बिटक्वाइन (Bitcoin) सरीखी आभासी मुद्राओं (क्रिप्टोकरेंसी) को लेकर चल रही बहस के बीच एक सरकारी अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि आभासी मुद्रा एक 'पॉन्जी स्कीम' है और निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए भारत में इस पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिये. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अधीन काम करने वाले विभाग 'निवेशक शिक्षा और संरक्षण निधि (आईईपीएफ) प्राधिकरण' इस तरह की मुद्राओं में कारोबार पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है. 

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आईईपीएफए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अनुराग अग्रवाल ने कहा , "जब निवेशकों की सुरक्षा की बात आती है तो प्राधिकरण कुछ चीजों के खिलाफ अपना पक्ष रखता है. जैसे हम पॉन्जी स्कीम के खिलाफ हैं. हमारा मानना है कि आभासी मुद्रा भी एक तरह की पॉन्जी स्कीम है और इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए." अग्रवाल कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय में संयुक्त सचिव भी हैं. उन्होंने जोर दिया है कि सरकार को भी इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखना चाहिए.

आभासी मुद्रा ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी पर आधारित है और लंबी अवधि में इसकी व्यवहार्यता और जोखिम खासकर कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव को लेकर निवेशक चिंतित हैं. सरकार ने आभासी मुद्रा को लेकर अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं किया है जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने आभासी मुद्रा के इस्तेमाल को रोकने के लिए पिछले साल नियमों को सख्त किया था. 

अग्रवाल ने कहा कि प्राधिकरण की योजना उन लोगों से 'प्राथमिक जानकारियां' एकत्र करने की है, जिन्होंने चिट फंड और धन संग्रह योजनाओं में अपना पैसा लगाया है. इस तरह के निवेशकों के लिए एक मोबाइल ऐप भी 10 दिनों में पेश किया जाएगा. इस तरह की व्यवस्था से धन संग्रह करने वाली इकाइयों के बारे में जानकारी मिलने के साथ ही अवैध धन जुटाने की गतिविधियों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी.