आम के बागान में दिसंबर-जनवरी में ये काम कर लें किसान, बंपर उत्पादन से होगी तगड़ी कमाई
Canopy Management: अगर नए बागों का शुरू से और पुराने बागों का कैनोपी प्रबंधन किया जाय तो इससे उत्पादन तो बढ़ेगा ही, फलों की गुणवत्ता भी सुधरेगी.
Canopy Management: फलों में खास आम (Mango) की पैदावार के मामले में उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है. यह रकबे और उत्पादन में भी पहला है. यहां के दशहरी, लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, गौरजीत आदि की अपनी खुशबू और स्वाद की अलग ही पहचान है. अपने स्थान को बनाए रखने के लिए नई-नई विधियों को अजमाया जा रहा है ताकि उत्पादन में कोई गिरावट न आए. ऐसी एक विधि है कैनोपी प्रबंधन (Canopy Management).
कब करें कैनोपी प्रबंधन?
अगर नए बागों का शुरू से और पुराने बागों का क्रमशः कैनोपी (छत्र) प्रबंधन किया जाय तो इससे उत्पादन तो बढ़ेगा ही, फलों की गुणवत्ता भी सुधरेगी. देश और विदेश में इसके निर्यात की संभावनाएं बढ़ेंगी. इन सबका लाभ बढ़ी आय के रूप में किसानों को होगा. जानकारों की मानें तो फिलहाल 15 साल से ऊपर के तमाम बाग जंगल जैसे लगते हैं. पेड़ों की एक दूसरे से सटी डालियां, सूरज की रोशनी के लिए एक दूसरे से प्रतिद्वंदिता करती मुख्य शाखाएं- कुल मिलाकर इनका रखरखाव संभव नहीं. इसके नाते उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. कैनोपी प्रबंधन (Canopy Management) ही इसका एक मात्र हल है. आम में बौर आने के पहले ही कैनोपी प्रबंधन करने का उचित समय होता है.
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15 साल से ऊपर के बागानों का कैनोपी प्रबंधन जरूरी
रहमान खेड़ा (लखनऊ) स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सुशील कुमार शुक्ल के अनुसार, पौधरोपण के समय से ही छोटे पौधों का और 15 साल से ऊपर के बागानों का अगर वैज्ञानिक तरीके से कैनोपी प्रबंधन (Canopy Management) कर दिया जाय तो इनका रखरखाव, समय-समय पर बेहतर बौर और फल के लिए संरक्षा और सुरक्षा का उपाय आसान होगा। इससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों सुधरेगी.
कैनोपी प्रबंधन का उचित समय
आम में बौर आने के पहले (दिसंबर, जनवरी) ही कैनोपी प्रबंधन का उचित समय भी है. शुरुआत में ही मुख्य तने को 60 से 90 सेमी पर काट दें. इससे बाकी शाखाओं को बेहतर तरीके से बढ़ने का मौका मिलेगा. इन शाखाओं को किसी डोरी से बांधकर या पत्थर आदि लटकाकर शुरुआती वर्षों (1 से 5 वर्ष) में पौधों को उचित ढांचा देने का प्रयास भी कर सकते हैं.
उन्होंने बताया कि ऐसे बाग जिनकी उत्पादन क्षमता सामान्य है, लेकिन शाखाएं बगल के वृक्षों को छूने लगती हैं, वहां काट-छांट कर कैनोपी प्रबंधन करना जरूरी है. अगर इस अवस्था में बेहतर तरीके से कैनोपी प्रबंधन (Canopy Management) कर दिया जाये तो जीर्णोंद्धार की नौबत कभी नहीं आएगी. इसके बाबत वृक्षों का निरीक्षण कर हर वृक्ष में उनके एक या दो शाखाओं या शाखाओं के कुछ अंश को चिह्नित करें, जो छत्र के मध्य में स्थित हों तथा वृक्ष की ऊंचाई के लिए सीधी तौर पर जिम्मेदार हों.
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कैनोपी प्रबंधन के फायदे
इन चिह्नित शाखाओं या उनके अंश को उत्पत्ति के स्थान से ही काट कर हटा दें. यह काम अगर बिजली, बैटरी या पेट्रोल से चलने वाली आरी से करें तो इसमें श्रम और समय की तो बचत होती ही है, छाल भी नहीं फटती. लिहाजा इसका लाभ बागवान को अगले वर्ष से ही मिलने लगता है. इससे वृक्ष की ऊंचाई कम हो जाती है. वृक्ष के छत्र के मध्य भाग में सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता बढ़ जाती है. परिणाम स्वरूप फलों की गुणवत्ता बढ़ती है. हवा का आवागमन बढ़ जाता है. नये कल्ले आते हैं और उचित प्रकाश के कारण कल्लों में परिपक्वता आती है. कीटों और रोगों का प्रकोप भी कम होता है. रोकथाम और फसल संरक्षा भी आसान हो जाती है. इसमें तीस साल या इससे ऊपर के बाग आते हैं. ऐसे तमाम बाग कैनोपी प्रबंधन (Canopy Management) न किए जाने से अनुपयोगी या अलाभकारी हो जाते हैं. इनकी जगह पर नए बाग लगाना एक खर्चीला और पेड़ काटने की मुश्किल से अनुमति मिलने के कारण अधिक समय लेने वाला काम है.
ये तरीका भी कारगर
डॉ.सुशील कुमार शुक्ला के अनुसार, इसके लिए दिसंबर- जनवरी में सभी मुख्य शाखाओं को एक साथ काटने की बजाय सबसे पहले अगर कोई एक मुख्य शाखा हो जो सीधा ऊपर की तरफ जाकर प्रकाश के मार्ग में बाधा बन रही हो, उसको उसके उत्पत्ति बिंदु से ही काट दें. इसके बाद पूरे वृक्ष में 4-6 अच्छी तरह से चारों ओर फैली हुई शाखाओं का चयन करें. इनमें से मध्य में स्थित दो शाखाओं को पहले वर्ष में, फिर अगली दो शाखाओं को दूसरे वर्ष और बाकी एक या दो जो कि सबसे बाहर की तरफ स्थित हों, उन्हें तीसरे वर्ष में काट दें.
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साथ ही जो शाखाएं बहुत नीचे और अनुत्पादक या कीटो और रोगों से ग्रस्त हों, उन्हें भी निकाल दें. कटे हुए स्थान पर 1:1:10 के अनुपात में कॉपर सल्फेट, चूना और पानी, 250 मिली अलसी का तेल, 20 मिली कीटनाशक मिलाकर लेप करें. गाय का गोबर और चिकनी मिट्टी का लेप भी एक विकल्प हो सकता है. इस प्रकार काटने से शुरू के वर्षों में बाकी बची शाखाओं से भी 50 से 150 किग्रा प्रति पेड़ तक फल प्राप्त हो जाते हैं और लगभग तीन वर्षों में वृक्ष पुन: छोटा आकार लेकर फलत शुरू कर देते है. ऐसे बागों की सभी शाखाओं को एक साथ कभी न काटें. क्योंकि, तब पेड़ को तनाबेधक कीट से बचाना मुश्किल हो जाता है. इनके प्रकोप से 20 से 30% पौधे मर जाते हैं.
ऐसे करें गुजिया कीट की रोकथाम
गुजिया कीट के रोकथाम के लिए वृक्षों के तने के चारों ओर गुड़ाई कर क्लोर्पयरीफोस 250 ग्राम वृक्ष पर लगाएं. तनों पर पॉलीथिन की पट्टी बांधें. पाले से बचाव हेतु बाग की सिंचाई करें और अगर खाद नहीं दी गई है तो 2 किलो यूरिया, 3 किलोग्राम एसएसपी और 1.5 किलो म्यूरियट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष देनी चाहिए.
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ट्रेनिंग लेकर आमदनी बढ़ाएं युवा
कैनोपी प्रबंधन (Canopy Management) की सबसे बड़ी समस्या है कुशल श्रमिकों का न मिलना. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान इसके लिए इच्छुक युवाओं को प्रशिक्षण भी देता है. इस दौरान उनको बिजली, बैटरी या पेट्रोल से चलने वाली आरी से काम करने का तरीका और उनके रखरखाव की जानकारी दी जाती है. युवा यह प्रशिक्षण लेकर अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं. बाग के प्रबंधन से बागवानों को होने वाला लाभ बोनस होगा.