Chaitra Navratri का पर्व 22 मार्च से शुरू हो चुका है. नवरात्रि के नौ दिनों मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन पूजा के समय घर में घट स्‍थापना की जाती है और जौ बोए जाते हैं. नौ दिनों तक माता के अलग-अलग रूपों की पूजा से पहले कलश पूजन किया जाता है. इस बीच कलश को हिलाया नहीं जाता. आपके भी घर में नवरात्रि में कलश स्‍थापना होती होगी और ज्‍वारे बोए जाते होंगे. लेकिन क्‍या दिमाग में ये सवाल आया कि ऐसा क्‍यों किया जाता है, इसका क्‍या महत्‍व है? आइए आपको बताते हैं-

कलश का महत्‍व 

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इस मामले में ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कलश की जब स्‍थापना की जाती है तो एक मंत्र का उच्‍चारण किया जाता है- कलशस्य मुखे विष्णु, कंठे रुद्र समाश्रिता:, मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:. कुक्षौतु सागरा, सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणा: अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता.

इसका अर्थ है कि कलश के मुख में विष्णुजी भगवान, कंठ में महेश, मूल में ब्रह्मा और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं. इसके अलावा समुद्र, सातों द्वीप, वसुंधरा, चारों वेद (ऋगवेद, यर्जुवेद, सामवेद और अथर्ववेद) इस कलश में स्थान लिए हुए हैं. इस तरह कलश में सभी देवताओं का आवाह्न किया जाता है. 

कलश पर नारियल रखना जरूरी

कलश को बंद करने के बाद सबसे ऊपर नारियल रखा जाता है. नारियल को भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है. कोई भी पूजा भगवान गणेश की पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है, इसलिए नारियल के बिना कलश की स्‍थापना भी अधूरी मानी जाती है. ज्‍योतिषाचार्य का कहना है कि कलश पूजन के जरिए हम सभी देवी-देवताओं का पूजन कर लेते हैं. इससे सभी देवी और देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है. 

क्‍यों बोए जाते हैं जौ

कलश स्‍थापना के समय जौ भी बोए जाते हैं. कहा जाता है कि जौ ही सृष्टि की पहली फसल है, इसलिए देवी देवताओं के पूजन और हवन आदि में जौ समर्पित किए जाते हैं. नवरात्रि के दौरान बोए गए जौ दो-तीन दिन में ही अंकुरित हो जाते हैं और नौ दिनों में काफी घने फसल के तौर पर उग आते हैं. इसे बहुत शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. 

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