Bangladesh Violence का भारतीय कंपनियों और निवेश पर असर, LIC का ऑफिस 7 अगस्त तक बंद, इन कंपनियों पर भी असर
बांग्लादेश में बुधवार तक सभी गतिविधियां बंद करने की अधिसूचना जारी की गई है जिसका सीधा असर भारतीय कंपनियों पर होगा. इस बीच LIC की ओर से कहा गया है कि बांग्लादेश में चल रहे प्रदर्शन और हिंसा की वजह से वहां LIC ऑफिस 5 अगस्त से 7 अगस्त तक बंद रहेगा.
इस समय पूरी दुनिया की नजर बांग्लादेश पर है. बांग्लादेश में भीड़ बगावत के बाद सड़कों पर है. सोमवार को तख्तापलट के बाद वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने पद से इस्तीफा देकर बांग्लादेश को छोड़ना पड़ा. फिलहाल वो भारत में हैं. इस अशांति का असर भारतीय कंपनियों और निवेश पर भी पड़ा है. भारत की बड़ी बीमा कंपनी, LIC ने सोमवार को कहा कि बांग्लादेश का उसका ऑफिस 7 अगस्त तक बंद रहेगा.
इन कंपनियों पर भी असर
बांग्लादेश के हालातों के बीच LIC की ओर से कहा गया है कि बांग्लादेश में चल रहे प्रदर्शन और हिंसा की वजह से वहां LIC ऑफिस 5 अगस्त से 7 अगस्त तक बंद रहेगा. बांग्लादेश में बुधवार तक सभी गतिविधियां बंद करने की अधिसूचना जारी की गई है जिसका सीधा असर भारतीय कंपनियों पर होगा. मैरिको, इमामी, डाबर, एशियन पेंट्स, पिडिलाइट, गोदरेज कंज्यूमर, सन फार्मा, टाटा मोटर्स, हीरो मोटोकॉर्प का ऑपरेशन ठप्प है. व्यापारिक गतिविधियां भी स्थगित होने से हर तरह के कच्चे और तैयार माल की सप्लाई बंद हो गई है. पोर्ट्स से जरूरी मंजूरियां नहीं मिल पा रही हैं. हालांकि इस आपदा में भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए एक मौका जरूर है, जैसे कोविड के बाद China+1 की शुरुआत हुई थी, बांग्लादेश एपिसोड के बाद भारत में ऑर्डर बढ़ने की उम्मीद है.
शेख हसीना से क्यों नाराज थे लोग
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे तेजी से प्रगति करने वाली इकोनॉमी में गिना जाता है, लेकिन इस आर्थिक प्रगति का लाभ सबको नहीं मिल रहा जिससे वहां असमानता बढ़ रही है. वहां करोड़ों युवा बेरोजगारी से जूझ रहे हैं. इस वजह से वहां की जनता के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा था. यही वजह है कि छात्रों का आरक्षण विरोधी आंदोलन, वहां सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया और शेख हसीना की सत्ता गिर गई.
क्या है आरक्षण का मामला
इस सारे विवाद की जड़ बांग्लादेश में आरक्षण से जुड़ी हुई है. बांग्लादेश को साल 1972 में बतौर देश मान्यता मिली थी. 1972 में तत्कालीन सरकार ने मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और उनके वंशजों को सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया था. हालांकि, साल 2018 में सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया था. इस साल जून में हाईकोर्ट के फैसले ने इस आरक्षण प्रणाली को खत्म करने के फैसले को गैर कानूनी बताते हुए इसे दोबारा लागू कर दिया था.
उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बांग्लादेश में व्यापक पैमाने में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. शेख हसीना सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जिसने हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल पांच फीसदी नौकरियां स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित होगी. दो फीसदी नौकरियां अल्पसंख्यकों और दिव्यांगों के लिए आरक्षित होगी. अब इस मामले में अगली सुनवाई सात अगस्त को होनी थी. लेकिन, इससे पहले विरोध प्रदर्शन भड़क उठे.
सरकार के इस्तीफे की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों और सरकार समर्थक लोगों के बीच भीषण झड़पें हुईं. इसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई. लोग पीएम हसीना को हटाने की मांग करने लगे और आंदोलन और भी उग्र हो गया. प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के बातचीत के न्योते को भी ठुकरा दिया था. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थानों, पुलिस चौकियों, सत्तारूढ़ पार्टी के दफ्तरों और उनके नेताओं के आवास पर हमला किया और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सोमवार, मंगलवार और बुधवार को सामान्य अवकाश घोषित किया गया था.