अक्टूबर में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने लगता है.
असल में पराली जलाने से प्रदूषण की समस्या गंभीर हो जाती है.
सैटेलाइट से पराली जलाने का असर साफ दिखता है.
पराली धान की फसल कटाई के बाद बचा हुआ हिस्सा होता है.
किसान इसे जला कर खेत को रबी फसल के लिए तैयार करते हैं.
पराली जलाना किसानों के लिए सस्ता और आसान तरीका है.
पराली से निकलने वाला धुआं दिल्ली में प्रदूषण बढ़ाता है.
पराली जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड और डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं.
इससे त्वचा, आंखों, और श्वसन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है.
टर्बो हैप्पी सीडर जैसे उपकरण पराली जलाने का विकल्प हो सकते हैं.
एनजीटी ने पराली जलाने पर पाबंदी लगाई है.
पूसा बायो डिकम्पोजर 15-20 दिनों में पराली को खाद में बदल देता है.
सरकार किसानों को पराली प्रबंधन के लिए उपकरण उपलब्ध करा रही है.
किसानों को गेहूं की बुआई में देरी ना हो, इसका समाधान खोजा जा रहा है.
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