. दूसरा इससे खरपतवार निकलवाने का खर्च बचता है. तीसरा इसकी वजह से कीटनाशक पर कम खर्च होता है. इन सब का नतीजा होता है अच्छी पैदावार और कम लागत, जिससे किसानों की कमाई दोगुनी तक हो जाती है.

मल्चिंग पेपर पर कितना आता है खर्च

बाजार में मल्चिंग पेपर अलग-अलग क्वालिटी के मिलते हैं. अगर आप बहुत ही हल्की क्वालिटी का मल्चिंग पेपर इस्तेमाल करते हैं तो आपको हर बार नई मल्चिंग बिछानी होगी. वहीं अच्छी क्वालिटी का मल्चिंग पेपर 2-3 सीजन तक चल सकता है. औसतन एक एकड़ में किसान को मल्चिंग पेपर बिछाने में करीब 12-15 हजार रुपये तक का खर्चा करना पड़ता है.

किस-किस खेती में काम आती है मल्चिंग?

मल्चिंग पेपर का इस्तेमाल उन सभी खेती में किया जा सकता है, जिसमें फसल जमीन पर दूर-दूर लगाई जाती है और उसमें घास जमने से दिक्कत होती है. मान लीजिए कोई किसान मिर्च या बैंगन या गोभी जैसी सब्जियां लगाता है तो वहां मल्चिंग का इस्तेमाल हो सकता है. वहीं गेहूं, गन्ना, सरसों जैसी फसलों में मल्चिंग का इस्तेमाल नहीं होता है.