बगीचे के कचरे से सीख लें खाद बनाने की तकनीक, बचत के साथ फसलों की बढ़ेगी पैदावार
Compost from Garden Waste: अपने बगीचे के कचरे को रिसाइकल करके लैंडफिल में जाने वाले कचरे की मात्रा को कम किया जा सकता है.
Compost from Garden Waste: बगीचे के कचरे से खाद बनाना एक उपयोगी प्रबंधन तकीनक है. अपने बगीचे के कचरे को रिसाइकल करके लैंडफिल में जाने वाले कचरे की मात्रा को कम किया जा सकता है. बगीचे के कचरे से बनी खाद में अच्छी गुणवत्ता होती है. इस प्रक्रिया के दौरान रोग और कीट दूर हो जाते हैं. कम्पोस्टिंग का अंतिम उत्पादन, हाई पोषक तत्व वाला प्रूमस (खाद) है. यह खेत की पैदावार और बेहतर क्वालिटी वाली फसलों को बढ़ाता है.
खाद बनाने का प्रोसेस
आईसीएआर की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि अवशेषों की खाद बनाने की पुरानी पद्धति के अनुसार एक बड़े गड्ढे में पूरे खेत का अवशेष डाला जाता था. बरसान में इसमें पानी भर जाता था, जिससे यह खाद सड़ जाती थी. इस खाद को तैयार होने में 5-6 महीने तक लगते हैं. संशोधित पद्धति के तहत अवशेष को गड्ढे में न डालकर समतल भूमि पर रखते हैं. इसमें रेशा, लिग्निन, सेल्यूलोज बहुत ज्यादा होता है है और नाइट्रोजन की मात्रा से कम होती है. हरा चारा खाने वाले पशुओं का गोबर सूक्ष्मजीवों का प्रमुख स्रोत है.
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बागवानी अवशेषों को कैसे सड़ाएं
एक क्विंटल बगीचे के कचरे में 1 किग्रा यूरिया पानी में घोलकर मिलाएं, जिससे सूक्ष्मजीवों की बढ़ोतरी के लिए नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ सके. इसके स्थान पर नाइट्रोजनयुक्त कृषि अवशे, जैसे ढैंचा आदि भी मिला सकते हैं. हरा चारा खआने वाले पशुओं का गोबर 1:3 के रेश्यो में यानि 25 किग्रा प्रति क्विंटल की दर से मिलाएं. खाद तैयार होने तक नमी की मात्रा 50-60 फीसदी तक बनाए रखें. इसके लिए पानी छिड़काव की विधित से डाला जाए, तो बेहतर है. वायवीय स्थिति बनाये रखने के लिए और उत्पन्न ऊर्जा और ताप को विसर्जित करने के लिए खाद को प्रत्येक तीसरे या चौथे दिन पलट दें. एक महीने में कचरे से खाद तैयार हो जाती है. यह ध्यान देना चाहिए कि जहां खाद बनायी जाए वहां सतह पक्की हो, जिससे खाद के उपयोगी तत्व जमीन में न चला जाए. खाद के ढेर के ऊपर अगर शेड इत्यादि लगा दिया जाए, तो बरसात से बचाया जा सकता है. इस खाद का जैविक मूल्य गोबर की खाद के बराबर होता है.
बगीचे के कचरे से खाद बनाकर प्रद्रूषण की समस्या को कम कर सकते हैं. जैविक पदार्थ के रिसाइकल करने जमीन की उर्वराशक्ति को भी बनाए रख सकते हैं.
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