Mustard Crop: रबी की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई हो गई है. सरसों की फसल को कीटों और रोगों से काफी नुकसान पहुंचता है. जिससे इसकी उपज में काफी कमी हो जाती है और किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. अगर समय रहते इन रोगों और कीटों का नियंत्रण कर लिया जाये तो सरसों के उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है.

सरसों की फसल के मुख्य कीट और रोग

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चैंपा (मोयला) कीट, पेन्टेड बग कीट, आरा मक्खी कीट सरसों के मुख्य नाशी कीट है. जबकि तना गलन रोग, झुलसा रोग, सफेद रोली रोग और तुलासिता रोग सरसों के मुख्य रोग हैं. सरसों का यह रोग बहुत ही महत्वपूर्ण है और इस रोग के लगने से उत्पादन में कमी हो जाती है.

चैंपा (मोयला) कीट

चैंपा एक रस चूसने वाला कीट है. यह हरे रंग का छोटा व मुलायम कीट है जो फसल में फूलों के गुच्छों, कच्ची फलियों और पत्तियों की निचली सतह पर समूह में पाया जाता है. देरी से की गई बुवाई वाले खेतों में चैंपा कीट का प्रकोप अधिक होता है. 

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रोकथाम- चैंपा का प्रकोप होते ही एक हफ्ते के अंदर पौधे की मुख्य शाखा की 10 सेंटीमीटर की लंबाई में चैंपा कीट की संख्या 20-25 दिखाई दने पर मैलाथियॉन 5% चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर भरकाव करें या मैलथियॉन 50 ई.सी सवा लीटर या डायमिथोऐट 30 ई.सी 875 मिलीलीटर दवा प्रति हेक्टेयर 400-500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. जैविक नियंत्रण हेतु एजेडिरेक्टीन या नीम तेल आधारित कीटनाशी 500 मिलीलीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

पेन्टेड बग कीट

पेन्टेड बग कीट का प्रकोप सरसों की फल के अंकुरण के तुरंत बाद होता है. फसल की 7-10 दिन छोटी अवस्था में यह कीट पत्तियों का रस चूसकर फसल को पूरी तरह नष्ट कर देता है. पेन्टेड बग कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों पत्तियों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं. जिससे पौधे कमजोर व पीले पड़कर सूख जाते हैं. 

रोकथाम- सरसो फसल में शुरुआती अवस्था पर अगर पेन्टेड बग कीट का प्रकोप होता है तो डाईमिथोएट 30 ई.सी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.

आरा मक्खी कीट

सरसों फसल के अंकुरण के 25-30 दिन में ये कीट अधिक नुकसान पहुंचाता है. आरा मक्खी का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों के स्थान पर शिराओं का जाल ही शेष रह जाता है.

रोकथाम- इनकी रोकथाम के लिए बुवाई के सातवें दिन मैलाथियॉन 5 फीसदी या कार्बोरिल 5 फीसदी चूर्ण 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह या शाम को छिड़काव करें. जरूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दोहराएं.

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तना गलन रोग के लक्षण

इस रोग के कारण 35 फीसदी तक उपज में नुकसान होता है, यह रोग तराई व पानी भराव वाले स्थानों में अधिक होता है. इस रोग के कारण तने के चारों ओर कवक जाल बन जाता है. पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं. पौधों की ग्रोथ रुक जाती है. ग्रसित तने की सतह पर भूरी सफेद या काली गोल आकृति पाई जाती है.

रोकथाम- इसके नियंत्रण के लिए बुवाई के 50 दिन बाद कार्बेन्डिजम 0.1% (1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें. जरूरत पड़ने पर 20 दिन बाद फिर से छिड़काव करें.

झुलसा रोग के लक्षण

रोग का प्रकोप पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है. पत्तियों पर छोले, हल्के काले, गोल धब्बे बनते हैं. धब्बे में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं. 

सफेद रोली रोग के लक्षण

पत्तियों के नीचे के स्तर पर सफेद रंग के गोल फफोले दिखाई देते हैं, बाद में सरसों के फूल व फलियों में अधिक बढ़ोतरी का शिकार हो जाती है और फूल व पत्तियों की विकृत बढ़ोतरी दिखाई देती है.

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तुलासिता (डाउनी मिल्ड्य) रोग के लक्षण

पत्तियों की निचली सतर पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में बड़े हो जाते हैं. यही से रोग जनक की बैगनी रंग की बढ़ोतरी रुई के समान दिखाई देती है. रोग की तीव अवस्था में फूल कलियां नष्ट हो जाती है और पुष्पांगों में अतिवृद्धि या छितरापन आ जात है.

रोकथाम- सरसों की फसल में झुलसा, तुलासिता व सफेद रोली रोग के लक्षण दिखाई देते ही कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 50 डल्ब्यू.पी या मैन्कोजेब 75 फीसदी डब्ल्यू.पी का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें. जरूरत के अनुसार यह छिड़काव 20 दिन के अंतराल पर दोहराएं. सफेद रोली के नियंत्रण के लिए तीसरा छिड़काव कैराथेन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करना लाभदायक है.