Budget 2023: बजट (Budget 2023-24) में फर्टिलाइजर कंपनियों के लिए अच्छी खबर हो सकती है. सूत्रों ने जी बिजनेस को बताया कि वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) जल्द ही फर्टिलाइजर मैन्युफैक्चरर्स के लिए इनपुट फिक्स्ड कॉस्ट की समीक्षा के लिए एक समिति के गठन पर फैसला कर सकता है. उर्वरक मंत्रालय ने इंडस्ट्री की मांगों को देखते हुए ऐसी समिति के गठन की मांग की थी, जो लंबे समय से प्रोडक्शन के फिक्स्ड कॉस्ट में संशोधन की मांग कर रही है. बता दें कि भारत अपनी यूरिया (Urea) की मांग का लगभग एक तिहाई इम्पोर्ट के जरिए पूरा करता है.

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सूत्रों ने कहा कि फर्टिलाइजर के लिए सब्सिडी चालू वर्ष के खर्च की तुलना में 2023-24 में कम हो सकती है, जिससे सरकार को हायर फिक्स्ड कॉस्ट का अतिरिक्त बोझ उठाने में मदद मिल सकती है. उन्होंने कहा कि पैनल देश भर में 37 यूरिया प्लांट्स के साथ फिक्स्ड कॉस्ट पर चर्चा करेगा.

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यूरिया मैन्युफैक्चरर्स को हो सकता है बड़ा फायदा

जी बिजनेस के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी ने कहा कि प्राइवेट यूरिया निर्माताओं को इस तरह के डेवलपमेंट से ज्यादा फायदा मिलने की संभावना है क्योंकि उनका फिक्स्ड कॉस्ट सरकारी कंपनियों की तुलना में कम है. उन्होंने कहा, बजट से फर्टिलाइजर कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है और यूरिया मैन्युफैक्चरर्स को बड़ा फायदा हो सकता है.

उन्होंने यह भी कहा कि चंबल फर्टिलाइजर्स (Chambal Fertilisers), कोरोमंडल इंटरनेशनल (Coromandel International) और राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (RCF) को सबसे ज्यादा फायदा होने की संभावना है.

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यूरिया (Urea) नाइट्रोजन आधारित उर्वरक है. सरकार किसानों के लिए बाजार से कम उर्वरक दरों को सुनिश्चित करने के लिए फर्टिलाइजर मैन्युफैक्चरर्स को सब्सिडी देती है. उर्वरक मंत्रालय सब्सिडी का भुगतान करने के लिए यूरिया के फिक्स्ड प्रोडक्शन कॉस्ट का कैलकुलेशन करता है. एक यूरिया प्लांट के लिए फिक्स्ड कॉस्ट में मुख्य रूप से सैलरी और मजदूरी, कॉन्ट्रैक्ट लेबर, रिपेयर, मेंटेनेंस और बिक्री खर्च जैसे कम्पोनेंट्स शामिल होते हैं.

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आपको बता दें कि बजट 2022-23 में सरकार ने फर्टिलाइजर सब्सिडी बिल (Fertiliser Subsidy Bill) के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपये निर्धारित किए थे. हालांकि, इसने वैश्विक कीमतों में तेज बढ़ोतरी का मुकाबला करने के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त सपोर्ट दिया गया था.

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