खेती में एक बड़े बदलाव की शुरुआत हो रही है. हरियाणा के करनाल में महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय में राज्या का पहला ड्रोन स्कूल खुला है, जिससे कि अब किसान और युवा भी ड्रोन पायलट बनेंगे. केंद्र ने इसके लिए दो ड्रोन भी दिए हैं. ड्रोन का इस्तेमाल खेती में कैसे हो, बागवानी विश्वविद्यालय इसकी ट्रेनिंग देगी. केंद्र की मोदी सरकार की ओर से किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में खेती में नए-नए कृषि यंत्रों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है. इसमें अब ड्रोन का भी नाम शामिल हो गया है. ड्रोन की खेती में उपयोगिता बढ़ाने को लेकर सरकार की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. इसके लिए किसानों और युवाओं को ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण दिए जाने की योजना बनाई गई है.

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इसी क्रम में करनाल के महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय में प्रदेश का पहला ड्रोन स्कूल खोला गया है. इसमें युवाओं को ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके लिए विश्विद्यालय द्वारा केंद्र से दो ड्रोन खरीदे गए हैं और कुछ नए ड्रोन और खरीदे जाएंगे.

3 घंटे का काम 10 मिनट में हो सकता है

ड्रोन ट्रेनर धीरज ने बताया कि ड्रोन की मदद से 10 मिनट के अंदर एक एकड़ क्षेत्र में कीटनाशक का छिड़काव किया जा सकता है, जबकि इसी काम को पेटीनुमा स्प्रे उपकर से किसान को करीब तीन घंटे का समय लगता है. इसके अलावा ड्रोन से कीटनाशक का छिड़काव करने पर समय की बचत होती है और कीटनाशक के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकता है. खेती में ड्रोन का इस्तेमाल खेत की मैपिंग और सर्वेक्षण में किया जा सकता है. 

भारतीय खेती की जरूरत को ध्यान में रखते हुए अब विशेष ड्रोन खेती के इस्तेमाल के लिए विकसित किए जा रहे हैं. ड्रोन की मदद से किसान खेत की निगरानी कर सकते हैं. इससे किसान कहीं भी बैठ कर यह देख सकता है और खेत की स्थिति को मॉनिटर कर सकता है. खेती में आज ड्रोन की मदद से काफी काम हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि फसलों के विविधिकरण की पहचान, ड्रोन से मैपिंग, ड्रोन से जमीन की उर्वरक क्षमता का पता लगाना, ड्रोन से स्प्रे जैसे कार्य करना आसान हो गया है. ड्रोन की तकनीकी को अभी और भी विकसित किया जा रहा है. 

वही किसानों ने यहां ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर खोले जाने पर खुशी जताते हुए कहा कि जिस तरह से वर्तमान समय में खेती का रूप बदल रहा है उससे ड्रोन तकनीक हमारे लिए काफी फायदेमंद साबित होगी. उन्होंने कहा कि इससे लेबर और समय की बचत होगी साथ ही कीटनाशकों का इस्तेमाल भी कम किया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि परंपरागत खेती के साथ-साथ हमें नई तकनीक को भी अपनाना होगा तभी हम खेती से फायदा ले सकते हैं.