बैंक किन सर्विसेज के जरिए करते हैं कमाई, बैंकों की इनकम का बड़ा हिस्सा कैसे होता है जनरेट- जानें सबकुछ
बैंक कई तरह से कमाई करते हैं. जिसमें उन्हें पैसे लोन पर देने या ब्याज जमा करने की जरुरत नहीं होती है. इस तरह की सर्विस को फीस बेस्ड बैंकिंग सेवाएं कहा जाता है.
अक्सर लोगों को लगता है कि बैंक अपनी कमाई सिर्फ कस्टमर्स को लोन देकर उस पर लगने वाले इंटरेस्ट से करते हैं. लेकिन बैंको की आय में इंटरेस्ट से होने वाली कमाई के साथ ही अलग-अलग तरह की बैंक फीस से होने वाली कमाई का भी हिस्सा रहता है. आमतौर पर बैंक अपनी कमाई दो तरह से करते हैं. पहला अपनी जमा राशि को उधार देकर. इसे इंटरेस्ट से होने वाली इनकम कहा जाता है. इस तरह की कमाई किसी भी बैंक की आय का बड़ा हिस्सा होता है. हालांकि बैंक के पास कमाई करने के लिए कई जरिए होते हैं. जिसमें उन्हें कर्ज नहीं देना होता. इसको फीस बेस्ड बैंकिंग सेवाएं (Fees Based Banking Services) कहा जाता है. इन सर्विस में कार्ड से लेकर कमीशन, डिमांड ड्राफ्ट और लॅाकर्स का भी योगदान रहता है. इस तरह से होने वाली कमाई से होने वाला फायदे और घाटा बैंक के स्टेटमेंट का एक जरुरी हिस्सा होता है.
अकाउंट से जुड़ी फीस
बैंक अपने कस्टमर के अकाउंट को बनाए रखने के लिए कई तरह के फीस भी लेते हैं. जब ग्राहक चेकबुक या एक्स्ट्रा डेबिट कार्ड की रिक्वेस्ट करते हैं, तो उनसे फीस ली जाती है. इसके अलावा जमा राशि एक तय लिमिट से कम हो जाए तो भी बैंक पेनल्टी वसूलते है. इसके साथ ही एक तय डेड लाइन के भीतर एक निश्चित अमाउंट से ज्यादा का डिपॅाजिट होता है. तो भी बैंक फीस चार्ज करते हैं.
लॅाकर लेने पर लगने वाली फीस
बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर की सुविधा भी देती हैं. ज्यादातर मामलों में लॅाकर के सामान के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। बैंक केवल स्टोरेज के लिए एक सेफ जगह उपलब्ध कराता है. बैंक इसके लिए फीस चार्ज करता है.
क्रेडिट और डेबिट कार्ड
क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड का बैंक की कमाई में बड़ा कॅान्ट्रीब्यूशन है. ये कुछ साल पहले तक किसी भी बैंक की कमाई का हिस्सा नहीं थे. बहुत कम समय में इन सेवाओं ने बैंक को इंटरेस्ट से होने वाली कमाई के अलावा एक बड़ा आय का साधन दे दिया है. इन कार्डों से कई तरह की फीस वसूली जाती हैं. इनमें ज्वॅाइनिंग फीस और सालाना फीस जैसे कुछ चार्ज होते हैं. इसके अलावा ओवरड्यू बैलेंस पर ब्याज, ओवर लिमिट फीस, सर्विस टैक्स आदि जैसी फीस भी होती हैं. बैंक व्यापारियों को ऐसे कार्ड देता है. जिनसे हर बार उपयोग करने पर फीस का भुगतान किया जाता है.
कमीशन से कमाई
बैंकों ने अपने ग्राहकों को बीमा और म्युचुअल फंड बेचने जैसी अन्य सेवाएं भी देनी शुरू कर दी हैं. बीमा कंपनियां और म्यूचुअल फंड कंपनियां ग्राहकों को वन स्टॉप शॉप देने के लिए बैंकों के साथ सहयोग करती हैं. बैंक इन सेवाओं को अपने ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए कमीशन लेते हैं.
केपिटल मार्केट एडवाइजरी
बैंक अक्सर बॅान्ड मार्केट में कॅार्पोरेशन को उनके कर्ज से रिलेटेड मुद्दों में हेल्प करते हैं. बैंक केपिटल मार्केट के साथ अपने एक्सपीरियंस को देखते हुए मैक्रो-इकोनॉमिक कंडीशन को अच्छी तरह समझते हैं. इसलिए बैंक उस सलाह के लिए एक फ्लैट शुल्क लेते हैं.
डिमांड ड्राफ्ट से कमाई
डिमांड ड्राफ्ट चेक से अलग होता है. जब कोई बैंक डिमांड ड्राफ्ट जारी करता है, तो साख पर ग्राहक की क्रेडिबिलिटी नहीं रह जाती है. चेक से अलग डिमांड ड्राफ्ट बैंक जारी करते हैं. इसलिए बैंक अपने अकाउंट में पेमेंट और सेटलमेंट करते हैं. डिमांड ड्राफ्ट को बैंक एक तरह की गारंटी की तरह अपने कस्टमर को देते हैं. बैंक डिमांड ड्राफ्ट देने के लिए फीस लेते हैं.
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गारंटी से होने वाली कमाई
बैंक एक फिक्स फीस पर गारंटी देने की सर्विस देते हैं. मान के चलिए एक पार्टी एडवांस में पेमेंट चाहती है जबकि दूसरी पार्टी काम पूरा होने के बाद ही भुगतान करने को तैयार है. ऐसे मामले में दूसरी पार्टी बैंक के पास पैसे जमा कर सकती है. और बैंक पहली वाली पार्टी को गारंटी जारी कर सकता है. बैंक इस सर्विस के लिए भी फीस लेता है.