मेंथा की फसल से किसान कर सकते हैं लाखों में कमाई, जानिए इसकी खेती से जुड़ी सभी जरूरी बातें
Written By: संजीत कुमार
Sat, Mar 04, 2023 03:26 PM IST
Peppermint Farming: देश के कई किसान आज भी परंपरागत फसलों की खेती कर रहे हैं. ऐसे में परंपरागत फसलों से हटकर बाजार मांग के अनुरूप कुछ नया करके किसान अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं. मेंथा एक नगदी फसल है. देश और विदेश में मेंथा (Peppermint) के तेल की भारी मांग है. मेंथा का उपयोग दवा से लेकर सौंदर्य प्रसाधन और खाने-पीने की वस्तुओं में इस्तेमाल होने के कारण इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में इसकी खेती कर किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.
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खेत की तैयारी
ICAR के मुताबिक, मेंथा की खेती लगभग सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है. अच्छी उपज के लिए पर्याप्त जीवांश पदार्श, अच्छा जल निकास, पी-एच मान 6-7.5 वाली बलुई दोमट और मटियारी दोमट मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है. इस प्रकार की मिट्टी में जड़ों समुचित विकास नहीं हो पाता है. मेंथा की बुआई करने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 बार गहरी जुताई से पहले 15 से 20 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. दीमक से बचाव के लिए 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली मृदा में मिलाई जाती है. खेत तैयार होने के बाद खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट देना चाहिए. इससे सिंचाई खर्च व सकर्स में कटौती होती है.
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कब लगाएं पौधा?
मेंथा की रोपाई का सही समय सर्दी के मौसम के खत्म से लेकर गर्मी के मौसम की शुरुआत होता है. भारत में मध्य जनवरी से मध्य फरवरी तक का समय मेंथा की बुआई के लिए सर्वोत्तम है. जहां रबी की फसल लगाई जाती है, वहां पर रबी की फसल की कटाई के बाद 30 मार्च तक जापानी पुदीना की बुआई की जा सकती है. मेंथा की तीन प्रमुख प्रजातियां हैं- जापानी पुदानी, पहाड़ी पुदीना और विलायती पुदीना.
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रोग और कीट नियंत्रण
बालदार सूंडी- यह पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पत्तियों को खाती है, जिससे तेल की प्रतिशत मात्रा कम हो जाती है. इस कीट से फसल की सुरक्षा के लिए डाइक्लोरवॉस 500 मिली या फेनवेलरेट 750 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. पत्ती लपेटक कीट- इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए
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