'खास दोस्तों' के दम पर ताकतवर होगा भारत का रुपया, देखती रह जाएगी दुनिया
भारत अगर ईरान, रूस जैसे मित्र राष्ट्रों से क्रूड ऑयल समेत विभिन्न उत्पादों की खरीदारी (इम्पोर्ट) डॉलर की बजाय रुपए में करता है तो इससे भारतीय करंसी की दुनिया में हैसियत बढ़ेगी.
भारत अगर ईरान, रूस जैसे मित्र राष्ट्रों से क्रूड ऑयल समेत विभिन्न उत्पादों की खरीदारी (इम्पोर्ट) डॉलर की बजाय रुपए में करता है तो इससे भारतीय करंसी की दुनिया में हैसियत बढ़ेगी. जानकारों का कहना है कि रुपये में भुगतान की व्यवस्था से भारत के ईरान के साथ व्यापार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही देश में महंगाई घटेगी, क्योंकि भारत के लिए अभी सबसे बड़ी चिंता महंगे डॉलर में तेल की खरीदारी करना है. भारतीय व्यापार संवर्द्धन परिषद (TPCI) ने कहा कि अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन रुपये में भुगतान की व्यवस्था से दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहन मिलेगा. सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने हाल में ईरान से 12.5 लाख टन कच्चे तेल के आयात के लिए कांट्रेक्ट किया है.
टीपीसीआई ने बयान में कहा कि यूको बैंक के वॉस्ट्रो खाते के जरिये रुपये में कारोबार से व्यापार का मौजूदा स्तर कायम रहेगा. हालांकि, यदि भारत इस अवसर का फायदा उठाते हुए ईरान की जरूरत के उत्पादों का निर्यात करता है, तो यह और बढ़ सकता है. टीपीसीआई वाणिज्य मंत्रालय समर्थित निकाय है. टीपीसीआई के चेयरमैन मोहित सिंगला ने कहा कि भारत ने ईरान और रूस के संदर्भ में जो मजबूत कदम उठाए हैं उससे विश्व व्यापार में तटस्थ खिलाड़ी के रूप में भारत की छवि सुधरी है.
महंगे पेट्रोल-डीजल से चढ़ी महंगाई
खाद्य पदार्थों के दाम नरम पड़ने के बाद भी पेट्रोल एवं डीजल की कीमतें बढ़ने से थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अक्टूबर महीने में बढ़कर चार माह के उच्च स्तर 5.28 प्रतिशत पर पहुंच गयी. थोक मुद्रास्फीति पिछले महीने यानी सितंबर में 5.13 प्रतिशत तथा पिछले साल अक्टूबर में 3.68 प्रतिशत थी.
ईरान से पहले भी रुपए में होता रहा लेन-देन
एक सूत्र ने कहा, 'ईरान तेल के लिए पहले भी रुपये का भुगतान लेता रहा है, वह रुपए का उपयोग औषधि और अन्य जिंसों के आयात में करता है. इस प्रकार की व्यवस्था पर काम जारी है.' भारत की ईरान से करीब 2.5 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात की योजना है जो 2017-18 में आयातित 2.26 करोड़ टन से अधिक है.
महंगे डॉलर के कारण बढ़ रहा आयात पर खर्च
जानकारों के मुताबिक भारत के कच्चे तेल के आयात पर खर्च 2018-19 में 26 अरब डॉलर (करीब 1.82 लाख करोड़ रुपये) ज्यादा हो सकता है, क्योंकि रुपए में रिकॉर्ड गिरावट के कारण विदेश से तेल खरीदने के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं. डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है. इससे पेट्रोल, डीजल और कुकिंग गैस (एलपीजी) की कीमत में बढ़ोतरी होगी, जिसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ेगा.
80% तेल आयात करता है भारत
भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत कच्चे तेल का आयात करता है. उसने 2017-18 में 22.043 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर करीब 87.7 अरब डॉलर (5.65 लाख करोड़ रुपये) खर्च किया था. वित्त वर्ष 2018-19 में लगभग 22.7 करोड़ टन क्रूड ऑइल के इंपोर्ट का अनुमान है. एक अधिकारी ने बताया, 'हमने वित्त वर्ष की शुरुआत में अनुमान लगाया था कि 108 अरब डॉलर (7.02 लाख करोड़ रुपये) का कच्चा तेल आयात किया जाएगा. इसमें कच्चे तेल की औसत कीमत 65 डॉलर प्रति बैरल मानी गई थी. इसमें एक डॉलर में 65 रुपये का भाव माना गया था.'
इसलिए बढ़ रहे पेट्रोल-डीजल के दाम
भारी-भरकम ऑयल इंपोर्ट बिल के कारण भारत का व्यापार घाटा यानी आयात और निर्यात का अंतर बढ़कर जुलाई में 18 अरब डॉलर हो गया था. यह 5 साल में सबसे अधिक है. व्यापार घाटे से चालू खाता घाटा बढ़ता है, जिससे करंसी कमजोर होती है.