RBI MPC Meeting: क्या कर्ज होगा सस्ता, घटेगा EMI का बोझ? ब्याज दरों पर आज गवर्नर शक्तिकांत दास सुनाएंगे फैसला
RBI Monetary Policy Meeting का आज तीसरा और आखिरी दिन है. आज गवर्नर शक्तिकांत दास ब्याज दरों पर अपना फैसला सुनाएंगे. क्या इस बार रेपो रेट में कोई बदलाव होगा? यहां जानिए
RBI Monetary Policy Meeting: आरबीआई मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक का आज आखिरी दिन है. RBI गर्वनर शक्तिकांत दास (RBI Governor Shaktikanta Das) आज रेपो रेट (Repo Rate) को लेकर बैठक का फैसला सुनाएंगे. ऐसे में एक बार फिर से लोग ब्याज दरों के घटने की उम्मीद लगाए हुए हैं ताकि कर्ज सस्ता हो सके और EMI का बोझ भी कुछ कम हो सके. लेकिन क्या ऐसा होगा? ये बड़ा सवाल है और इसका जवाब बैठक के नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलेगा. हालांकि इस मामले में एक्सपर्ट्स का क्या मानना है, कि इस बार भी रेपो रेट में कोई बदलाव न होने की उम्मीद है. बता दें कि RBI ने आखिरी बार फरवरी 2023 में दरें 0.25% बढ़ाकर 6.5% की थीं, तब से ये जस से तस बनी हुई हैं.
क्या होता है रेपो रेट?
जिस तरह आप अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेते हैं और उसे एक निर्धारित ब्याज के साथ चुकाते हैं, उसी तरह सार्वजनिक, निजी और व्यावसायिक क्षेत्र की बैंकों को भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोन लेने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक ही ओर से जिस ब्याज दर पर बैंकों को लोन दिया जाता है, उसे रेपो रेट (Repo Rate) कहा जाता है. रेपो रेट कम होने पर आम आदमी को राहत मिल जाती है और रेपो रेट बढ़ने पर आम आदमी के लिए भी मुश्किलें बढ़ती हैं. जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंकों को कर्ज ज्यादा ब्याज दर पर मिलता है. ऐसे में आम आदमी के लिए लोन महंगा हो जाता है. वहीं रेपो रेट कम होने पर लोन सस्ते हो जाते हैं.
RBI क्यों समय-समय पर रेपो रेट में बदलाव करता है
रेपो रेट महंगाई से लड़ने का शक्तिशाली टूल है, जिसका समय समय पर आरबीआई स्थिति के हिसाब से इस्तेमाल करता है. जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो आरबीआई इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है और रेपो रेट को बढ़ा देता है. आमतौर पर 0.50 या इससे कम की बढ़ोतरी की जाती है. लेकिन जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है और ऐसे में RBI रेपो रेट कम कर देता है और जरूरत नहीं लगती तो रेपो रेट को कुछ समय तक स्थिर रखता है.
क्यों हर दो महीने पर होती है MPC मीटिंग
दरअसल देश में बढ़ती महंगाई और अचानक से मार्केट में कम होती समान की मांग के बीच बैलेंस बनाए रखने के लिए रिजर्व बैंक को समय-समय पर बैठक करनी होती है. ऐसे में आरबीआई की छह सदस्यीय टीम मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के जरिए महंगाई के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीतिगत रेपो रेट में बदलाव को लेकर चर्चा करती है. तीन दिनों तक ये बैठक चलती है और तीसरे दिन आरबीआई गवर्नर मीटिंग में हुए फैसले की घोषणा कर देते हैं. नियम के मुताबिक RBI MPC Meeting साल में कम से कम चार बार करना जरूरी है. ये मौद्रिक नीति बैठक कितने-कितने समय के अंतराल पर होगी, इस अवधि को तय करने का जिम्मा समिति पर होता है.
समिति के पास बैठक को जरूरत के अनुसार बढ़ाने-घटाने का भी अधिकार होता है. अगर समिति को लगता है कि ये बैठक साल में 4 बार से ज्यादा होनी चाहिए तो इसको लेकर एक नोटिफिकेशन जारी कर दिया जाता है. पिछली बार जब नोटिफिकेशन जारी हुआ था तो उसमेंं कहा गया था कि 2023-24 के लिए मौद्रिक नीति समिति की बैठक 6 बार की जाएगी जो अप्रैल, जून, अगस्त, अक्टूबर, दिसंबर और फरवरी महीने में होगी. आज वित्त वर्ष 2023-24 के लिए एमपीसी की छठी द्विमासिक बैठक के नतीजे आने वाले हैं.