आज के समय में अपनी तमाम जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग लोन लेते हैं. लोन के तौर पर लिए गए अमाउंट को ग्राहक को ब्‍याज समेत किस्‍त के रूप में बैंक को लौटाना होता है. लेकिन कई बार ऐसी नौबत आ जाती है कि ग्राक के लिए लोन को चुका पाना बहुत मुश्किल होता है. लोन की किस्‍तें बाउंस हो जाती हैं. शुरुआत में बैंक ग्राहक को नोटिस भेजकर और अन्‍य तरीकों से लोन की भरपाई करवाने की कोशिश करता है.

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लेकिन तब भी लोन की भरपाई न हो पाए तब लोन राइट ऑफ (Loan Write-Off), लोन वेवर (Loan Waiver) या लोन वेव ऑफ (Waive Off) की नौबत आती है. तमाम लोग (Loan Write-Off) और लोन वेव ऑफ (Waive Off) को एक ही मानते हैं. लेकिन इन दोनों के बीच काफी अंतर होता है. यहां जानिए इसके बारे में.

क्‍या होता है Loan Write-Off

जब कोई व्‍यक्ति लोन लेता है तो बैंक उसकी कर्ज चुकाने की क्षमता का आकलन करने के बाद ही लोन देता है. लोन चुकाने की क्षमता रखने के बावजूद अगर कोई व्‍यक्ति लोन न चुकाए, तो उसे Willful Defaulter माना जाता है. ऐसी स्थिति में पहले तो बैंक हर संभव प्रयास और कानूनी कार्रवाई करके लोन के अमाउंट को निकलवाने का प्रयास करता है. 90 दिनों में वसूली नहीं होने पर उस लोन के खाते को नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) मान लिया जाता है. 

एनपीए की वसूली न होने पर ऐसे कर्ज को डूबा हुआ मानकर बट्टे खाते में डाल दिया जाता है. इसे Loan Write-Off करना कहते हैं. लोन राइट ऑफ का मतलब कर्ज माफी नहीं होता. बस राइट ऑफ होने के बाद बैलेंस शीट में उस लोन का जिक्र नहीं होता है. हालांकि बैंक की तरफ से उस लोन की वसूल की कार्रवाई जारी रहती है.

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क्‍या होता है Loan Waive Off

Loan Waiver शब्‍द का इस्‍तेमाल आपने किसानों के मामले में बहुत सुना होगा. Loan Waive Off का मतलब कर्जमाफी से है. Loan Waive Off तब किया जाता है, जब कर्ज लेने वाला किसी भी हाल में लोन की राशि चुकाने में असमर्थ हो. ऐसे में उसका लोन पूरी तरह से माफ कर दिया जाता है. साल 2008 में कांग्रेस सरकार ने देशभर के किसानों के 60 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्ज माफ कर दिए थे. इसके अलावा अक्‍सर चुनाव प्रचार के दौरान तमाम पार्टियां भी आपको लोन वेव ऑफ करने के लुभावने वादे करती नजर आती हैं.