Opration Polo against the richest man of India: आजाद भारत का सबसे अमीर शख्‍स जिसके किस्‍से दुनियाभर में मशहूर रहे हैं. जो उस दौर में भी बेशुमार दौलत का मालिक था. उसके पास सोने और हीरे की खदानें हुआ करती थीं. सोने की ईंटों से भरे ट्रक उसके बगीचे में खड़े रहते थे. 185 कैरेट का जैकब हीरा भी वो पेपरवेट के तौर पर इस्‍तेमाल करता था. बताया जाता है कि उस समय में वो शख्‍स 230 बिलियन डॉलर से भी अधिक संपत्ति का मालिक था. इतना ही नहीं, निजाम के पास अपनी खुद की करेंसी थी. सिक्का ढालने के लिए अपना टकसाल था. कुल मिलाकर उस वक्‍त वो इतनी संपत्ति का मालिक था, जिसके सामने आज की बड़ी-बड़ी शख्सियतें भी हल्‍की पड़ जाएं.

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हम बात कर रहे हैं हैदराबाद के आखिरी निज़ाम मीर उस्मान अली खान (Mir Osman Ali Khan, the last Nizam of Hyderabad) के बारे में, जिसके खिलाफ देश की सरकार ने ऑपरेशन पोलो (Opration Polo) चलाया था. 13 सितंबर वो दिन था, जब ऑपरेशन पोलो की शुरुआत हुई थी. ये ऑपरेशन 13 सितंबर से 18 सितंबर तक चलाया गया था. आइए आपको बताते हैं कि देश की आजादी के बाद आखिर क्‍यों सरकार को अपने ही देश में इस ऑपरेशन को चलाने की जरूरत पड़ी.

क्‍यों चलाया गया था ऑपरेशन

13 सितंबर 1948. ये वो तारीख है जब भारतीय सेना ने रजाकारों के खिलाफ 'ऑपरेशन पोलो' की शुरुआत की  थी. अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद संयुक्त और मजबूत भारत का सपना पूरा करना आसान नहीं था. भारत की स्वतंत्रता के समय, ब्रिटिश भारत स्वतंत्र राज्य और प्रांतों से मिलकर बना था, जिन्हें भारत, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने के विकल्प दिए गए थे. जिन लोगों ने निर्णय लेने में काफी समय लगाया उनमें से एक हैदराबाद के निजाम भी थे. उस समय देश को एकजुट करने की जिम्‍मेदारी सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई थी. उन्होंने 500 से अधिक रियासतों को एकजुट करना शुरू किया. अधिकतर रियासतें तो विलय के लिए राजी हो गई, लेकिन हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय से इनकार कर दिया. इसके बाद ऑपरेशन पोलो की शुरुआत हुई.

रजाकारों के खिलाफ चलाया गया था ऑपरेशन

दरअसल, 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हुई और उसके एक दिन बाद यानी 12 सितंबर को भारतीय सेना ने हैदराबाद में सैन्य अभियान शुरू किया. सेना के लिए हैदराबाद को फतह करना इसलिए भी बड़ी चुनौती थी, क्योंकि सत्ता तो निजामों के पास थी, लेकिन कमान रजाकारों के हाथों में थी. निजाम ने रजाकार सेना बनाई थी. मुस्लिम सैनिकों की ख्वाहिश हैदराबाद को अलग मुल्क बनाने की थी. निजाम के पास तेज दिमाग था, अंग्रेजों से दोस्‍ती थी, साथ ही रजाकार उनकी सबसे बड़ी ताकत थे. रजाकार रजाकार एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब है 'स्वयंसेवक'. ये आम लोगों से बनी एक फोर्स थी, जिसके पास हथियार चलाने का थोड़ा-बहुत अनुभव होता था.

उस समय हैदराबाद में 85 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की थी, जबकि शेष लोग मुस्लिम समुदाय से आते थे.  लेकिन एक सोची समझी साजिश के तहत सभी ऊंचे पदों पर मुसलमानों का कब्जा था. यहां तक कि रियासत में ज्यादातर टैक्स हिंदुओं से ही वसूले जाते थे. बहुसंख्यकों पर लादे इन्हीं करों से शाही खजाना बढ़ता चला गया. हिंदुओं का आर्थिक तौर पर शोषण तो हो ही रहा था साथ ही उनको शारीरिक ज्यादतियों का भी शिकार होना पड़ रहा था. निजाम की सरपरस्ती में रजाकार आपे से बाहर हो रहे थे. खुलेआम कत्लेआम मचा रखा था.  जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था. 

13 सितंबर को भारतीय सेना ने किया था हैदराबाद में प्रवेश

एक दिन ऐसा आया जब हिंदुओं ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. इसके बाद 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना 'ऑपरेशन पोलो' के तहत हैदराबाद में प्रवेश किया. भारतीय सेना और रजाकारों के बीच करीब चार दिनों तक संघर्ष चला और फिर निजाम ने हथियार डाल दिए. इसके बाद हैदराबाद का भारत में विलय हो पाया. रिपोर्ट के मुताबिक, इस अभियान में 27 से 40 हजार जानें गई थी. हालांकि, जानकार ये आंकड़ा दो लाख से भी ज्यादा बताते हैं.