Apple Cultivation: सूखे मेवे और जैविक उत्पाद जैसे किन्नौर के पारंपरिक उत्पाद जो कभी यहां आयोजित लवी मेले का मुख्य आकर्षण थे, उनका प्रभाव धीरे-धीरे सेब के सामने कम होता जा रहा है. क्षेत्र के किसानों ने यह दावा किया है. सूखे मेवे बेचने वाले विक्रेताओं ने कहा कि किन्नौर के पारंपरिक उत्पादों का उत्पादन घट रहा है, क्योंकि अधिकतर लोग सेब की नई किस्मों की खेती की ओर जा रहे हैं. ये विक्रेता, मेला समाप्त होने के बाद भी रामपुर में अपना माल बेचना जारी रखे हैं.

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किन्नौर के लियो गांव के अतुल नेगी, जो कई वर्षों से मेले में अपनी उपज लेकर आते हैं, ने कहा कि पहले वह 12-15 क्विंटल खुबानी (Apricot) और 3 से 4 क्विंटल बादाम (Almonds) लेकर आते थे. हालांकि, इस साल वह केवल एक क्विंटल खुबानी और 30 किलो बादाम लेकर आए हैं. उन्होंने कहा, उत्पादन में गिरावट के कारण कीमतें बढ़ रही हैं और उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है.

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मेले में बादाम, खुबानी (Apricots), चिलगोजा (Chilgoza), राजमा (Raj mash), मटर (Peas), काला जीरा (Kala jeera) और शिलाजीत (Shilajit) जैसे किन्नौरी सूखे मेवे तो उपलब्ध थे, लेकिन पिछले वर्षों की तुलना में बहुत कम मात्रा में. ऊंचे दामों के कारण ये कई लोगों की पहुंच से बाहर हो गए और अधिकांश लोग इन्हें खरीद नहीं पाए.

रिस्पा गांव के किसान यशवंत सिंह ने बताया कि वह पिछले चार-पांच वर्षों से मेले में सूखे मेवे और जैविक उत्पाद लाते रहे हैं. हालांकि, इस वर्ष उन्होंने बाजार में उत्साह की कमी देखी और कम ग्राहक उनके सामान में रुचि दिखा रहे थे. उन्होंने कहा कि अब अधिक से अधिक लोग अपनी खाली जमीन पर सेब उगा रहे हैं.

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बागवानी विशेषज्ञों का सुझाव है कि सूखे मेवे के उत्पादन में अधिक श्रम की जरूरत होती है और उत्पादन की लागत भी अधिक होती है, जबकि सेब की नई किस्में तेजी से बढ़ रही हैं और अच्छे परिणाम दे रही हैं. नतीजतन, सूखे मेवों के लिए समर्पित खेती का रकबा सिकुड़ रहा है.

बागवानी विभाग के विशेषज्ञ अश्विनी कुमार ने बताया कि नई आयातित सेब की किस्मों की उपज बेहतर होती है और 4 से 5 साल में फल देना शुरू कर देती हैं, जिससे उत्पादकों को जल्दी लाभ मिलता है. उन्होंने कहा, किसान तेजी से पारंपरिक उपज से दूर होते जा रहे हैं और हर साल कई किसान सेब की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.

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