दृष्टिहीन व्‍यक्ति पढ़ भी सकते हैं, ये बात सोच पाना भी कभी मुमकिन नहीं था, लेकिन आज ये हो रहा है. इसे संभव बनाया है लुई ब्रेल (Louis Braille) ने. उन्‍होंने दृष्टिहीनों के लिए एक ऐसे सिस्‍टम का आविष्‍कार किया, जिसकी मदद से दृष्टिहीन बिना मदद लिए हुए पढ़ और समझ सकते हैं. इस सिस्‍टम को ब्रेल लिपि (Braille Script) कहा जाता है. दृष्टिहीन लोग बाएं से दाईं ओर डॉट्स को छूते हुए ब्रेल में लिखी हुई किसी भी जानकारी और किताबों को पढ़ते हैं. हर साल 4 जनवरी को ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल के सम्‍मान में विश्‍व ब्रेल दिवस (World Braille Day) मनाया जाता है. आइए आपको बताते हैं ब्रेल लिपि के बारे में-

जानिए क्‍या होती है ब्रेल लिपि

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ब्रेल एक तरह की कोड लैंग्वेज होती है. इसके तहत उभरे हुए छह बिंदुओं की तीन पंक्तियों में एक कोड बनाया जाता है. नेत्रहीन लोग बाएं से दाईं ओर डॉट्स को छूते हुए ब्रेल में लिखी हुई किसी भी जानकारी को पढ़ सकते हैं. ये तकनीक अब कंप्यूटर में भी यूज की जा रही है जिससे की नेत्रहीन लोग अब तकनीकी रूप से भी काम कर पाए.

इस घटना के बाद नेत्रहीन हो गए थे ब्रेल

फ्रांस के कुप्रे गांव में जन्‍में लुई ब्रेल एक माध्यम वर्गीय परिवार से थे. उनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी बनाने का काम करते थे. आर्थिक तंगी की वजह से लुईस अपने पिता के काम में सहयोग करते थे. आर्थिक तंगी के अभाव में लोग खिलौनों की बजाय लकड़ी, घोड़े की नाल, रस्सी, लोहे के औज़ार वगैरह जो भी घोड़ों की काठी बनाने के लिए इस्‍तेमाल की जाने वाली चीजें थीं, उनसे खेला करते थे. उनके खिलौने थे. एक दिन  खेलते समय उनकी आंख में चाकू घुस गया था, जिससे उनकी एक आंख खराब हो गई थी. धीरे-धीरे उनकी दूसरी आंख की भी रोशनी जाने लगी और सही इलाज न मिल पाने के कारण 8 साल की उम्र तक आते-आते वो पूरी तरह से नेत्रहीन हो गए.  

नेत्रहीन होने के बाद लुईस को नेत्रहीन बच्चों वाले स्कूल में दाखिला मिल गया था. जब वे 12 साल के थे, तब उन्हें पता चला की सेना के लिए एक खास साइफर कोड बना है जिससे अंधेरे में भी मैसेज पढ़े जा सकते हैं. इसके बाद उन्‍हें नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि विकसित करने का आइडिया आया. 8 सालों की कड़ी मेहनत और तमाम संशोधनों के बाद लुई ब्रेल ने 6 बिंदुओं पर आधारित लिपि को तैयार किया. हालांकि ब्रेल लिपि को उस समय मान्‍यता नहीं मिली. 

मौत के बाद मिला सम्मान

ब्रेल लिपि को मान्‍यता उनकी मौत के करीब 16 साल बाद मिली. 6 जनवरी 1852 में 43 साल की उम्र में उनका निधन हो गया और 1868 में ब्रेल लिपि को आधिकारिक रूप से मान्‍यता मिली. उनकी मौत के करीब 100 साल बाद उन्‍हें सम्‍मान मिला. उसके बाद उनके गांव में दफनाए गए उनके पार्थिव शरीर के अवशेष पूरे राजकीय सम्मान के साथ बाहर निकाले गए. सेना और स्थानीय प्रशासन ने उन्हें नजरअंदाज करने के लिए माफी मांगी और राष्ट्रीय धुन के साथ राष्ट्रीय ध्वज में उन अवशेषों को लपेट कर उनका ससम्मान अंतिम संस्कार किया गया. संयुक्त राष्ट्र आम सभा (United Nation General Assembly) ने नवंबर 2018 को आधिकारिक तौर पर 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस मनाने का फैसला किया. इसके बाद 4 जनवरी 2019 को पहला विश्व ब्रेल दिवस मनाया गया. तब से हर साल 4 जनवरी को विश्‍व ब्रेल दिवस मनाया जाता है.