Lassa Fever: कोरोना महामारी से अभी पूरी दुनिया उभरी भी नहीं है और इसी बीच बुखार से जुड़ी एक और बीमारी सामने आई है, जो तेजी से अपना पैर पसार रही है. आने वाले समय में यह पूरी दुनिया के लिए नई चुनौती पैदा कर सकती है. 'लासा फीवर' (Lassa Fever) नाम की इस बीमारी से नाइजीरिया में लोग तेजी से बीमार पड़ रहे हैं.

नाइजीरिया में लासा वायरस के 659 मरीज

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एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोरोना वायरस (Covid-19) के बाद लासा फीवर दुनिया के कई देशों के लिए चुनौती को बढ़ा सकती है. नाइजीरिया सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (NCDC) के आंकड़ें बताते हैं कि देश में अब तक 659 लोगों में इस फीवर की पुष्टि हुई है, जबकि अब तक 88 दिनों में 123 मरीजों की मौत हो चुकी है. इसी के साथ ब्रिटेन में भी 'लासा फीवर' (Lassa Fever) के तीन मरीज मिले हैं, जिसमें से एक की मौत हो चुकी है.

 

WHO के मुताबिक, लासा फीवर अक्यूट वायरल हैमरोजिक फीवर होता है. लासा फीवर का संबंध एरिना वायरस (Arenavirus) के परिवार से है. मनुष्यों में इसका संक्रमण ज्यादातर अफ्रीकी मल्टीमैमेट चूहों से होता है. मनुष्यों पर इसका असर 2 से 21 दिन तक रहता है. 

क्या हैं लासा फीवर के लक्षण

लासा फीवर (Lassa Fever) के मरीजों में तेज बुखार, सिर दर्द, गले में खराश, मांसपेशी में दर्द, सीने में दर्द, डायरिया, खांसी, पेट में दर्द, जी मिचलाने जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. वहीं कुछ गंभीर मामलों में मरीजों में चेहरे पर सूजन, फेफड़ों में पानी, मुंह,नाक से खून निकलना, ब्लड प्रेशर गिरना आदि की समस्या भी देखी जा सकती है.

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क्यों खतरनाक है लासा फीवर

लासा फीवर को लेकर चिंता की सबसे बड़ी बात है कि इसके 80 फीसदी मरीजों में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते हैं. जिस कारण से इसका पता लगाना काफी मुश्किल होता है. कुछ मामलों में मरीजों को अस्पताल में भर्ती तक कराना पड़ता है. अस्पताल में भर्ती हुए मरीजों में से 15 फीसदी तक की मौत भी हो सकती है. 

लासा फीवर का इतिहास

'लासा फीवर' (Lassa Fever) उसी परिवार से जुड़ा है जिस परिवार से इबोला और मार्कबर्ग फीवर. लासा फीवर को पहली बार 1969 में नाइजीरिया के लासा में पाया गया था, जिस कारण से इसी शहर के नाम पर इस बीमारी का नाम पड़ा. इस बीमारी का पता तब चला जब दो नर्सों की इससे मौत हो गई. हालांकि बाद में इसके मामले कम हो गएं, लेकिन एक बार फिर से इसके मामले फिर से बढ़ने लगे हैं.