Bank Rules for Loan: लोन न चुकाने वालों के पास भी होते हैं ये अधिकार, आपको इनके बारे में जरूर पता होना चाहिए
लोन न चुकाने पर ऋण लेने वाले को ये डर लगा रहता है कि कहीं रिकवरी एजेंट्स उनके साथ बदसलूकी न कर दें, जिससे कि उनकी छवि समाज में धूमिल हो जाए. ऐसी परिस्थिति में आपको अपने अधिकारों को जानने की जरूरत है.
अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग लोन लेते हैं, लेकिन कई बार कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि इंसान के लिए लोन चुकाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में लोन लेने वाले को गिरवी रखे गए एसेट को गवांना पड़ता है क्योंकि बैंक को इस परिस्थिति में गिरवी रखी प्रॉपर्टी को कानूनन जब्त करने का हक है. हालांकि इस स्थिति में कई बार ऋण लेने वाले को ये डर लगा रहता है कि कहीं रिकवरी एजेंट्स उनके साथ बदसलूकी न कर दें, जिससे कि उनकी छवि समाज में धूमिल हो जाए.
अगर आपके सामने भी ऐसी परिस्थिति आ गई है, तो आपको अपने कुछ मानवीय अधिकारों के बारे में पता होना बहुत जरूरी है. ध्यान रखिए बैंक अगर आपको डिफॉल्टर घोषित कर दे, तो भी बैंक आपके साथ बदसलूकी नहीं कर सकता क्योंकि लोन डिफॉल्ट होना सिविल मामला है, आपराधिक केस नहीं. यहां जानिए अपने अधिकार.
रिकवरी एजेंट की बदसलूकी पर यहां करें शिकायत
लोन न चुकाने की स्थिति में कर्जदाता अपना लोन वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों की सेवाएं ले सकते हैं. लेकिन, ये अपनी हद पार नहीं कर सकते हैं. उन्हें ग्राहकों को धमकाने या बदसलूकी करने का अधिकार नहीं है. रिकवरी एजेंट्स ग्राहक के घर सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच जा सकते हैं. अगर रिकवरी एजेंट्स ग्राहकों से किसी तरह की बदसलूकी करते हैं तो ग्राहक इसकी शिकायत बैंक में कर सकते हैं. बैंक से सुनवाई न होने पर बैंकिंग ओंबड्समैन का दरवाजा खटखटाया जा सकता है.
बैंक को नोटिस भेजना जरूरी
ध्यान रखिए कि बैंक यूं ही आपके एसेट को अपने कब्जे में नहीं ले सकता. जब उधार लेने वाला 90 दिनों तक लोन की किस्त नहीं चुकाता, तब खाते को तब नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) में डाला जाता है. हालांकि इस तरह के मामले में कर्ज देने वाले को डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस जारी करना पड़ता है. अगर नोटिस पीरियड में भी वो लोन जमा नहीं करता है, तब बैंक एसेट की बिक्री के लिए आगे बढ़ सकते हैं. लेकिन बिक्री के मामले में भी बैंक को 30 दिन और का पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है.
नीलामी के दाम को चुनौती देने का हक
एसेट की बिक्री से पहले बैंक या उस वित्तीय संस्थान जहां से आपने लोन लिया है, को एसेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है. अगर बॉरोअर को लगता है कि एसेट का दाम कम रखा गया है तो वह नीलामी को चुनौती दे सकता है.
नीलामी होने से न रोक पाएं तो
अगर एसेट को की नीलामी की नौबत को आप रोक नहीं पाए तो नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखें क्योंकि आपके पास लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का अधिकार होता है. बैंक को वो बची हुई रकम लेनदार को लौटानी ही होती है.