Agri Business Idea: बैंगन की खेती खरीफ और रबी, दोनों सीजन में की जाती है. यह एक नकदी फसल है. बैंगन की खेती मिश्रित फसल के रूप में भी की जाती है. बैंगन शुष्क और गर्म जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है. बैंगन की खेती से मोटा मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको बैंगन की बेहतरीन किस्मों को जान लेना चाहिए. इसके बाद आप बैंगन की खेती (Brinjal Farming) कर सकते हैं और तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं. आइए जानते हैं बैंगन की खेती कब और कैसे की जाती है.

बैंगन की उन्नत किस्में

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इसकी उन्नत किस्मों जैसे- पूसा हाइब्रिड-5, पूसा हाइब्रिड-9, विजय हाइब्रिड, पूसा पर्पिल लौंग, पूसा क्लस्टर, पूसा क्रांति, पंजाब जामुनी गोला, नरेंद्र बागन-1, आजाद क्रांति, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट, टी-3 आदि प्रमुख हैं.

कब और कैसे करें बैंगन की खेती

ग्रीष्मकालीन बैंगन की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर है. मिट्टी का पी.एच मान 6 से 7 के बीच अच्छी है. ग्रीष्मकालीन बैंगन के लिए नर्सरी में बीज की बुवाई करें. ग्रीष्मकालीन बैंगन में खाद और उर्वरक की मात्रा प्रजाति, स्थानीय वातारण और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है. 

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अच्छी फसल के लिए 15-20 टन सड़ी गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय और पोषक तत्वों के रूप में रोपाई से पहले 60 किग्रा फॉस्फोरस, 60 किग्रा पोटाश और 150 किग्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा अंतिम जुलाई के समय मिट्टी में मिला दें और बाकी आधी नाइट्रोजन की मात्रा को फूल आने के समय प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

क्यारियों में लंबे फल वाली प्रजातियों के लिए 70-75 सेमी और गोल फल वाली प्रजातियों के लिए 90 सेमी की दूरी पर पौध रोपण करें. एक हेक्टेयर में फसल रोपण के लिए 250-300 ग्राम बीज की जरूरत होती है.

खरपतवार नियंत्रण

आईसीएआर की रिपोर्ट के मुताबिक, खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालिन या स्टाम्प नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से पौध रोपाई से पहले इस्तेमाल करें. इस बात का ध्यान रखें कि छिड़काव से पहले जमीन में नमी होनी चाहिए. निराई और गुड़ाई द्वारा भी खेत में खरपतवार नियंत्रण करना संभव है. फसल की जरूरत के अनुसार खेत में सिंचाई का प्रबंध करें.

कीटों से बचाना है जरूरी

तनाछेदक- इस कीट की सूंडी पौधों के प्ररोह को नुकसान करती है और बाद में मुख्य तने में घुस जाती है. छोटे ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं. बड़े पौधे मनरते नहीं, ये बौने रह जाते हैं और इनमें फल कम लगते हैं.

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प्ररोह व फलछेदक- इस कीट की सूंडी पौधे के प्ररोह व फल को नुकसान पहुंचाती है. ग्रसित प्ररोह मुरझाकर सूख जाते हैं. फलों में सूंडियां टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बनाती हैं. फल का ग्रसित भाग काला पड़ जाता है या लगते ही नहीं. तनाछेदक, प्ररोह व फलछेदक के नियंत्रण के लिए रेटून फसल न लें, इसमें फलछेजक का प्रकोप अधिक होता है. ग्रसित प्ररोहों व फलों को निकालकर मिट्टी में दबा दें. फलछेजक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं. नीम बीज अर्क (5 फीसदी) या बी.टी. 1 ग्राम प्रति लीटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी 1 मिली प्रति 4 लीटर या कार्बेरिल, 50 डब्ल्यू.पी 2 ग्राम प्रति लीटर या डेल्टमेथ्रिन 1 मिली प्रति लीटर का फूल आने से पहले इस्तेमाल करें.