बिजली की मांग में आई भारी तेजी के चलते इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (आईईएक्स) में गुरुवार को बिजली की हाजिर कीमत 15.37 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच गई. हाजिर बाजार में पिछले नौ साल के दौरान बिजली का ये उच्चतम स्तर है. इससे पहले 2009 में बिजली की हाजिर कीमत 17 रुपये प्रति यूनिट के आंकड़े तक पहुंच गई थी. राज्य बिजली बोर्ड बिजली की तत्काल जरूरत को पूरा करने के लिए हाजिर बाजार से बिजली खरीदते हैं. यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो आम उपभोक्ताओं को बिजली कटौती या महंगी बिजली का सामना करना पड़ सकता है.

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विशेषज्ञों का मानना है कि आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक होने के कारण बिजली की हाजिर कीमतों में यह तेजी आयी है. उन्होंने बताया कि पवन और जल विद्युत उत्पादन में कमी के साथ बिजली संयंत्रों में कोयला की कमी लगातार बने रहने के कारण हाजिर कीमत में यह वृद्धि देखने को मिली है. जानकारों के मुताबिक गुरुवार को एनर्जी एक्सचेंज में 35.7 करोड़ यूनिट की खरीदारी के लिए बोली लगाई गई थी, जबकि बेचने की बोली सिर्फ 32.8 करोड़ यूनिट के लिए ही आई थीं. इसके चलते शुक्रवार को आपूर्ति के लिए कीमतें नौ साल के उच्चतम स्तर 15,37 रुपये प्रति यूनिट पर जा पहुंची.

विशेषज्ञों के मुताबिक स्वतंत्र बिजली संयंत्रों (आईपीपी) और कैप्टिव पावर प्लांट (सीपीपी) में कोयले की कमी के आपूर्ति बाधित हुई, जिसके बाद दक्षिण भारत के उपभोक्ताओं ने बिजली एक्सचेंज में खरीदारी तेज कर दी. इससे पहले इस साल मई में हाजिर बिजली की कीमत पांच साल के उच्चतम स्तर 11.41 रुपये पर पहुंच गई थी. सीपीपी ऐसे संयंत्रों को कहते हैं जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बिजली उत्पादन करते हैं, जैसे स्टील, सीमेंट या अन्य संयंत्र.

क्या होगा उपभोक्ताओं पर असर?

राज्य के बिजली बोर्ड विभिन्न पावर प्लांट से बिजली आपूर्ति समझौता करते हैं. आपूर्ति से अधिक मांग होने पर वो एनर्जी एक्सचेंज से बिजली खरीदते हैं. ऐसे में अगर एनर्जी एक्सचेंज में बिजली महंगी होती है तो बिजली बोर्ड के पास तीन विकल्प हैं - 

1) महंगी बिजली न खरीदकर बिजली कटौती बढ़ा दी जाए. इससे बिजली बोर्ड पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता है, हालांकि आम उपभोक्ताओं को परेशानी उठानी पड़ती है. 

2) महंगी बिजली खरीदकर उपभोक्ताओं को दी जाए और घाटे को खुद सहन किया जाए. इससे उपभोक्ता को कम कीमत पर बिजली मिलती रहेगी, हालांकि बिजली बोर्ड की माली हालत खराब हो सकती है. 

3) महंगी बिजली खरीदकर सप्लाई करने के साथ ही उपभोक्ता के लिए बिजली की दर बढ़ा दी जाए. इससे महंगी बिजली का बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ेगा हालांकि उन्हें किसी कटौती का सामना नहीं करना पड़ेगा.

हालांकि यदि समय रहते बिजली संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति तथा अन्य ऊर्जा के साधनों को विकसित करने पर ध्यान दिया जाए, तो इस स्थिति की नौबत ही नहीं आएगी और उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिल सकेगी.