चैत्र मास की शुक्‍ल पक्ष की नवमी तिथि को प्रभु श्रीराम का जन्‍म हुआ था, इसलिए इस दिन को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग भगवान राम की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं. धार्मिक स्‍थलों पर कई बड़े आयोजन किए जाते हैं. लेकिन इसको लेकर ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि प्रभु श्रीराम गुणों की खान हैं. उनके खास दिन पर सिर्फ उनकी पूजा न करें, बल्कि उनके गुणों को अपने जीवन में उतारें. यहां जानें वो नौ बातें जो हर किसी को भगवान राम से सीखनी चाहिए.

धैर्य की सीख

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भगवान राम के जीवन में अनेकों कठिन क्षण आए. देखा जाए तो उनका पूरा जीवन ही संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्‍होंने किसी भी पल में अपना धैर्य नहीं खोया. हर व्‍यक्ति को भगवान राम से धैर्य की सीख लेनी चाहिए.

कर्म की शिक्षा

भगवान राम श्रीहरि के अवतार थे. वो अगर चाहते तो किसी भी समस्‍या को सामने आने ही न देते. लेकिन उन्‍होंने मानव रूप में कर्म किए. हर तरह के कष्‍ट झेले और उनका निवारण भी कर्म के जरिए ही किया. इससे ये सीखना चाहिए कि व्‍यक्ति सही दिशा में कर्म करके बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी पार कर सकता है.

शक्ति का सदुपयोग

प्रभु श्रीराम भगवान विष्‍णु के अवतार थे तो उनके पास अपार शक्तियां थीं. वे चाहते तो उन्‍हें लंका भी नहीं जाना पड़ता और रावण का अंत हो जाता. लेकिन उन्‍होंने कभी इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया. सामान्‍य लोगों की तरह कर्म करते हुए युद्ध किया. हर व्‍यक्ति को प्रभु से ये सीख लेनी चाहिए कि शक्ति का अर्थ दूसरों पर शासन करना नहीं होता. शक्ति अर्जित करने का उद्देश्‍य बुराई का अंत और समाज का कल्‍याण करना होना चाहिए.

सामाजिक समानता

आज के समय में भी लोग जातियों और ऊंच-नीच की भावना में फंसे हुए हैं. लेकिन प्रभु श्रीराम ने इन बातों को कभी नहीं माना. उन्‍होंने हमेशा सिर्फ मानव धर्म को माना है. शबरी और केवट के साथ सामाजिक समानता इसका बेहतरीन उदाहरण है.

जीवन के मूल्‍य

जीवन में हर व्‍यक्ति के कुछ उसूल होना बहुत जरूरी हैं. भगवान राम के जीवन में तमाम परेशानियां आयीं, लेकिन उन्‍होंने अपने मूल्‍यों से कभी समझौता नहीं किया और न ही अपनी मर्यादा को तोड़ा. हर व्‍यक्ति को अपने जीवन के कुछ उसूल बनाने चाहिए और उनका कड़ाई से पालन करना चाहिए.

माता-पिता का सम्‍मान

माता-पिता हमें जन्‍म देते हैं और हमारी खुशी के लिए कितने त्‍याग करते हैं. यही वजह है कि संसार में माता-पिता से बड़ा स्‍थान किसी को नहीं दिया गया है. हर व्‍यक्ति को अपने माता-पिता का सम्‍मान करना श्रीराम से सीखना चाहिए. श्रीराम को जब 14 वर्ष का वनवास दिया गया तो वे अपने पिता की विवशता को समझ गए थे और उनका वचन न टूटे और संसार में उनका मान कम न हो, इसलिए प्रभु श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन किया और 14 वर्ष का वनवास काटने चले गए.

गुरु की भक्ति

गुरु ही हमें अंधकार से प्रकाश का रास्‍ता दिखाते हैं. उनकी दी शिक्षाओं की बदौलत हमारा भविष्‍य संवरता है. ऐसे में हर किसी को श्रीराम से गुरु की सेवा और उनकी भक्ति करना सीखना चाहिए. गुरु का आशीष अगर साथ हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी आसानी से पार हो सकती है.

मानवता की समझ

अपार शक्तिशाली होने के बावजूद प्रभु श्रीराम ने लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया है. वो कभी नहीं चाहते थे कि युद्ध हो और जन हानि हो. इसलिए अंत समय तक वो कष्‍ट सहते रहे और इसके लिए प्रयास करते रहे.

नियति को स्‍वीकार करना

कई बार नियति जो कुछ लेकर आती है, उसे स्‍वीकार करना होता है. राम का वनवास, माता सीता का अपहरण होने पर भी प्रभु श्रीराम ने आपा नहीं खोया, बल्कि अपने कर्मों से परिस्थिति को ठीक करने का प्रयास किया और अंत में विजय पायी. 

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