Oil Prices: सूरजमुखी (Sunflower) और सोयाबीन (Soybean) जैसे आयातित हल्के (सॉफ्ट) खाद्य तेलों की कीमतें टूटने से स्थानीय तेल कीमतों पर दबाव बढ़ने और जाड़े व शादी-विवाह के मौसम की मांग के बीच बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्य तेल कीमतों में कारोबार का मिला-जुला रुख दिखा. सरसों तेल (Mustard Oil), मूंगफली तेल-तिलहन, सोयाबीन तिलहन, कच्चा पामतेल (Crude Palmoil) और पामोलीन तेल कीमतों में जहां सुधार आया, वहीं सरसों पेराई में मिल वालों को नुकसान होने से सरसों तिलहन कीमतों में गिरावट आई. ड्यूटी फ्री इम्पोर्ट काफी सस्ता होने से सोयाबीन तेल (Soybean Oil) कीमतों में भी गिरावट आई. बाकी तेल-तिलहनों के भाव पहले के स्तर पर बने रहे.

सरसों तेल कीमतों में आया मामूली सुधार

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बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि तेल पेराई मिलों को सरसों की पेराई करने में 4-5 रुपये प्रति किलो का नुकसान है. मिल वालों की मांग कमजोर होने से सरसों तिलहन में गिरावट आई. नीचे भाव में तेल मिलों द्वारा बिकवाली कम करने से सरसों तेल कीमतों में मामूली सुधार आया.

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किसानों को नहीं मिल रहा कोई फायदा

सूत्रों ने कहा कि विदेशों में सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के दाम में पिछले 6 माह के दौरान 70-90 रुपये किलो की गिरावट आई है. दूसरी ओर सरकार ने कीमतों को कम करने के मकसद से सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात को ड्यूटी फ्री करते हुए कोटा सिस्टम लागू कर दिया जिसके अनपेक्षित रूप से उल्टे परिणाम देखने को मिले हैं.

स्थानीय तेल उद्योग संकट में है क्योंकि उनकी पेराई की लागत सस्ते खाद्य तेल के आयात भाव से काफी महंगी बैठती है. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा क्योंकि उनके तिलहन की खपत प्रभावित हुई है. उपभोक्ताओं को तेल सस्ता होने के बजाय काफी ऊंची दरों पर मिल रहा है.

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खाद्य तेल आयात का खर्च बढ़ा

सूत्रों ने कहा कि पिछले नवंबर में समाप्त हुए तेल वर्ष में खाद्य तेलों के आयात में 6.8% यानी 9 लाख टन सालाना की बढ़ोतरी हुई है जिसका साफ मतलब है कि अपनी जरूरत के लिए लगभग 60% खाद्य तेलों के आयात पर निर्भर इस देश में सरसों और सोयाबीन जैसे तिलहन का उत्पादन बढ़ने के बाद भी सस्ते आयातित तेल के कारण देशी तिलहन बाजार में खप नहीं रहा है. खाद्य तेल आयात पर विदेशी मुद्रा खर्च भी पहले के 1,17,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,57,000 करोड़ रुपये हो गया है.

सोयाबीन तिलहन कीमतों में सुधार

सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक होने के बावजूद पिछले साल से कम होने के कारण मंडियों में किसान कम माल ला रहे हैं जिससे सोयाबीन तिलहन कीमतों में सुधार आया. मंडियों में जो सोयाबीन की आवक पिछले सप्ताह लगभग 8 लाख बोरी की थी वह घटकर लगभग 5 लाख बोरी रह गई है. दूसरी ओर विदेशों से सस्ता आयात होने के कारण सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट आई.

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बिनौला-कपास नरमा की आवक आधी घटी

सूत्रों ने कहा कि किसानों द्वारा नीचे भाव में बिकवाली नहीं करने और उपभोक्ता मांग बढ़ने के कारण मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में सुधार आया. सूत्रों ने कहा कि इस वर्ष मंडियों में बिनौला, कपास नरमा की आवक घटकर लगभग आधी रह गई है जिससे बिनौला तेल कीमतों में सुधार आया. बता दें कि पशु आहार के लिए सबसे अधिक यानी लगभग 110 लाख टन खल की प्राप्ति बिनौले से होती है.

सूत्रों ने कहा कि भाव नीचे होने के कारण कच्चे पामतेल (CPO) और पामोलीन तेल की भारी मांग है जिससे इन दोनों तेलों की कीमतों में मामूली मजबूती दिखी. उन्होंने कहा कि पाम, पामोलीन देशी तेलों के कीमत पर ज्यादा असर नहीं डालते और इसकी ज्यादा खपत कमजोर आय वर्ग के लोग करते हैं. देशी तेल-तिलहनों पर सबसे अधिक असर सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे हल्के तेल डालते हैं जिसकी खपत उच्च आय वर्ग के लोग करते हैं. सरकार ने रैपसीड तेल पर जो 38.5% आयात शुल्क लगा रखा है उसी तरह बाकी आयातित हल्के तेलों पर भी लगाया जाना चाहिये जो समय की मांग है.

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MRP का कोई नियम नहीं

सूत्रों ने कहा कि तेल-तिलहन की महंगाई में सबसे बड़ी दिक्कत बड़ी खाद्य तेल कंपनियों के अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) निर्धारण की प्रथा में छिपी है, जिसका कोई नियम नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से कोई समूह जाकर बाजार में मॉल या बड़ी दुकानों में सूरजमुखी, मूंगफली, सोयाबीन रिफाइंड, सरसों आदि खाद्य तेलों के भाव की जांच करे तो ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ हो जायेगा. इस पहलू पर भी ध्यान देना चाहिए कि किसानों से तिलहन की खरीद किस भाव पर की गई थी या बंदरगाह पर इसके आयातित तेल का थोक भाव क्या है.

उन्होंने कहा कि तेल कीमतों के बढ़ने की खबरों के आने पर सरकार जब तेल कंपनियों को कीमतें कम करने के लिए कहती है, तो पहले से 60-100 रुपये के बढ़े हुए एमआरपी में ये कंपनियां सिर्फ 15 रुपये प्रति लीटर की कमी करती हैं.

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