भारत सरकार द्वारा जल मार्ग से व्यापार बढ़ाने पर जोर दे रही है. इसी क्रम में गंडक नदी में व्यापार की संभावना तलाशी जा रही हैं. नेपाल, भारत के साथ नए जलमार्गों से द्विपक्षीय व्यापार की संभावनाएं तलाश रहा है. इस मार्ग से व्यापार करना साफ और हरित है. इसी क्रम में उसने गंडक नदी के रास्ते मालवहन का प्रस्ताव रखा है.

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भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन प्रवीर पांडे ने बताया कि दोनों देशों के बीच मौजूदा समय में नेपाल की सीमा तक सड़क मार्ग से सामान पहुंचाने से पहले मालवहन नौकाएं गंगा पर बने राष्ट्रीय जलमार्ग-एक के माध्यम से माल उत्तर प्रदेश वाराणसी, पश्चिम बंगाल के कालाघाट और झारखंड के साहिबगंज पहुंचती हैं.

उन्होंने कहा कि नेपाल सरकार ने भारत से पूछा है कि क्या गंडक नदी को जलमार्ग के तरह उपयोग करने की दिशा में काम किया जा सकता है. यह प्राकृतिक रूप से गंगा से मिलती है.

उन्होंने कहा कि गंडक मार्ग को जलमार्ग की तरह उपयोग किए जाने से पहले तकनीकी अध्ययन करना आवश्यक है. यह देखना होगा कि इससे मालवहन व्यावहारिक है भी या नहीं. हमने नेपाल को इस बार में सूचित कर दिया है. यदि ऐसा होता है तो हम इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देंगे.

गंडक नदी

गंडक, गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है. नेपाल में इसे नारायणी के नाम से जानते हैं. नेपाल के मस्तांग से शुरू होकर यह भारत में पटना के पास हाजीपुर में गंगा से मिलती है.

गंडक नदी हिमालय से निकलकर दक्षिण-पश्चिम बहती हुई भारत में प्रवेश करती है. त्रिवेणी पर्वत के पहले इसमें एक सहायक नदी त्रिशूलगंगा मिलती है. यह नदी काफी दूर तक उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों के बीच सीमा निर्धारित करती है. इसकी सीमा पर उत्तर प्रदेश का केवल गोरखपुर जिला पड़ता है. बिहार में यह चंपारन, सारन और मुजफ्फरपुर जिलों से होकर बहती हुई 192 मील के मार्ग के बाद पटना के पास गंगा में पर मिल जाती है. इस नदी की कुल लम्बाई लगभग 1310 किलोमीटर है. 

(इनपुट भाषा से)

इस नदी द्वारा नेपाल तथा गोरखपुर के जंगलों से लकड़ी के लट्ठों का तैरता हुआ गट्ठा निचले भागों में लाया जाता है और उसी मार्ग से अनाज और चीनी भेजी जाती है. त्रिवेणी तथा सारन जिले की नहरें इससे निकाली गई हैं जिनसे चंपारन और सारन जिले में सिंचाई होती है.