26 सितंबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. आज नवरात्रि का दूसरा दिन है. नवरात्रि का हर दिन मातारानी के अलग स्‍वरूप को समर्पित माना जाता है. दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी के नाम से ही उनकी पूजा का महत्‍व स्‍पष्‍ट हो जाता है. ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली, यानी जो तप का आचरण करने वाली हों, उन्‍हें माता ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. माता ब्रह्मचारिणी के पूजन से तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि की वृद्धि होती है और मन को शान्ति मिलती है. ऐसा व्‍यक्ति मुश्किल समय में भी सही मार्ग से नहीं भटकता. आइए ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का तरीका, माता का प्रमुख भोग और उनके मंत्र.

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मां ब्रह्मचारिणी का स्‍वरूप और प्रिय भोग

कहा जाता है कि माता पार्वती के हजारों साल कठोर तप करने के बाद उनके तपेश्‍वरी स्‍वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं. वे इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं और सफेद रंग के वस्‍त्र धारण करती हैं. माता के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है. मां ब्रह्मचारिणी पवित्रता और शांति का प्रतीक है और सफेद रंग उनका प्रिय रंग है. मां ब्रह्मचारिणी को सफेद चीजों का ही भोग लगाना चाहिए. आज के दिन आप मातारानी को मिश्री, दूध, खीर, खोए की बर्फी और पंचामृत आदि का भोग लगाएं.

इस तरह करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

नियमित रूप से कलश पूजन करने के बाद गणपति का पूजन करें. इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

करें. पूजा के समय मातारानी के ब्रह्मचारिणी स्‍वरूप को पंचामृत से स्‍नान करवाएं. रोली, अक्षत, चंदन, पुष्‍प, लौंग का जोड़ा, धूप और दीप आदि अर्पित करें. इसके बाद माता के मंत्र का जाप, दुर्गा सप्‍तशती का पाठ और कथा आदि पढ़ें, फिर विधिवत आरती करें और भोग लगाएं.

इस मंत्र का करें जाप

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए आप यहां बताए जा रहे मंत्र का जाप करें. मंत्र है -

  • या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
  • दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू,देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
  • ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः 

देवी ब्रह्मचारिणी की कथा

शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने एक हजार साल तक तक फल-फूल खाएं और सौ वर्षों तक जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. ठंड,गर्मी, बरसात हर ऋतु को सहन किया लेकिन किसी भी हाल में अपने तप को भंग नहीं होने दिया. इस बीच वो टूटे हुए बिल्व पत्र का सेवन करती थीं. जब उनकी कठिन तपस्या से भी भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए, तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और हजारों वर्ष तक निर्जल और निराहार तप किया. माता के नियम, संयम और कठोर तप से आखिरकार महादेव प्रसन्‍न हुए और मातारानी को पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार किया. माता पार्वती के इस तपस्विनी स्‍वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया, जो मनुष्‍य को ये सीख देता है कि अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए व्‍यक्ति को अडिग रहना चाहिए और कठिन समय में भी उसका मन विचलित नहीं होना चाहिए, तभी उसे सफलता प्राप्‍त होती है.