Business Idea: तिल की खेती से होगा तगड़ा मुनाफा, जानिए बुवाई से लेकर कटाई का सही तरीका
Til Ki Kheti: तिल की खेती के लिए उपजाऊ जमीन की जरूरत नहीं होती, रेतीली-दोमट मिट्टी पर कम पानी में भी इसकी बुवाई कर सकते हैं.
(Image- ICAR)
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Til Ki Kheti: हर किसान चाहत होती है कि वो खेती से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाए, लेकिन ऐसा तभी मुमकिन है जब कुछ अलग तरीके की खेती की जाए. आज भी अधिकतर किसान धान-गेंहू जैसी पारंपरिक फसलों खेती कर रहे हैं. ऐसी खेती में मुनाफा अन्य फसलों की तुलना में कम है. वहीं अगर आप इससे कुछ हटकर खेती करते हैं तो आपको बंपर मुनाफा हो सकता है. ऐसी ही एक खेती है तिल की खेती (Sesame Farming), जिससे किसान तगड़ी कमाई कर सकते हैं.
देश में बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों का आयात किया जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में तिलहन मिशन प्रोग्राम की बदौलत तिलहन उत्पादन में बढ़ोतरी देखने को मिली है. तिलहनी फसलों में तिल का अपना महत्व है. यह राजस्थान में खरीफ की मुख्य तिलहनी फसल है और राज्य में इसकी खेती करीब 4-5 लाख हेक्टेय क्षेत्र में की जाती है.
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तिल की उन्नत किस्में
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अगर आप तिल की खेती करना चाहते हैं तो इसकी उन्नत किस्में आपको बेहतर उपज के साथ ज्यादा मुनाफा करा सकता है. तिल की उन्नत किस्में- आर.टी. 46, आर.टी. 125, आर.टी. 127, आर.टी. 346, आर.टी. 351 हैं. ये किस्में 78 से 85 दिनों में पक जाती हैं. इससे 700 से 800 किलो प्रति हेक्टेयर बीज मिल सकता है. इसमें ऑयल की मात्रा 43 से 52 फीसदी है.
कैसे करें खेती की तैयारी?
अधिक खरपतवार वाली जमीन के लिए गर्मियों में एक गहरी जुताई जरूर करें. मानसून की पहली बारिश आते ही 1-2 बार खेत की जुताई करके जमीन तैयार कर लें. 3 वर्षों में एक बार 20-25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें.
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बीज की बुवाई और बीजोपचार
तिल की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 2-2.5 किग्रा बीज का इस्तेमाल करें. तिल की बुवाई मानसून की पहली बारिश के बाद जुलाई के पहले हफ्ते में 30-45 सेमी कतार से कतार की दूरी और 10-15 सेमी पौधे से पौध की दूरी पर करें. बुवाई से पहले बीज को 1 ग्राम कार्बेण्डाजिम +2 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कैप्टान या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें. जीवाण अंगमारी रोग से बचान के लिए बीजों को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 10 लीटर पानी में घोल बनाकर 2 घंटे तक बीजोपचार करें और बीजों को छाया में सुखाकर ही बुवाई करें. तिल में कीटों से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू.यू.एस 7.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज को उपचारित कर बुवाई करें.
सिंचाई, निराई-गुड़ाई
आईसीआरएस के मुताबिक, नमी की कमी होने पर फलियों में दाना पड़ने की अवस्था पर सिंचाई करें. बुवाई के 20 दिनों बाद निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकालें. तिल की छोटी अवस्था में अगर निराई-गुड़ाई करना संभव न हो तो एलाक्लोर 2 किग्रा दाने या 1.5 लीटर लिक्विट प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले इस्तेमाल करें. इसके बाद 30 दिनों पर एक निराई-गुड़ाई करें.
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जैविक उपाय
तिल में जैविक कीट रोग प्रबंधन के लिए बुवाई से पहले 8 टन सड़ी हुई खाद व नीम की खली 250 किग्रा प्रति हेक्टेयर दें. मित्र फफूंद ट्राइकोडर्मा विरिडी से 4 ग्राम प्रति किग्रा की दर से बीजोपचार करके बुवाई करें. मिट्टी में इस फफूंद को 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद बीज के साथ मिलाकर दें. खड़ी फसल में कीट व रोग नियंत्रण के लिए 30-40 दिनों और 45-55 दिनों की अवस्था पर नीम आधारित कीटनाशी (एजेडिरेक्टीन 3 मिली प्रति लीटर) का छिड़काव करें.
तिल में गॉल मक्खी, सैन्य कीट, हॉकमॉथ, फड़का, झुलसा व अंगमारी, पत्ती व फलीछेदक, पत्तियों के धब्बे जैसे रोग और कीट का हमला होता है. इनसे बचाव के लिए किसान को उपाय करने चाहिए.
कटाई और भंडारण
पौधों की पत्तियां पीली पड़कर झड़ना शुरू हो जाएं और नीचे की फलियां पक कर तैयार हों, इसी समय फसल की कटाई करनी चाहिए, ताकि बीजों का झड़ना शुरू नहीं हो पाए. फसल को काटकर सीधे खेत या खलिहान में रखना चाहिए.
01:02 PM IST