इस साल भी खाने-पीने की महंगाई से नहीं मिलेगी राहत, 15% तक बढ़ेगी अनाज की कीमतें, जानिए क्यों?
Food Inflation: चालू वित्त वर्ष में भी, पहले 10 महीनों में अनाज की कीमतें सालाना आधार पर काफी बढ़ी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां गेहूं और धान की कीमतें 8-11% बढ़ी हैं, वहीं मक्का, ज्वार और बाजरा की कीमतें 27-31% बढ़ी हैं.
Food Inflation: आरबीआई और केंद्र सरकार, खाने-पीने की महंगाई को काबू करने के लिए कई उठा रही है. इसके बावजूद एक रिपोर्ट ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है. क्रिसिल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि पिछले 5 वर्षों के औसत की तुलना में अगले वित्त वर्ष में अनाज की कीमतें 14-15% ज्यादा रहने की उम्मीद है. अगर वजह की बात करें तो जलवायु परिवर्तन की अनियमितता, मजबूत वैश्विक मांग और घरेलू मांग में बढ़ोतरी है. इसके चलते खाने-पीने के सामान की महंगाई कम होने की संभावना कम है.
अनाज की कीमतें सालाना आधार पर काफी बढ़ी
चालू वित्त वर्ष में भी, पहले 10 महीनों में अनाज की कीमतें सालाना आधार पर काफी बढ़ी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां गेहूं और धान की कीमतें 8-11% बढ़ी हैं, वहीं मक्का, ज्वार और बाजरा की कीमतें 27-31% बढ़ी हैं.
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गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन रहने की उम्मीद
क्रिसिल को मौजूदा रबी सीजन (Rabi Season) में गेहूं का उत्पादन अधिक रहने की उम्मीद है. जनवरी 2023 (अप्रैल 2020 में घोषित मुफ्त खाद्यान्न योजना) से निर्यात पर लगातार प्रतिबंध और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana) को बंद करने के बावजूद, जो पिछले वर्ष की तुलना में स्टॉक की स्थिति को आरामदायक स्तर तक लाने की उम्मीद है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि उपरोक्त उपाय वित्त वर्ष 2024 के लिए गेहूं की कीमतों पर दबाव डालेंगे. क्रिसिल के अनुसार, धान, मक्का, बाजरा और ज्वार जैसी प्रमुख खरीफ फसलों के लिए, अगले वित्त वर्ष के लिए भी उत्पादन अधिक होने का अनुमान है, बशर्ते मानसून सामान्य और अच्छी तरह से फैला हुआ हो.
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अल नीनो बिगाड़ सकता है माहौल
हालांकि, नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने जून-जुलाई 2023 के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून पर अल नीनो (El Nino) के प्रभाव की लगभग 49% संभावना और जुलाई-सितंबर के बीच 57% की भविष्यवाणी की है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है.
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क्रिसिल ने कहा- यह देखने योग्य है, यह खरीफ के लिए वर्षा को प्रभावित कर सकता है और सूखे की स्थिति पैदा कर सकता है, जैसा कि पिछले मजबूत अल नीनो वर्ष (2015) के दौरान हुआ था जब दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य से 14% कम था और खरीफ अनाज का उत्पादन साल-दर-साल 2-3% कम हुआ था.
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(IANS इनपुट)