जिस तेजी से दुनिया बदल रही है उसमें सबसे ज्यादा बदलाव टेलीकॉम और ऑटोमोबाइल सेक्टर में हो रहे हैं. ऑटोमोबाइल सेक्टर की बात करें तो अब वाहनों की दुनिया परंपरारिक ईंधन (पेट्रोल-डीजल) से निकलकर इलेक्ट्रिक व्हीकल में प्रवेश कर रही है. इसी तरह जिस आधार पर ऑटो सेक्टर दौड़ रहा है उसमें भी तेजी से बदलाव आ रहे हैं. 

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जी हां, टायर की दुनिया भी तेजी से बदल रही है और टायर बनाने वाली कंपनियां इस क्षेत्र में भी नए-नए प्रयोग कर रही हैं. ट्यूब टायर की दुनिया अब ट्यूबलैस बन गई है. फिर भी इसमें जोखिम कम नहीं हुए हैं. सड़क दुर्घटनाओं में टायर फटना भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है. भारत में सड़कों की स्पीड लगातार बढ़ रही है. जहां पहले गाड़ियां 70-80 की हाईस्पीड पर दौड़ती थीं अब उनका मीटर 120 के कांटे को भी पार करने लगा है. लेकिन क्या हमारे टायर इस स्पीड को झेलने की क्षमता रखते हैं, जवाब होगा, बिल्कुल नहीं.

किसी भी एक्सप्रेस वे पर चढ़ने से पहले यातायात विभाग द्वारा टायरों के दबाव पर विशेष ध्यान देने की चेतावनी देते हुए बोर्ड टंगे मिल जाएंगे. इसकी वजह ये है कि अभी ऑटो सेक्टर के टायर यहां के वातावरण और स्पीड को लेकर उस क्षमता के नहीं है, जितने कि होने चाहिए. यही वजह कि विभिन्न एक्सप्रेस-वे पर आए दिन टायर फटने के कारण बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं के समाचार मिलते रहते हैं. इसके अलावा सड़कों पर लगने वाले लंबे जाम की एक वजह भी टायर हैं. चलते हुए वाहन का टायर पंचर हो गया या फिर फट गया तो समझो सड़क पर लग गया लंबा जाम. 

लेकिन वैज्ञानिक इस समस्या के समाधान में लगे हुए हैं. खात बात ये है कि हमारे वैज्ञानिकों ने इसका हल खोज भी लिया है और अब वे भविष्य का टायर तैयार करने में जुटे हुए हैं.

भविष्य का टायर

अमेरिका के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र नासा के वैज्ञानिक भविष्य का टायर बनाने में जुटे हुए हैं. हालांकि यह टायर भविष्य के मंगल अभियानों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है, मगर इसे धरती के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा. नासा की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने सुपरलास्टिक टायर तैयार किया है. यह एक ऐसा टायर होगा जिसमें न तो पंचर होगा और न ही इसमें हवा भरने का झंझट होगा.

सुपरलास्टिक टायर

वैज्ञानिकों ने इसे सुपरलास्टिक टायर नाम दिया है. यह रबड़ की जगह स्प्रिंग से बना होगा. इस टायर को ग्लेन रिसर्च सेंटर और टायर की दुनिया में दिग्गज कंपनी गुडइयर द्वारा तैयार किया जा रहा है. बताया गया है कि यह सुपरलास्टिक टायर अपोलो चंद्रयान के टायर से प्रेरित है.

सुपरलास्टिक टायर को रबड़ या अन्य लोचदार सामग्री के बजाय लोड बेयरिंग कंपोनेंट्स में इस्तेमाल होने वाली सामग्री से बनाया जा रहा है. लोड बेयरिंग कंपोनेंट्स बड़ी-बड़ी इमारतों, पुल या अन्य ढांचों में इस्तेमाल किया जाता है. यह तकनीक बड़े-बड़े ढांचों को भूकंप के झटकों को सहने करने लायक बनाने में इस्तेमाल की जाती है. 

यह टायर सामान्य टायरों की तुलना में अपने ऊपर 10 फीसदी से ज्यादा वजन को सहन कर सकता है. सुपरलास्टिक टायर की चाल सामान्य टायरों के मुकाबले अधिक होगी और इसके क्षतिग्रस्त होने की संभावना भी अन्य टायरों से काफी कम होगी. खासबात ये है कि सुपरलास्टिक टायर के डिजाइन में अगल से आंतरिक फ्रेमिंग को सेट करने की भी कोई जरूरत नहीं है. इस टायर को वाहन में लगना बेहद सरल होगा. 

निश्चित ही सुपरलास्टिक टायर ऑटोमोबाइल की दुनिया में एक नई क्रांति साबित होगा. 

सुपरलास्टिक टायर के फायदे

भविष्य के इस स्प्रिंग टायर में पंचर होना का डर नहीं. अन्य टायरों की तुलना में ज्यादा मजबूत, हल्का और विविधतापूर्ण टायर. सुपरलास्टिक टायर में हवा भरने का झंझट नहीं. ज्यादा कर्षण क्षमता. किसी वस्तु को किसी समतल पर चलाने के लिए लगाया गया बल कर्षण (Traction या tractive force) कहलाता है.

पथरीले रास्तों पर भी दौड़ेगा

सुपरलास्टिक टायर सभी भारी वाहनों में इस्तेमाल किए जा सकते हैं. इनका इस्तेमाल सैन्य और विमान में भी किया जा सकेगा. निर्माण और अर्थ मूवर व्हीकल के लिए भी ये टायर फायदेमंद होंगे. कृषि वाहनों में भी इन्हें आसानी से इस्तेमाल किया जा सकेगा. यह टायर ऊंचे-नीचे, कीचड़ भरे और पथरीले रास्तों पर भी आसानी से दौड़ेगा. रबड़ के टायर फिसलन भरी जगहों पर काम नहीं करते, लेकिन सुपरलास्टिक टायर कीचड़ में भी बड़े आराम से दौड़ेगा. 

एक और सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सुपरलास्टिक टायरों के इस्तेमाल से रबड़ के टायरों से होना वाला प्रदूषण नहीं होगा.