Loan Waive Off vs Loan Write Off: लोन लेते वक्त कभी-कभी जरूरी नहीं है कि हमें लोन टर्म्स के बारे में भी सबकुछ पता हो. कभी-कभी कुछ ऐसे टर्म्स भी होते हैं, जिनका सामना पड़ने पर हम कंफ्यूज़ हो जाते हैं और अपना नुकसान करा बैठते हैं. इसी तरह के दो टर्म हैं- लोन राइट ऑफ और लोन वेव ऑफ. सुनने में दोनों एक जैसे ही लगते हैं, लेकिन इनका असर लोन देने वाले यानी बैंक और लोन लेने वाली यानी आप यानी कर्जदार के लिए बदल जाता है. आइए आज हम समझ लेते हैं कि दोनों टर्म्स का मतलब क्या है और आपके ऊपर इनका क्या असर होता है.

लोन वेव-ऑफ क्या होता है? (What is a loan waive-off)

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लोन वेव-ऑफ का मतलब कर्ज माफ करने से है. जब बैंक कर्जदार के कर्ज का कुछ हिस्सा या पूरा कर्ज ही माफ कर देता है, यानी कर्ज चुकाने से मुक्ति दे देता है, तो उसे लोन वेव ऑफ कहते हैं. जैसे कि मान लीजिए कि आपने 1 लाख का लोन ले रखा है, लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति की वजह से या ऐसी ही किसी इमरजेंसी की वजह से आप अपना लोन चुकाने की स्थिति में नहीं हैं तो बैंक या तो पूरा 1 लाख या फिर इसका कुछ हिस्सा, मान लीजिए 50,000, माफ करने का फैसला ले लेता है. इसके बाद आपको बस बचा हुआ 50,000 ही चुकाना होगा.

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लेकिन कब और कैसे लोन माफ करेगा बैंक?

1. लोन माफ करने के लिए आपको कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी, जिसके बाद ही बैंक आपके पक्ष में फैसला लेगा. मान लीजिए कि बेरोजगारी, बीमारी या फिर ऐसी ही किसी स्थिति में, जिसमें आप लोन चुका पाने की स्थिति में नहीं हैं, बैंक आपका लोन माफ कर देंगे. 

2. इसके लिए आपको भी बैंक के पास एक ऐप्लिकेशन डालनी होगी, जिसमें बताना होगा कि आप क्यों लोन चुकाने की स्थिति में नहीं हैं.

3. फिर बैंक आपकी स्थिति को परखेगा, और फिर आपके सामने लोन वेव-ऑफ की शर्तें रखेगा. अगर आपको शर्तें मंजूर हैं तो बैंक आपसे एक एग्रीमेंट पर दस्तखत कराएंगे और जो भी उसकी शर्त होगी आपको माननी होगी.

लोन राइट-ऑफ क्या होता है? (What is a loan write-off)

लोन राइट-ऑफ तब होता है जब बैंक कर्जदार के लोन को माफ तो करते हैं, लेकिन ये दिखाकर कि वो बैड लोन है और उसकी रिकवरी मुश्किल ही है. यानी किसी भी ऐसे लोन को लॉस बुक में डालना, जिससे उनको अब और रिटर्न मिलने की संभावना नहीं है और जो NPA की श्रेणी में जा रहा है. बैंक किसी भी कर्जदार के पूरे या फिर कर्ज के कुछ हिस्से को राइट ऑफ करते हैं.

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लोन राइट-ऑफ करने की नौबत कब आती है?

या तो कर्जदार ने लोन डिफॉल्ट कर दिया है, ऐसी स्थिति में बैंक लोन को बैड लोन की श्रेणी में डाल सकता है. अगर कर्जदार ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया हो, ऐसी स्थिति में बैंक मान लेता है कि अब कर्ज की वसूली नहीं होगी. या तो फिर कर्जदार ने जो कॉलेटरल दिया है, उसकी वैल्यू ही लोन अमाउंट से नीचे गिर गई है तो भी लोन राइट-ऑफ किया जा सकता है. आखिर में, अगर कर्जदार की मौत हो जाए और उसके पास मौजूद संपत्ति से लोन की वसूली नहीं हो पाए तो बैंक लोन को राइट-ऑफ कर सकते हैं.

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