जब कुंवारों के लिए सिर दर्द बना बजट, भरना पड़ा शादीशुदा लोगों से ज्यादा टैक्स
हर साल आम बजट में देश की जनता के लिए बड़ी घोषणाएं होती हैं. इससे कई लोगों को फायदा होता है तो कुछ लोग नुकसान झेलते हैं
आजादी के बाद से लेकर अब तक के बजट में कई बड़ी घोषणाएं हो चुकी हैं. इस दौरान एक ऐसा बजट भी पेश हुआ जिसने शादीशुदा और कुवांरों के बीच टैक्स की बड़ी लकीर खींच दी
यह बात है 1955-56 के आम बजट की. जब तत्कालीन वित्त मंत्री चिंतामन द्वारकानाथ देशमुख ने बजट में शादीशुदा और अविवाहितों के लिए अलग-अलग टैक्स स्लैब घोषित कर दिया था
योजन आयोग की सिफारिश पर लिए गए इस फैसले ने शादीशुदा लोगों के लिए 1,500 रुपए का टैक्स एक्जेम्प्ट स्लैब बढ़कर 2,000 रुपए और अविवाहितों के लिए घटकर 1,000 रुपए हो गया
1955-56 के बजट में इनकम टैक्स पर अधिकतम दरों को 5 आना से घटाकर 4 आना किया गया
टैक्स स्लैब की बात करें तो 0 से 2,000 रुपए कमाने वाले शादीशुदा लोगों पर कोई टैक्स नहीं था
2,001 रुपए से 5,000 रुपए कमाने वाले 9 पाई और 5,001 रुपए से 7,500 रुपए कमाने वालों के लिए एक आना और 9 पाई टैक्स के तौर पर चुकाने पड़ते थे
इस बजट में कुंवारे लोगों को 0 से 1,000 रुपए की कमाई टैक्स फ्री थी, जबकि 1001 रुपए से 5,000 रुपए की कमाई पर 9 पाई का टैक्स लगाया गया
वहीं 5,001 रुपए से 7,500 रुपए तक की आमदनी लेने वाले अविवाहित लोगों को एक आना और 9 पाई टैक्स के तौर पर देने पड़ते थे
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