बॉलीवुड अभिनेता श्रेयस तलपड़े (Shreyas Talpade) को गुरुवार को दिल का दौरा (Heart Attack) पड़ गया. गुरुवार को वे अपनी नई फिल्म 'वेलकम टू द जंगल' की शूटिंग कर रहे थे. शूटिंग खत्‍म करके जब वो अपने घर पहुंचे तो उन्‍हें सीने में दर्द महसूस हुआ और वे बेहोश हो गए. इसके बाद पत्‍नी दीप्ति ने श्रेयस को मुम्बई में अंधेरी के बेलव्यू अस्पताल में भर्ती कराया. अस्‍पताल में भर्ती होने के बाद उनकी एंजियोप्‍लास्‍टी की गई.

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हार्ट अटैक और हार्ट से जुड़ी समस्‍याएं कभी बुजुर्गों की परेशानी मानी जाती थीं, लेकिन आज ये युवाओं में भी तेजी से बढ़ने लगीं हैं. 47 वर्ष के श्रेयस तलपड़े को हार्ट अटैक आने का ये कोई पहला मामला नहीं है. श्रेयस से पहले राजू श्रीवास्‍तव, सिद्धार्थ शुक्‍ला, सिंगर केके जैसे कई जाने पहचाने नाम हैं, जो कम उम्र में हार्ट अटैक के शिकार हुए हैं. आइए आपको बताते हैं कि कम उम्र में हार्ट अटैककी क्‍या वजह है और क्‍या है एंजियोप्‍लास्‍टी (Angioplasty) और इसकी जरूरत कब पड़ती है?

इन वजहों से बढ़ रहे हैं हार्ट अटैक के मामले

हार्ट हॉस्पिटल के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. राजन ठाकुर का इस मामले में कहना है कि बीते कुछ समय में 40 से 50 साल की उम्र में हार्ट अटैक के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं. इन सबका कारण हमारी खराब लाइफस्‍टाइल है. ज्‍यादा से ज्‍यादा अनहेल्‍दी फूड, जंक फूड, प्रोसेस्‍ड फूड वगैरह खाने की आदतें हैं. कामकाजी लोग खासतौर पर घर का हेल्‍दी खाना खाने की बजाय इस तरह की चीजें खाना पसंद करते हैं. इन चीजों से  मोटापा, हाई बीपी, कोलेस्‍ट्रॉल जैसी समस्‍याएं होती हैं और हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ता है. इसके अलावा स्‍मोकिंग, स्‍ट्रेस और आनुवांशिकता वगैरह भी हार्ट अटैक के बड़े कारणों में से एक हैं.

इन लक्षणों से करें पहचान

सीने में दर्द इसका मुख्य लक्षण है. ये दर्द सीने के बीच से आपके जबड़ों, गर्दन और बायीं तरफ में हाथ में फैलता महसूस होता है. कभी कभार छाती में भारीपन और छाती पर दबाव भी महसूस होता है. इसके अलावा सांस लेने में दिक्कत या फिर बहुत तेज-तेज सांस लेना, दिल की धड़कन बहुत तेज महसूस होना, सांस छोड़ने के दौरान सिर में हल्का भारीपन या फिर चक्कर आने जैसा महसूस होना. बेहोश होना या फिर बेसुध होना आदि हार्ट अटैक के लक्षण हैं. 

हार्ट अटैक की स्थिति में क्‍या करें

हार्ट अटैक इमरजेंसी कंडीशन है, जो व्‍यक्ति की जान भी ले सकती है. इस स्थिति में मरीज को फौरन अस्‍पताल पहुंचाना चाहिए. इस स्थिति में विशेषज्ञ तमाम जांचों के जरिए हार्ट अटैक के कारण का पता लगाते हैं और जरूरत पड़ने पर सर्जरी वगैरह भी करते हैं. 

क्‍या है एंजियोप्‍लास्‍टी

श्रेयस के मामले में विशेषज्ञों ने एंजियोप्‍लास्‍टी की है. इसके बाद उनकी हालत बेहतर बताई जा रही है. एंजियोप्‍लास्‍टी एक मेडिकल टर्म है, जिसे आम लोग नहीं समझ पाते. समझिए ये होता क्‍या है. एंजियोप्लास्टी एक ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसके जरिए रक्‍त वाहिकाओं से ब्‍लॉकेज को हटाया जाता है. इसमें हृदय की मांसपेशियों तक ब्लड सप्लाई करने वाली कोरोनरी आर्टरीज़ यानी रक्त वाहिकाओं को खोला जाता है. 

कई मामलों में डॉक्टर एंजियोप्लास्टी के बाद कोरोनरी आर्टरी स्टेंट भी रक्त वाहिकाओं में डालते हैं. ये स्टेंट नसों में रक्त प्रवाह को फिर से दुरुस्त करने का काम करता है. 'सोसायटी फॉर कार्डियोवस्क्यूलर एंजियोग्राफी एंड इंटरवेंशन्स' की रिपोर्ट के मुताबिक, एंजिप्लास्टी से किसी इंसान की जान बचाई जा सकती है. इससे बंद पड़ी धमनियों में रक्‍त प्रवाह बेहतर हो जाता है. हार्ट अटैक के मामले में जितनी जल्‍दी एंजियोप्‍लास्‍टी की जाए, हृदय की मांसपेशियों को उतना कम नुकसान होगा.

हार्ट अटैक से बचाव का क्‍या है तरीका

  • जीवनशैली में सकरात्मक बदलाव लाएं और ऐसी भोजन की आदतों को अपनाएं जो स्वस्थ हो. इसके अलावा जंक और फ्राइड फूड्स को अपनी डाइट से बाहर निकालें.
  • डाइट में सब्जियां, फल, साबुत अनाज, कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट्स और लीन प्रोटीन फूड्स को शामिल करें.
  • आपको अपनी थाली के आधे हिस्से के रूप में फलों और सब्जियों को शामिल करना चाहिए. वहीं आधा हिस्सा साबुत अनाज का होना चाहिए.
  • सब्जियों में ज्यादा नमक का इस्तेमाल ना करें और डिब्बाबंद सब्जियों के इस्‍तेमाल से बचें.
  • दिल को स्वस्थ रखने के लिए फैट फ्री दूध और दही खाएं. 
  • वॉक सबसे अच्छी एक्सरसाइज है. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए कम से कम 30 मिनट की वॉक को बेहतर बताया है.
  • अगर आप चाहे तो कुछ हल्की एक्सरसाइज भी कर सकते हैं लेकिन कोई भी एक्सरसाइज विशेषज्ञ की सलाह से ही करें..
  • अगर आपको कोई बीमारी है जिसका इलाज चल रहा है, तो समय समय पर फॉलोअप लेते रहना बहुत जरूरी है ताकि वो बीमारी दोबारा न पनपे या उसकी जगह कोई और बीमारी न हो जाए. फॉलोअप से हमें ये भी पता चलता रहता है कि जो दवाएं हम खा रहे हैं, उससे बीमारी कितनी कंट्रोल हो रही है.