Bio Fungicide: रासायनिक कीटनाशकों का लगातार इस्तेमला कर किसान मिट्टी और फसलों की गुणवत्ता बिगाड़ रहे है. किसान फंगल (ट्राइकोडर्मा) का इस्तेमाल कर फसलों को निरोगी कर सकते हैं. इससे फसलों की गुणवत्ता तो बढ़ती ही है, उत्पादन भी पहले से ज्यादा हो होता है. बीज व जमीन शोधन में ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) उपयोगी है. यही कारण है कि इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. सरकार इस पर 75 फीसदी अनुदान भी देती है.

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ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) डालकर जैविक खाद तैयार की जा सकती है. इससे फसलों को फफूंदीजनित रोगों से निजात मिलती है. एक किलो ट्राइकोडर्मा में 45-50 किलो गोबर की खाद मिलाकर 10-15 दिन तक छांव में रखने के बाद शाम के समय खेत में नमी की अवस्था में मिलाया जाता है. इसका इस्तेमाल आलू, गेहूं और दलहन की फसलों में कर सकते हैं. 

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उप्र कृषि विभाग के मुताबिक, पहले वर्ष में पैदावार में कुछ कमी आ सकती है. फिर उत्पादकता और गुणवत्ता में काफी सुधार हो जाएगा. प्रदेश में किसान ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल कर हर फसल में करते हैं. रासायनिक कीटनाशक, उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती, फसलों में रोग नहीं लगता. लागत कम आती है. ट्राइकोडर्मा से बीज व जमीन शोधन किया जा सकता है. इससे उकठा, जड़ गलन, तना गलन व आलू में चेचक रोग दूर होता है.

ट्राइकोडर्मा से उपचार

  • बीज उपचार- बोआई से पहले ट्राइकोडर्मा के घोल में बीजों को भिगोने से पौधों का फंगस रोगों से बचाव होता है.
  • जड़ उपचार- पौधों की जड़ ट्राइकोडर्मा  के घोल में डुबोकर लगाने से जड़ें मजबूत होती है, मिट्टी फफूंद से सुरक्षित रहती है.
  • भूमि उपयोग- ट्राइकोडर्मा को जैविक खाद में मिलाकर मिट्टी में डाला जाता है. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है.
  • पत्तियों पर छिड़काव- ट्राइकोडर्मा के घोल को पौधों की पत्तियों पर छिड़कने से फंगल रोगों का खतरा कम होता है.

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ट्राइकोडर्मा के फायदे

  • रासायनिक कीटनाशक व फफूंदीनाशक का बेहतक विकल्प है.
  • ट्राइकोडर्मा के उपयोग से पर्यावरण को नुकसान हीं पहुंचता है.
  • पौधों के जड़, तना और पत्तियों को फंगल रोगों से बचाता है.
  • मिट्टी में पोषक तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों की बढ़ोतरी करता है.
  • मिट्टी में लंबे समय तक सक्रिय रहकर पौधों को सुरक्षित करता है.