Glyphosate ban: खेती-किसानी करने वालों के लिए एक बड़ी खबर है. सरकार ने इंसान और जानवरों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरों और जोखिम को देखते हुए हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट (Glyphosate) और इसके डेरिवेटिव्स के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है. ग्लाइफोसेट और इसके फॉर्मूलेशन व्यापक रूप से रजिस्टर्ड हैं और मौजूदा वक्त में यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित 160 से अधिक देशों में इसे इस्तेमाल में लाया जाता है. दुनियाभर के किसान 40 से अधिक वर्षों से सुरक्षित और प्रभावी खरपतवार कंट्रोल के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. एक उद्योग संगठन एजीएफआई (AGFI) ने ग्लोबल रिसर्च और नियामक निकायों से समर्थन का हवाला देते हुए ग्लाइफोसेट पर प्रतिबंध का विरोध किया है.

सरकार ने नोटिफिकेशन में क्या कहा?

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कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक नोटिफिकेशन में कहा गया है, Glyphosate का इस्तेमाल बैन है और कोई भी व्यक्ति, पेस्ट कंट्रोल ऑपरेटर्स (PCO) को छोड़कर ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल नहीं करेगा. कंपनियों को ग्लाइफोसेट और उसके डेरिवेटिव के लिए दिए गए रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेटको रजिस्ट्रेशन कमिटी को वापस करने के लिए कहा गया है. जिससे लेबल और लिफलेट पर बड़े अक्षरों में चेतावनी को शामिल किया जा सके. नोटिफिकेशन में कहा गया, पीसीओ के माध्यम से ग्लाइफोसेट फॉर्मूलेशन के लिए अनुमति दी जाएगी.

3 महीने में वापस करने होंगे सर्टिफिकेट्स

सरकार ने कंपनियों को सर्टिफिकेट्स वापस करने के लिए 3 महीने का समय दिया है. Insecticides Act, 1968 के प्रावधानों के अनुसार सख्त कार्रवाई की जाएगी. इसमें कहा गया है कि राज्य सरकारों को इस आदेश के क्रियान्वयन के लिए कदम उठाने चाहिए. Glyphosate को प्रतिबंधित करने वाली अंतिम अधिसूचना 2 जुलाई, 2020 को मंत्रालय द्वारा एक मसौदा जारी किए जाने के दो साल बाद आई है. इस खरपतवार नाशक के डिस्ट्रीब्यूशन, बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए केरल सरकार की एक रिपोर्ट के बाद मसौदा जारी किया गया था.

बढ़ जाएगी खेती की लागत

इस कदम का विरोध करते हुए, एग्रो-केमिकल फेडरेशन ऑफ इंडिया (ACFI) के महानिदेशक कल्याण गोस्वामी ने कहा, ग्लाइफोसेट-आधारित फॉर्मूलेशन उपयोग करने के लिए बहुत सुरक्षित हैं. भारत सहित दुनियाभर में अग्रणी नियामक प्राधिकरणों द्वारा इसका परीक्षण और सत्यापन किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि केवल कीट नियंत्रण परिचालकों के माध्यम से ग्लाइफोसेट के उपयोग को सीमित करने का कोई तर्क नहीं है, जिनकी ग्रामीण क्षेत्रों में कोई उपस्थिति नहीं हैं. उन्होंने कहा कि पीसीओ के माध्यम से इसके उपयोग को सीमित करने से किसानों को असुविधा होगी और खेती की लागत भी बढ़ेगी.