Heat wave: गर्मी बढ़ने के साथ पशुओं को लू लगने का खतरा भी बढ़ जाता है. कई बार तेज गर्मी में पशुओं की त्वचा सिकुड़ने और दूध की मात्रा कम होने के मामले देखे जाते हैं. इसे देखते हुए सरकार ने किसानों और पशुपालकों के लिए एडवायजरी जारी की है. पशुओं को तपती गर्मी और लू से बचाने के लिए विशेष इंतजाम करने की सलाह दी है, ताकि दूध डेयरी के कारोबार पर बुरा असर ना पड़े. पशुओं की देखभाल में जरा सी लापरवाही उन्हें गंभीर बीमारियों का शिकार बना देती है, जिससे पशुओं की जान चली जाती हैं. आइए जानते हैं पशुओं में गर्मी और लू लगने के लक्षण और उपचार के बारे में.

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बिहार सरकार पशु एवं मत्स्य संसाधान विभाग ने ट्वीट कर कहा, गर्मी के मौसम में जब बाहरी वातारण का तापमान अधिक हो जाता है तो वैसी स्थिति में पशु को ज्यादा तापमान पर ज्यादा देर तक रखने से या गर्म हवा के झोंको के संपर्क में आने पर लू लगने का डर ज्यादा होता है, जिसे हिट स्ट्रोक या सन स्ट्रोक करहते हैं.

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पशुओं में लू लगने के लक्षण

पशुओं में लू लगने के मुख्य लक्षण हैं-  तीव्र ज्वार की स्थिती, मुंह खोलकर जोर-जोर से सांस लेना अर्थात हांफन एवं मुंह से लार गिरना, क्रियाशीलता कम हो जाना और बेचैनी की स्थि, भूख में कमी और पानी अधिक पीना एवं पेशाब कम होना अथवा बंद हो जाना, धड़कन तेज होना और कभी-कभी अफरा की शिकायत होना.

  • पशुओं में लू से बचाव के उपाय

  • पशुओं को धूप और लू से बचाव के लिए पशुओं को हवादार पशुगृह अथवा छायादार वृक्ष के नीचे रखें जहां सूर्य की सीधी किरणें पशुओं पर न पड़े.
  • पशुगृह को ठंडा रखने के लिए दीवारों के ऊपर जूट की टाट लटकाकर उसपर थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी का छिड़काव करना चाहिए ताकि बाहर से आने वाली हवा में ठंडक बनी रहे.
  • पखें अथवा कूलर का यथासंभाव उपयोग करें.
  • पशुओं में पानी और लवण की कमी हो जाती है. साथ ही भोजना में अरूची हो जाती है. इन्हें ध्यान में रखकर दिन में कम से कम चार बार साफ, स्वच्छ और ठंडा जल उपलब्ध कराना चाहिए. साथ ही संतुलित आहार के साथ-साथ उचित मात्रा में खनिज मिश्रण देना चाहिए.
  • पशुओं खासकर भैंस को दिन में दो-तीन बार नहलाना चाहिए.
  • आहार में संतुलन के लिए एजोला घास का उपयोग किया जा सकता है, साथ ही आहार में गेहूं का चोकर और जौ की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए.
  • पशुओं को चराई के लिए सुबह जल्दी और शाम में देर से भेजना चाहिए.

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पशुओं में लू लगने के उपचार

  • सबसे पहले शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए पशु को ठंडे स्थान पर रखा चाहिए.
  • पशु को पानी से भरे गड्ढे में रखना चाहिए अथवा पूरे शरीर पर ठंडे पानी का छिड़काव करना चाहिए. संभव हो तो बर्फ या अल्कोहल पशुओं के शरीर पर रगड़ना चाहिए.
  • ठंडे पानी में तैयार किया हुआ चीनी, भुने हुए जौ का आटा व थोड़ा नमक का घोल बराबर पिलाते रहना चाहिए.
  • पशु को पुदीन व प्याज का अर्क बनाकर देना चाहिए.
  • शरीर के तापमान को कम करने वाली औषधी का प्रयोग करना चाहिए.
  • शरीर में पानी व लवणों की कमी को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रोलाइट थेरेपी करना चाहिए.
  • विषम परिस्थिति में नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करना चाहिए.

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