बैंक या किसी अन्‍य संस्‍था से लोन लेने के बाद अगर किसी कारणवश आप कर्ज को चुकाने में असमर्थ हो जाएं, तो लोन सेटलमेंट का विकल्‍प आपके लिए राहत भरा हो सकता है. लोन सेटलमेंट के लिए आपको बैंक से अनुरोध करना पड़ता है. अगर बैंक को आपकी वजह वाजिब लगती है, तो बैंक की तरफ से वन टाइम सेटलमेंट यानी OTS का प्रस्‍ताव दिया जाता है.

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लोन सेटलमेंट करने से सबसे बड़ा फायदा ये मिलता है कि आपको रिकवरी एजेंसियों से छुटकारा मिल जाता है और उधारकर्ता अपने और बैंक के साथ सहमत शर्तों को मानकर ड्यू को क्‍लीयर कर सकता है. लेकिन लोन सेटलमेंट के कुछ फायदे हैं, तो कई नुकसान भी हैं. बैंक के रिटायर्ड अधिकारी अनिल कुमार मिश्र बताते हैं कि लोन सेटलमेंट करने से आपकी उस समय की समस्‍या तो हल हो जाती है, लेकिन आगे के लिए कुछ परेशानियां खड़ी हो जाती हैं क्‍योंकि लोन सेटलमेंट को लोन क्‍लोजर नहीं माना जाता. 

जानें लोन सेटलमेंट के नुकसान

  • लोन सेटलमेंट की स्थिति में बैंक की ओर से आपका मामला सिबिल में भेज दिया जाता है. ये मान लिया जाता है कि उधार लेने वाले के पास कर्ज को चुकाने के पैसे नहीं हैं और सेटलमेंट के साथ ही लोन लेने वाले का सिबिल स्‍कोर कम कर दिया जाता है.
  • आपका सिबिल स्‍कोर 75-100 अंकों तक गिर सकता है. अगर लोन लेने वाला एक से ज्‍यादा क्रेडिट अकाउंट का सेटलमेंट करता है, तो क्रेडिट स्‍कोर इससे भी ज्‍यादा कम हो सकता है.
  • क्रेडिट रिपोर्ट में अकाउंट स्‍टेटस सेक्‍शन में उधारकर्ता द्वारा लोन सेटलमेंट का जिक्र अगले 7 सालों तक रह सकता है. इसके बाद अगले 7 साल तक लोन लेने वाले के लिए लोन के लिए आवेदन करना काफी कठिन हो सकता है क्‍योंकि सिबिल के पास उसके लोन सेटलमेंट का स्‍कोर होता है. आप बैंक द्वारा ब्‍लैक लिस्‍टेड भी किए जा सकते हैं.

क्‍या करना चाहिए

बैंक सेटलमेंट का ऑप्‍शन तब ही चुनना चाहिए, जब आपके पास और कोई विकल्‍प न रहे. अगर आपने बैंक सेटलमेंट कर भी लिया है तो जब आप आर्थिक रूप से सक्षम हो जाएं तो आप बैंक के पास जाकर कहें कि आप ड्यू यानी प्रिंसिपल, इंटरेस्ट, पेनाल्टी और अन्य चार्ज में जो भी आपको छूट मिली थी, उसे देना चाहते हैं. ये पेमेंट करने के बाद आपका लोन क्‍लोज हो जाएगा और आपको बैंक से नो ड्यू पेमेंट का सर्टिफिकेट मिलेगा. इसके बाद आपका क्रेडिट स्‍कोर भी ठीक हो जाएगा.