कैंसर, हृदय रोगियों के लिए रामबाण है ये चीज, कम लागत में मिलेगा बंपर मुनाफा
Phalsa ki Kheti: फालसा भी औषधीय गुणों से भरपूर है. इसके फल में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, राख, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, पोटेशिम, सोडियम और विटामिन- B पाया जता है. ऐसे में फालसा (Phalsa) की खेती फायदेमंद हो सकती है.
Phalsa ki Kheti: बीते कुछ वर्षों में औषधीय पौधों की खेती का चलन बढ़ा है. औषधीय पौधों की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. फालसा भी औषधीय गुणों से भरपूर है. इसके फल में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, राख, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, पोटेशिम, सोडियम और विटामिन- B पाया जता है. गर्मियों में फालसा को कच्चा खाने या इसका शरबत पीने से ठंडक का अहसास होता है. इसके बीजों में लिनोलेनिक एसिड होता है, जो शरीर के लिए बेहद उपयोगी है. ऐसे में फालसा (Phalsa) की खेती फायदेमंद हो सकती है.
जलवायु और मिट्टी
भारत में फालसा की खेती पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में होती है. इसकी व्यावसायिक खेती बनारस के आस-पास के क्षेत्रो में की जा रही है. फालसा ठंडे में तापमान से सुरक्षा की जरूरत होती है. इसके पौधे 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को सहन कर सकते गहैं. इसकी रोपाई के लिए बलुई दोमट और उचित जल निकासी वाली मिट्टी होनी चाहिए.
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फालसा (Phalsa) की दो स्थानीय किस्में लंबी और बौनी किस्मों को उगाया जाता है. बैनी फालसा किस्म लंबी किस्म की तुलना में ज्यादा उत्पादन देती है. इसके पौधे जुलाई-अगस्त या फरवरी-मार्च के दौरान लगाए जा सकते हैं.
कीट और रोग प्रबंधन
आईसीएआर के मुताबिक, फालसा में मिलीबग, छाल खाने वाला कैटरपिलर, लीफ स्पॉट रोग, रस्ट, पाउडर मिल्ड्यू जैसे कीट का हमला होता है. इनकी रोकथाम के समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव जरूरी है.
फून आने के 40 से 45 दिनों के बाद फल पकने लगते हैं. फालसा का उत्पादन 2 साल में शुरू होता है. पौधों की रोपाई के करीब सवा साल बाद से सालाना उपज मिलने लगती है. इसके पौधों की ऊंचाई 4-5 फुट तक रखने से बेहतर मिलती है.
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स्टोरेज
फालसा के फल जल्दी खराब होते हैं. इनका उपयोग कटाई के 24 घंटों के भीतर किया जाना चाहिए. फ्रिज में एक या दो हफ्ते के लिए इन फलों को स्टोर किया जा सकता है. पके फालसा फल स्वाद में खट्टे होते हैं.
फालसा (Phalsa) की खेती से किसानों को कम खर्चे में ज्यादा आय मिल सकती है. यह कई औषधीय गुणों वाला होता है. यह इम्युनिटी पावर बढ़ाने के साथ शुष्क क्षेत्र में भी खेती के लिए वरदान साबित हो सकता है.