रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर भ्रम फैला रहा है पश्चिमी मीडिया, हालात सुधरने के इंतजार में कंपनियां
ज़ी बिजनेस डिजिटल संवाददाता लोकेन्द्र सिंह ने मास्को में रूस की सरकारी न्यूज एजेंसी स्पूतनिक की डिप्टी हेड तातियाना कोकरीव से बातचीत कर कुछ बातों की जाननी की कोशिश की है.
By Line- लोकेन्द्र सिंह
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरे विश्व पर देखने को मिल रहा है. अमेरिका सहित कई देशों ने अपनी कंपनियां रूस में बंद कर दी है. इस तरह की खबरें तेजी से सुर्खियां बटोर रही है. लेकिन अब इस पर रूस ने अपना पक्ष रखा है. ज़ी बिजनेस डिजिटल संवाददाता लोकेन्द्र सिंह ने मास्को में रूस की सरकारी न्यूज एजेंसी स्पूतनिक की डिप्टी हेड तातियाना कोकरीव से बातचीत कर कुछ बातों की जाननी की कोशिश की है.
लोकेन्द्र सिंह ने पूछा कि रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं, कोविड की वजह से पहले ही दुनिया भर के देश आर्थिक मंदी के शिकार हैं ऐसे में रूस इन आर्थिक प्रतिबंधों से कैसे निबटेगा? इस पर तातियाना कोकरीव ने कहा कि साल 2014 में जब जनमत संग्रह के बाद क्रीमिया रूस में शामिल हुआ था तब भी इस तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे. अन्तर्राष्ट्रीय कानून का पालन करते हुए क्रीमिया रूस में शामिल हुआ था लेकिन तब इसे गैरकानूनी माना गया था क्योंकि पश्चिमी देशों को ये पसंद नहीं था.
रूस के शांति की तरफ बढ़ने के क्या है मायने
इसके बाद अगले सवाल में पूछा गया कि हाल में ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अपने एक बयान में कहा था कि वो शांति की तरफ बढ़ रहे हैं, इसके क्या मायने हैं? इस पर तातियाना कोकरीव ने कहा कि राष्ट्रपति ने कहा कि बातचीत एक सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ रही है. हमें तब तक इंतजार करना होगा जब तक खुद राष्ट्रपति इस बारे में साफतौर पर कुछ ना कह दें. उम्मीद है कि यूक्रेन की लीडरशिप उन मांगों के बारे में बात करना चाह रही हो जिसकी डिमांग रूस ने की है. इन मांगों में डोनबास और लुहान्स्क को मान्यता देने और क्रीमिया की संप्रभुता शामिल है. इन मुद्दों पर शायद बातचीत हो सके.
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दोनों देशों के बीच वार्ता ही बातचीत का जरिया
रूस और यूक्रेन के बीच तीन चरण की वार्ता हो चुकी है क्या इसके अलावा और भी कोई बैक चैनल डिप्लोमेसी यूक्रेन और रूस के बीच चल रही है. इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता ऐसा कुछ हो रहा है, दोनों देशों के बीच वार्ता ही बातचीत का जरिया है. हमें पहले दिन से दिख रहा है कि यूक्रेन की सरकार इस मुद्दे को लंबा खींचना चाहती है उनकी कोशिश है कि वो कैसे भी कर के इस पूरी लड़ाई में नाटो को शामिल कर लें. जितना वो इस लड़ाई को खींचेंगे दुनिया की उनकी प्रति संवेदना उतनी ही बढ़ती जाएगी. वो बार-बार पश्चिमी देशों को दखल देने के लिए कह रहे हैं.
इस पूरी लड़ाई में ऐसा रहा है भारत का रोल
एक और सवाल में पूछा गया कि आप भारत के रोल को इस पूरी लड़ाई में कैसे देखती हैं, भारत पर भी पश्चिमी देशों से रूस की निंदा करने का बहुत दबाव पड़ रहा है, आपको नहीं लगता कि रूस के मित्र देश दबाव में आएं उससे पहले ही इस लड़ाई को खत्म कर देना चाहिए? इस पर जवाब देते हुए तातियाना कोकरीव ने कहा कि हां मुझे लगता है कि भारत पर बहुत दबाव है. मैं भारत कई बार गई हूं और ये बहुत बड़ा, शानदार और मजबूत देश है. इसलिए मुझे लगता है कि भारत दबाव बर्दाशत कर सकता है. अगर अमेरिका के बारे में बात करें तो उन्होंने अब तक तेल पर रोक लगाई और अब वो उन्हीं देशों के पास जा रहे हैं जिन्हें वो धमकाते थे.