COVID-19 यानी कोरोना वायरस (Coronavirus) को लेकर कई दिन बाद अच्छी खबर आ रही है. चीन ने दावा किया है कि कोरोना से बचाव के लिए दवाई तैयार कर ली गई है. अप्रैल में चीन इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल कर सकता है. चीन से शुरू हुई इस महामारी की दवा की खोज कई देशों में चल रही है. लेकिन, चीन का दावा है कि वैक्सीन की रिसर्च आगे बढ़ रही है. जल्द ही क्लीनिकल ट्रायल कर लिया जाएगा. ग्लोबल सोर्सेज का मानना है कि ट्रायल के बाद भी दवा बाजार में आने में कितना वक्त लगेगा अभी कहना मुश्किल है.

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चीन की दवाओं के लिए कई शोध चल रहे हैं. दुनियाभर में फैली इस महामारी से अब तक 5000 से ज्यादा मौत हो चुकी है. कोरोनावायरस के लिए अभी तक कोई दवा नहीं बनी है. लेकिन, अब चीन का दावा है कि उसकी रिसर्च आगे बढ़ रही है. जल्द ही वैक्सीन का ट्रायल किया जाएगा. 

क्या है क्लीनिकल ट्रायल का मतलब?

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, क्लीनिकल ट्रायल का मतलब है कि रिसर्च के आधार पर दवाओं को तैयार किया गया है. अब इसे मल्टीपल सोर्स यानी जानवरों पर टेस्ट किया जाएगा. कोरोना से पीड़ित पर कौन से दवा कब और कितना असर करती है यह इसी टेस्ट से अंदाजा लगता है. हालांकि, यह एक लंबा प्रोसेस है. दवा का सफल ट्रायल होने के बाद भी इसे बाजार में आने में कम से कम 3 महीने का वक्त लग सकता है.

इजरायल का भी दावा

चीन से पहले इजरायल ने भी दावा किया था कि दवा बना ली गई है. इजरायल के इस्टीट्यूट ऑफ बॉयलोजिकल रिसर्च के वैज्ञानिक ने दावा किया था कि इस खतरनाक बीमारी को तोड़ उन्होंने ढूंढ लिया है. वैज्ञानिक ने यह दावा तक किया था कि कोरोना वायरस के टीके बना लिए गए हैं. जल्द ही इन्हें आधाकारिक मान्यता दे दी जाएगी. इजरायल के रक्षा मंत्री नेफटाली बेनिट का कहना है कि हमारे वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस से ऊपर शोध करके वायरस के नेचर को समझा है. कोरोना वायर के जैविक तंत्र (Biological System) के बारे में बारीकी से अध्यन कर इसकी पहचान करने में सफलता मिली है. 

भारत में भी चल रहा है शोध

भारत में भी कोरोना वायरस का तोड़ निकालने की कोशिश की जा रही है. एम्स के डॉक्टर्स को उम्मीद है कि जल्द ही कहीं न कहीं से इस बीमारी का तोड़ निकाल लिया जाएगा. लेकिन, लोगों को जरूरत है कि वो ऐसी स्थिति में पैनिक न करें. खुद को सुरक्षित रखना ही इस बीमारी पर जीत होगी.

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हवा से नहीं फैलता वायरस

एम्स के माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉक्टर ललित धर के मुताबिक, कोरोना वायरस एयरबोर्न नहीं है. आसान शब्दों में कहें तो यह हवा में नहीं फैलता. सिर्फ ड्रॉपलेट्स के संपर्क में आने से ही एक से दूसरे में ट्रांसफर होता है. इसलिए ऐसे संदिग्ध मरीजों से एक मीटर की दूरी बनाए रखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मरीज जब खांसता या छींकता है तो उसके नाक या मुंह से जो ड्रॉपलेट्स निकलता है, वह एक मीटर तक जा सकता है. लेकिन यह हवा में नहीं फैलता है. इसलिए इस तरह के अफवाह से बचें और जरूरी बातों पर ध्यान दें.