Cauliflower Farming Tips: गोभी में लगते हैं ये कीट और रोग, जानिए रोकथाम का तरीका
Cauliflower Cultivation: भारत, दुनियाभर में गोभीवर्गीय सब्जियों के मुख्य उत्पादकों में से एक है. बड़े पैमाने पर उत्पादन के बावजूद, कीटों और रोगों के हमले के कारण इन फसलों की उत्पादकता कम है.
Cauliflower Cultivation: गोभी रबी सीजन की महत्वपूर्ण सब्जी फसल है. ये संतुलित आहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. भारत, दुनियाभर में गोभीवर्गीय सब्जियों के मुख्य उत्पादकों में से एक है. बड़े पैमाने पर उत्पादन के बावजूद, कीटों और रोगों के हमले के कारण इन फसलों की उत्पादकता कम है. कुछ कीट और रोग लंबे समय से गोभी (Cauliflower) सब्जी में समस्या बने हुए हैं. आइए जानते हैं इन रोगों और कीटों के प्रबंधन के उपाय.
गोभी सब्जी के कीट
डायमंड बैक मोथ/हीरक पीठ पतंगा-
आईसीआरए के मुताबिक, यह दुनियाभर में गोभीवर्गीय सब्जियों का प्रमुख कीट है. इसकी सूंडियां पत्तियों में छेद बनाकर हरित पदार्थ को खा जाती हैं और केवल सफेद झिल्ली रह जाती है. ज्यादा आक्रमण होने पर ये गोभी के फूल के अंदर चली जाती हैं और काफी नुकसान पहुंचाती हैं.
प्रबंधन- पतंगों का समय रहते पता लगाने लिए फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें. सरसों की फसल को गोभी फसल के साथ ट्रैप फसल के रूप में लगाएं. गोभी की प्रत्येक 25 पंक्तियों के लिए सरसों की 2 पंक्तियों की बुवाई करें. पहली लाइन गोभी की रोपाई से 12 दिन पहले और दूसरी रोपाई के 25 दिन बाद करें ताकि कीट सरसों पर अंडे देने के लिए आकर्षिक हों. प्राकृतिक खेती में किसान नीम तेल 3-5 मिली/लीटर या नीन बीज अर्क (5%) का 10-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें. फसल खत्म होने के बाद खेत में सभी बचे हुए पौधों और पत्तों को नष्ट कर दें और खेतों की अच्छी तरह से जुताई करें.
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गोभी की तितली-
शुरुआती अवस्था में सूंडियां समूह रहकर पत्तियों की सतह को खुरचती हैं. फिर बाहरी किनारों से खाना शुरू करके अंदर की ओर बढ़ती है. बड़ी होने पर सूंडियां फसल में फैल जाती हैं. ज्यादा प्रकोप होने पर ये पूरे पत्तों को खा जाती हैं और शिराएं ही बाकी रह जाती हैं.
प्रबंधन- पीले रंग के अंडे झुंड में पत्तों पर साफ नजर आते हैं. उन्हें और सूंडियों को शुरू में चुनकर नष्ट करें. प्राकृतिक खेती में प्रबंधन डीबीएम की भांति करें. इस कीट को बैसिलस थुरेनजियनसिस और ग्रेनुलोसिस वायरस के इस्तेमाल से भी काबू में किया जा सकता है.
तम्बाकू की सूंडी-
इस कीट की सूंडियां ज्यादातर रात को सक्रिय होती है और व्यापक नुकसान पहुंचाती हैं. सूंडियां पत्तों व नई बढ़वार को खाती हैं. अधिक आक्रमण होने पर पौधों के सभी पत्ते नष्ट हो जाते हैं. बड़ी सूंडियां फूल-फलों को भी नुकसान पहुंचाती हैं.
प्रबंधन- अंडों और सूंडियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें. खेत को साफ करें और गहरी जुताई करें. लाइट ट्रैप 1 प्रति हेक्टेयर और फेरोमोन ट्रैप 15 प्रति हेक्टेयर दर से स्थापित करें. खेत में शिकारी पक्षियों जैसे मैने के बैठने के स्थानों को प्रोत्साहित करें. एन.पी.वी (सपोडोसाइड) (250 एल.ई प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव फूल आने की अवस्था पर करें.
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गोभी का तेला-
इसके शिशु व व्यस्क कीट पत्तों और फूलों की कोशिकाओं से रस चूसते हैं. ये ज्यादातर पौधे की पत्तियों और अग्रिम भागों पर देखे जाते हैं. प्रकोप से पौधे अस्वस्थ्य लगते हैं और पत्ते मुड़ जाते हैं. कीट से निकले मीठ चिपचिपे पदार्थ से पत्तों पर काली फफूंद लग जाती है.
प्रबंधन- फसल खत्म हो जाने पर बचे हुए पौधों को निकालकर नष्ट करें. नाइट्रोजन के इस्तेमाल में सावधानी बरतें. तेले की निगरानी के लिए पीले चिपचिपे ट्रैप की स्थापना करें. फसल पर 1 मिली मैलाथियान 50 ई.सी या 1 मि.ली डाइमैथोएट 30 ई.सी या 0.2 मि.ली एसीटामिप्रिड प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. छिड़काव प्रत्येक 15 दिनों बाद करते रहें और तुड़ाई के सात दिनों पहले फसल पर छिड़काव बंद कर दें.
गोभी सब्जी के रोग
पौधा का कमर तोड़-
रोगी बीज मुलायम काले रंग का हो जाता है और दबाने पर आसानी से फट जाता है. अंकुरित बीज भी जमीने से बाहर निकलने पहले ही सड़ जाता है.
प्रबंधन- गर्मी के समय नर्सरी जमीन का पारदर्शी पॉलीथीन चादर से ढककर 45 दिनों तक सौरीकरण से उपचार करें. बीजाई के समय जैविक फफूंदनाशी जैसे ट्राइकोडर्मा विरिडी को गली-सड़ी देसी गोबर की खाद के साथ इस्तेमाल करें.
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काला सड़न-
इस रोग के मुख्य लक्ष्ण पत्तियों पर पीले रंग के साथ 'वी' आकार के धब्बे, जो किनारों से अंदर की ओर बढ़ते हैं, के रूप में होता है. पौधे के पत्ते की शिराएं गहरे काले रंग की हो जाती हैं.
प्रबंधन- रोगरहित व प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करें. बीज को 30 मिनट तक गर्म पानी में एक कपड़े की थैली में डालकर डुबोकर रखें, बाद में स्ट्रैप्टोसाइक्लिन के घोल में 20 मिनट तक डुबोएं. बीज वाली फसल में 15 दिनों के अंतराल पर फिर छिड़काव करें. प्राकृतिक खेती में 1 लीटर ताम्र लस्सी और 1 लीटर गोमूत्र का छिड़काव बीजाई के एक महीने बाद 10 दिनों के अंतराल पर करते रहें.
फूल सड़न रोग-
फूल का सड़ना कहीं से भी शुरू हो सकता है. फूल घाव से ही सड़ने लगते हैं. पत्तियों और फूलों पर जलासिक्त धब्बों के रूप में घाव दिखाई देते हैं.
प्रबंधन- पाला पड़ने से पहले फलों पर सुरक्षात्मक छिड़काव कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और स्ट्रैप्टोसाइक्लिन के घोल का करें. इस छिड़काव को 8-10 दिनों के अंतराल पर भी करें.
तना सड़न-
शुरुआती लक्षण निचली और ऊपरी पत्तियों के डंठलों पर तने के साथ पानी के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं. बाद में जब तना भी क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो पत्तों की चमक खत्म हो जाती है. ये धब्बे बझडकर गले-सड़े समूह के रूप में दिखाई देते हैं, जिन पर सफेद रूईदार वृद्धि दिखाई देती है. तने के अंदर से सड़कर खोलले और काले हो जाते हैं.
प्रबंधन- फूलगोभी-धान का फसलचक्र अपनाएं. रोगी पत्तों को नष्ट कर दें. फसल पर फूल बनने से बीज बनने तक 10-15 दिनों के अंतराल पर बाविस्टीन (1 ग्राम प्रति लीटर) और इंडोफिल एम-45 (2.5 ग्राम प्रति लीटर) के मिश्रण का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर जरूरत के अनुसार करें.