वैशाख के महीने में कृष्‍ण पक्ष में आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. सभी एकादशियों की तरह ये एकादशी भी भगवान विष्‍णु को समर्पित होती है. मान्‍यता है कि ये एकादशी दुख और दरिद्रता से मुक्ति दिलाती है और सौभाग्‍य में वृद्धि करती है. इस साल ये एकादशी 16 अप्रैल को पड़ रही है. यहां जानिए वरुथिनी एकादशी का महत्‍व शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा.

वरुथिनी एकादशी का महत्‍व (Significance of Varuthini Ekadashi)

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ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र कहते हैं कि वरुथिनी एकादशी का महत्‍व खुद भगवान श्रीकृष्‍ण ने युधिष्ठिर को बताया था. इस व्रत को रखने से व्‍यक्ति को कई वर्षों की तपस्‍या का पुण्‍य प्राप्‍त होता है. जाने-अनजाने हुए पाप कट जाते हैं और व्‍यक्ति का दुख दूर होता है. ऐसा व्‍यक्ति मृत्‍यु के बाद बैकुंठ को प्राप्‍त होता है. लेकिन व्रत के पुण्‍य को प्राप्‍त करने के लिए विधिवत व्रत रखना चाहिए.

वरुथिनी एकादशी शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat of Varuthini Ekadashi)

वरुथिनी व्रत के पुण्‍य की बात करें तो वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 15 अप्रैल 2023 को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से हो रही है और ये 16 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 14 मिनट पर समाप्‍त होगी. लेकिन उदया तिथि के हिसाब से ये व्रत 16 अप्रैल को ही रखा जाएगा. व्रत का पारण 17 अप्रैल को सुबह 05 बजकर 54 मिनट से 10 बजकर 45 मिनट के बीच में किया जाएगा.

वरुथिनी एकादशी व्रत विधि (Varuthini Ekadashi Vrat Vidhi)

एकादशी व्रत के नियम एक दिन पहले सूर्यास्‍त के बाद से शुरू हो जाते हैं. ऐसे में सूर्यास्‍त होने से पहले ही भोजन आदि करें. इसके बाद प्‍याज-लहसुन आदि से बना या कुछ भी गरिष्‍ठ भोजन न खाएं. अगले दिन सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि के बाद भगवान के सामने व्रत का संकल्‍प लें. विधिवत भगवान की पूजा करें करें और कथा पढ़ें. दिन भर हरि का नाम जपें. बुराई-भलाई, किसी की चुगली वगैरह न करें. झूठ न बोलें. व्रत में फलाहार लेना है या नहीं, ये आपकी सामर्थ्‍य और इच्‍छा शक्ति पर निर्भर है. अगर सेंधानमक का सेवन कर रहे हैं तो सूर्यास्‍त से पहले करें. रात में जब तक संभव हो जागरण करके भगवान का नाम जपें, भजन कीर्तन वगैरह करें. अगले दिन स्‍नान आदि के बाद किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं. दक्षिणा आदि सामर्थ्‍य के अनुसार दान दें. इसके बाद व्रत का पारण करें.

वरुथिनी एकादशी व्रत विधि (Varuthini Ekadashi Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता राज्य करते थे. राजा बहुत ही दानवीर और धर्मात्मा थे. एक बार राजा जंगल के पास तपस्या कर रहे थे. तभी वहां एक भालू आया और उनके पैर को चबाने लगा. राजा अपने तप में लीन थे. इस बीच भालू उन्‍हें जंगल में घसीटकर ले गया और राजा को बुरी तरह जख्‍मी कर दिया. तब राजा ने भगवान को याद किया और प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना की. 

भक्‍त की पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला. भालू के हमले से राजा मंधाता अपंग हो गए थे. उन्‍हें बहुत शारीरिक पीड़ा थी. इस पीड़ा से मुक्‍त होने का उपाय जब उन्‍होंने पूछा तो भगवान विष्‍णु ने उन्‍हें कहा कि तुम्‍हारे पिछले जन्‍म का कर्मफल है. तब भगवान विष्णु ने राजा से वैशाख की वरुथिनी एकादशी का व्रत और पूजन करने को कहा. राजा मांधाता ने विष्णु जी के बताए अनुसार वरुथिनी एकादशी पर श्रीहरि के वराह रूप की पूजा की. व्रत के प्रभाव से वो शारीरिक पीड़ा से मुक्‍त हो गया और मृत्‍यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई.

 

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