Agri Business Idea: खेती हो या फिर बिजनेस, जिस चीज की बाजार में खूब मांग रहती है उसी से फायदा होता है. ऐसे में अगर आप हल्दी की खेती (Turmeric Farming) करते हैं तो आप तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं. हल्दी की खेती के साथ इसका बिजनेस करते हैं तो आप और ज्यादा फायदा बढ़ा सकते हैं. हल्दी में बहुत सारे औषधीय गुण होते हैं, ऐसे में अगर आप हल्दी की खेती करेंगे तो बंपर मुनाफा  होगा. आइए जानते हैं कैसे की जाती है हल्दी की खेती.

भारत में हल्दी उत्पादन

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आईसीएआर की रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व में कुल हल्दी उत्पादन का 75% भाग भारत के तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है. तेलंगाना देश का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक राज्य है. विश्व में 'येलोसिटी' या 'हल्दी नगर' के नाम से विख्यात इरोड (तमिलनाडु) और सांगली (महाराष्ट्र) हल्दी के सबसे बड़े उत्पादक और सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र है. मेघालय की जैंतिया पहाड़ियों की 'लकडोंग' हल्दी विश्वभर में सबसे अधिक कर्क्युमीन फीसदी (8%) और विशिष्ट औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है.

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भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है. वर्ष 2022-23 में 11.61 लाख टन (वैश्विक हल्दी उत्पादन का 75 फीसदी से अधिक) के उत्पादन के साथ भारत में 3.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हल्दी की खेती की गई थी. 

हल्दी की खेती का तरीका

हल्दी, उष्ण और आर्द्र जलवायु का पौधा है. प्रकंदों के समुचित विकास के लिए 1500 से 2250 मिमी वर्षा और 20-30 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी है. हल्दी के बेहतर उत्पादन के लिए जल निकासी वाली दोमट जलोढ़, लटेराइट मिट्टी अच्छी होती है. खेती से पहले मिट्टी-पलट हल से जुताई कर अच्छी तरह से भुरभुरी बनाना जरूरी है.

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बुवाई का समय

उत्तर भारत में अप्रैल के मध्य से जुलाई के मध्य तक जबकि दक्षिण भारत में फरवरी-मार्च में इसकी खेती शुरू हो जाती है. क्यारियों में पौधों के बीच 25 सेमी की दूरी रखते हुए 25-30 सेमी आकार के गड्ढों को अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्सोप्स्ट भरकर कंदों को रखा जाता है और फिर मिट्टी से ढक दिया जाता है. एक हेक्टेयर में हल्दी की रोपाई के लिए लगभग 2.5 टन ताजा प्रकंदों की जरूरत होती है.

हल्दी की किस्में

भारत में हल्दी की 30 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं और यह देश के 20 से अधिक राज्यों में उगाई जाती है. केरल में एलेप्पीफिंगर, महाराष्ट्र में राजापुर, करहडी, वैगोन, आंध्र प्रदेश में निजामाबाद, आर्मूर, वोंटीमिट्टा, तमिनाडु में इरोड लोकल, बीएसआर-1, पीटीएस-10, पश्चिम बंगाल और असम में पट्टान्त, मेघायल में लकडोंग, लहशीन, लड़वा, लकशैन, मेघ-1, मिजोरम में लकडोंग, आरटी-1 जबकि मणिपुर और सिक्किम में लकडोंग और स्थानीय किस्म हैं.

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मौसम और मिट्टी की स्थिति के आधार पर भारी मिट्टी में हल्की और बारंबार लगभग 15 से 23 और रेतीली दोमट मिट्टी में 40 सिंचाई की जानी चाहिए. मिट्टी में उचित नमी होने पर हल्दी की खुदाई कर प्रकंदों को इसके पत्तों से ढंककर 7-8 दिनों तक क्योरिंग के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके बाद धुले हुए प्रकंदों को पानी में सफेद धुंआ, एक विशिष्ट गंध और झाग निकलने तक 40-60 मिनट के लिए उबाला जाता है. इसके बाद प्रकंदों को सुखाकर और पीसकर स्टोर किया जाता है. आचार और चटनी बनाकर भी ताजी हल्दी की प्रोसेसिंग की जाती है.