Vegetable Cultivation: बिहार में गया के बीथो गांव के युवा किसान अलग-अलग तरीके से खेती करके सब्जियां उगा रहे हैं. साथ ही एक खेती से पैदा हुए कचरे को दूसरे में इस्तेमाल करके इस खेती को इको फ्रेंडली भी बना रहे हैं. किसान शक्ति कुमार ने 'वेस्ट टू वेल्थ' (Waste to Wealth) का शानदार प्रयोग किया है. वह मशरूम (Mushroon Farming) उगाने वाले कंपोस्ट बैग में जैविक सब्जी (Organic Vegetable) उगा रहे हैं. शक्ति पिछले कई वर्षों से अपने घर में ही मशरूम उगा रहे हैं. इस काम में उसे अच्छी खासी आमदनी होती है. मशरूम कल्टीवेशन (Mushroom Cultivation) के बाद कंपोस्ट बैग बेकार हो जाता था. उसे खेतों में फेंक दिया जाता था. शक्ति ने नया कॉन्सेप्ट ईजाद किया. उसने प्रयोग के तौर पर बेकार हुए कंपोस्ट बैग में सब्जी का बीज बोया तो उसे अच्छी सफलता मिली.

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बीथो शरीफ के कंड़ी गांव के निवासी मशरूम और ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) करने वाले किसान शक्ति कुमार ने बताया, हमने छत पर खेती शुरू की थी और पहले हम मशरूम का उत्पादन करते थे. इस दौरान, हमने करीब 500 बैग मशरूम के लिए इस्तेमाल किए और इससे अच्छा मुनाफा भी हुआ. मशरूम के उत्पादन के बाद जो वेस्ट बचता है, उसे हम छत पर करेला और खीरा लगाने में इस्तेमाल करते हैं. इस मॉडल से हमें काफी अच्छा फायदा हुआ.

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मशरूम के वेस्ट में उगाएं सब्जी

बुद्ध फार्म के डायरेक्टर राजेश सिंह ने हमें सलाह दी थी कि मशरूम के वेस्ट को खेत में न डालकर छत पर डालें, क्योंकि इससे फायदा ज्यादा होगा. शुरुआत में हमें थोड़ा शक था, लेकिन जब हमने उनका तरीका अपनाया, तो देखा कि सचमुच इस तरह से अच्छा फायदा हुआ. उन्होंने आगे कहा, आजकल जब भी हम सुबह उठते हैं और छत पर जाते हैं, तो ठंडी हवा महसूस होती है, और घर का तापमान भी हमेशा मेंटेन रहता है. ऐसा लगता है जैसे छत पर एक प्राकृतिक एसी हो. 

शुरुआत में, जब हमने मशरूम की खेती (Mushroom Cultivation) शुरू की थी, तो हम केवल 50 बैग से शुरुआत कर रहे थे, लेकिन आज हम 500-550 बैग तक पहुंच चुके हैं और इससे अच्छा खासा मुनाफा भी हो रहा है. आसपास के बाजार में मशरूम की अच्छी डिमांड है, जिसकी वजह से हमें कोई समस्या नहीं हुई. मुझे यह भी लगता है कि आजकल के युवाओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेती में भी ध्यान देना चाहिए.

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पार्ट-टाइम जॉब के रूप में करें खेती

खेती को पार्ट-टाइम जॉब के रूप में किया जा सकता है, और इसमें ज्यादा समय नहीं लगता. अब तक हम मशरूम के साथ-साथ करेला और खीरा भी उगा रहे हैं. इसके बाद, जो कंपोस्ट मिलता है, उसे हम आलू और प्याज की खेती में भी इस्तेमाल कर रहे हैं. पहले, जब हम रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे, तो उतना अच्छा रिजल्ट नहीं मिलता था, लेकिन अब हम ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़े हैं और इसका फायदा हमें बहुत अच्छा हुआ है. यह पूरी प्रक्रिया हमारे लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही है, और मुझे लगता है कि यह तरीका दूसरों को भी अपनाना चाहिए.

मशरूम उत्पादन में बिहार ने बनाया मुकाम

गया स्थित महात्मा बुद्ध एग्री क्लिनिक के संस्थापक राजेश सिंह ने आईएएनएस को बताया, हमारे द्वारा किया जा रहा मशरूम उत्पादन (Mushroom Production) और कृषि का काम लगातार बेहतर हो रहा है. जैसे ही बिहार में हमारा मशरूम उत्पादन एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंचा, हमें और गर्व महसूस हुआ. हम इसे पूरी टीम के साथ मिलकर मेंटेन कर रहे हैं और अब हम इसे और भी बड़े स्तर पर आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं. अक्टूबर-नवंबर के बीच में हम मशरूम का उत्पादन शुरू करते हैं, और दिसंबर से जनवरी तक इसका मार्केटिंग करते हैं. फिर, जब गर्मी शुरू होती है, तो हम छतों पर सब्जियों की खेती शुरू करते हैं, जिससे अतिरिक्त ऑक्सीजन मिलती है और टेम्परेचर भी कम होता है.

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उन्होंने आगे कहा, हमारे इस मॉडल में, मशरूम (Mushroom) के उत्पादन से जो उपज मिलती है, उसे हम किसानों और महिलाओं के लिए रोजगार के रूप में उपयोग करते हैं. इसके अलावा, हम पराली और भूसे को जलाने के बजाय उसे कंपोस्ट बनाने में उपयोग करते हैं, जिससे खेतों की मिट्टी में सुधार होता है और पर्यावरण को भी मदद मिलती है. यह पूरी प्रक्रिया एक इको-सिस्टम बनाती है, जिसमें मशरूम का उत्पादन, कंपोस्ट बनाना और सब्जियों की खेती सभी एक दूसरे से जुड़े होते हैं. हमारा उद्देश्य सिर्फ उत्पादन नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति इस प्रक्रिया से जुड़कर रोजगार पा सके और समाज में सकारात्मक बदलाव ला सके. हमारी टीम में लगभग 500-700 महिलाएं और पुरुष जुड़कर इस काम को कर रहे हैं और साल भर हम लगभग 100 टन से अधिक मशरूम उत्पादन करते हैं. हम इस प्रयास में शुद्धता और गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखते हैं, और हम चाहते हैं कि हमारे उत्पाद ना सिर्फ स्थानीय बाजार में, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाने जाएं.