पर्यावरण और किसान दोनों के लिए घाटे का सौदा है धान की ये किस्म, पंजाब में अब भी जारी है इसकी खेती- रिपोर्ट
Paddy variety Pusa 44: पंजाब में पराली जलाने की सर्वाधिक घटनाओं वाले जिलों के किसान लंबे समय में तैयार होने वाली और ज्यादा पानी की जरूरत वाली धान की किस्म ‘पूसा-44’ (Pusa 44) की खेती अब भी जारी रखे हुए हैं.
Paddy variety Pusa 44: पंजाब में पराली जलाने की सर्वाधिक घटनाओं वाले जिलों के किसान लंबे समय में तैयार होने वाली और ज्यादा पानी की जरूरत वाली धान की किस्म ‘पूसा-44’ (Pusa 44) की खेती अब भी जारी रखे हुए हैं. एक सर्वे रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. दिल्ली स्थित शोध संस्थान ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (CEEW) की तरफ से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) मशीनों का इस्तेमाल करने वाले पंजाब के लगभग आधे किसान अब भी मशीनों के कुशल संचालन और कीट नियंत्रण को सुनिश्चित करने के लिए खेतों में फैली हुई पराली को जला देते हैं.
CEEW की रिपोर्ट कहती है कि पंजाब के 11 जिलों में सर्वेक्षण में शामिल 1,478 किसानों में से 36 फीसदी ने पूसा-44 किस्म के धान की अधिक उपज को ध्यान में रखते हुए 2022 के खरीफ सत्र में इसकी खेती की थी. सर्वे पंजाब के अमृतसर, बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, फाजिल्का, फिरोजपुर, गुरदासपुर, जालंधर, लुधियाना, पटियाला, संगरूर और एसबीएस नगर जिलों में किया गया. यह खरीफ सत्र 2022 में पंजाब में पराली जलाने के लगभग 58 फीसदी हिस्सा था. संगरूर और लुधियाना जैसे जिलों में पराली जलाने के अधिक मामले सामने आए थे और वहां पर पूसा-44 किस्म की धान की खेती करने वाले किसानों का अनुपात सबसे अधिक है.
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पर्यावरण के लिए हानिकारक है ये किस्म
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CEEW में कार्यक्रम सहयोगी कुरिंजी केमंथ ने कहा कि पंजाब के किसान अधिक उपज के लिए पूसा-44 किस्म को पसंद करते हैं, लेकिन इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को वे बिजली और उर्वरक पर मिलने वाली सब्सिडी की वजह से नजरअंदाज कर देते हैं. केमंथ ने कहा कि पंजाब सरकार ने पूसा-44 किस्म (Pusa 44 Paddy Variety) के धान को पर्यावरण के लिए हानिकारक मानते हुए अक्टूबर, 2023 में गैर-अधिसूचित कर दिया था. लेकिन यह किस्म अब भी मुख्य रूप से निजी बीज डीलरों के माध्यम से प्रचलन में है.
पूसा-44 (Pusa 44) और पीली पूसा (Peeli Pusa) जैसी उच्च उपज वाली धान की किस्मों का पंजाब में धान के खेतों पर दबदबा कायम है. इन किस्मों को पकने में अधिक समय लगता है, ये अधिक पराली पैदा करती हैं और इन्हें खाद और पानी सहित उच्च कृषि लागत की भी जरूरत होती है. मसलन, पूसा-44 किस्म अपने परमल चावल (Parmal rice) वेरायटी की तुलना में प्रति हेक्टेयर लगभग दो टन अतिरिक्त पराली पैदा करता है, जिससे अधिक अवशिष्ट जलाए जाते हैं.
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धान की छोटी अवधि वाली 9 किस्मों की खेती को बढ़ावा
पंजाब सरकार ने पिछले दशक से ही भूजल की कमी और पराली जलाने के मामलों से निपटने के लिए धान की छोटी अवधि वाली 9 किस्मों की खेती को बढ़ावा दिया है. पिछले एक दशक में पंजाब में इन छोटी अवधि की किस्मों का रकबा काफी बढ़ा है. वर्ष 2012 में इसकी खेती 32.6 फीसदी रकबे में होती थी जो 2021 में बढ़कर 69.8 फीसदी हो गई.
04:09 PM IST