हिंदू कैलंडर के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक पितृ पक्ष रहता है. 10 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो चुका है. माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर अपने वंशजों से मिलने के लिए आते हैं. ऐसे में इन 15 दिनों में पितरों के निमित्‍त पूजन, पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है. ज्‍यादातर श्राद्ध से जुड़े कर्म पुत्रों द्वारा किए जाते हैं. लोगों का मानना है कि महिलाओं को ये सब नहीं करना चाहिए. लेकिन ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र कहते हैं कि कुछ विशेष परिस्थितियों में महिलाएं भी अपने पितरों के निमित्‍त सारे काम कर सकती हैं. गरुड़ पुराण में भी इसके बारे में बताया गया है.

जानिए किन स्थितियों में महिलाओं को मिलता है ये अधिकार

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ज्‍योतिषाचार्य कहते हैं कि पितरों के निमित्‍त किए जाने वाले श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा को व्‍यक्‍त करने के लिए होते हैं. पूर्वज आपके भोजन के नहीं, श्रद्धाभाव के भूखे हैं. शास्‍त्रों में श्राद्ध का पहला अधिकार पुत्र को दिया गया है. लेकिन जिस परिवार में कोई पुत्र नहीं है, उस परिवार की कन्‍या पितरों के श्राद्ध को अगर श्रद्धापूर्वक करती है और उनके निमित्त पिंडदान करती है तो पितर उसे स्वीकार कर लेते हैं. इसके अलावा पुत्र की अनुपस्थिति में बहू या पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है.

सीता माता ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान

ज्‍योतिषाचार्य बताते हैं कि बाल्मीकि रामायण में माता सीता द्वारा पिंडदान करने का उल्‍लेख मिलता है. वनवास के दौरान जब प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान गया पहुंचे तो वे श्राद्ध के लिए सामग्री लेने गए हुए थे. इस बीच माता सीता को राजा दशरथ ने दर्शन हुए और उन्होंने माता सीता से कहा कि वे स्‍वयं माता सीता के हाथों पिंडदान करवाना चाहते हैं.

 राजा दशरथ की इस इच्‍छा को पूरा करने के लिए माता सीता ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाया और अपने पिता समान ससुर राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया. इससे राजा दशरथ अत्‍यंत प्रसन्‍न हुए और उन्‍हें आशीष देकर मोक्ष को प्राप्‍त हो गए. इस तरह पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्र वधु को भी पिंडदान और श्राद्ध का अधिकार शास्त्रों में दिया गया है.